फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, मार्च 24, 2020

" तब तुम लापरवाह नहीं थे " (चर्चा अंक -3650)

स्नेहिल अभिवादन। 
आज की  प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 
 22 मार्च को ताली,थाली ,शंख और घण्टी की ध्वनि से पूरा देश गुंज उठा था। दरअसल रोग हो या शत्रु उस पर  जीत हासिल करने के लिए सबसे पहले हमारे इरादों का मजबूत होना और हमारा एक जुट होना जरुरी हैं   और भयमुक्त होकर एकजुटता दिखाने का ये एक अच्छा तरीका था। इतिहास की माने तो  -
महाराज रघु के राज्य में ठूंठी नामक राक्षसी  बच्चों की हत्या कर हाहाकार मंचा रखी थी ,उसे किसी भी अस्त्र शास्त्र से नहीं मारा जा सकता था ,ऐसे में राज्य पुरोहित ने कहा कि -बच्चों की हँसी और किलकारियां ही इस राक्षसी का अंत कर सकती हैं। महाराज ने ऐसा ही करवाया ,राज्य के सारे बच्चें एकजुट होकर ताली बजा बजाकर हँसने- खिलखिलाने लगे ,राक्षसी बच्चों के इस हो -हल्ला को सह नहीं पाई और मर गई। 
यहाँ शायद, राक्षसी  एक प्रतीकात्मक रही हो जो महामारी बनकर बच्चों की जान ले रही थी 
और बच्चो के आनंद -उत्साह ने उनके अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा दी
 और उनकी विजय हुई। 
ताली और थाली बजाना उत्साह का प्रतीक होता हैं।  इससे नकारात्मकता दूर होती हैं और 
सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि ध्वनि के विशेष कम्पन से 
मन और मस्तिष्क प्रभावित होता हैं जो शरीर के कोशिकाओं को एक्टिवेट करता हैं और 
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता हैं। 
यही कारण हैं कि-हमारी संस्कृति में पूजा के दौरान शंख, घंटी और ताली बजाते हैं।
 " ओम " के उच्चारण का लाभ तो वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं। 
तो चले , सरकार के बनाए नियम कानून का पालन करते हुए एकांतवास करते हैं 
कल से नवरात्री भी शुरू हो रही ,आइए ,इसी बहाने एक बार फिर से अपने परिवार वालो 
के साथ मिलकर अपनी संस्कृति को अपनाने का प्रयास करते हैं.... 
अब  चलते हैं ,आज की रचनाओं की ओर .....
******

"जनहित के कानून को, कभी न करना भंग" 

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

कोरोना को देख कर, बना रहे जो बात। 
वो ही देश-समाज को, पहुँचाते आघात।। 
--
अच्छे कामों का जहाँ, होने लगे विरोध। 
आता देश समाज को, ऐसे दल पर क्रोध।। 
*****
विश्व में महामारी का दौर चल रहा था। 
भारत में भी वह अपने पैर पसार रही थी। 
प्रत्येक सौ वर्ष के बाद कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा था। 
१७२० में प्लेग ,१८२० में कॉलेरा, 
१९२० में स्वाइन फ्लू ,२०२० में कोरोना का प्रकोप।
Image result for images of silence
सन्नाटे ने 
प्रेम करने का सलीका सिखाया
बच्चों ने 
दिन में कई बार भीतर तक 
गुदगुदाया
******
Image result for images of village
हालाँकि छूट गया था शहर 
छूट जाती है जैसे उम्र समय के साथ 
टूट गया वो पुल 
उम्मीद रहती थी जहाँ से लौट आने की 
******

एक गीत /कविता -  

सबसे अच्छी कविता लिखने का यह दिन है 

जनता कर्फ्यू वैसे तो कोरोना के विस्तार को रोकने के लिए लगाया गया है
 किन्तु इसके अन्य सुखद परिणाम पर्यावरण के लिए होंगे | 
आप सोचिये धरती कितनी प्रसन्न होगी 
जब फूल -पत्तियाँ ,भौरें ,तितलियाँ ,वन्य जीव प्रदूषण 
और मानव आतंक से कितना मुक्त रहे होंगे
******
Image result for images of happy famly in house
हमारे तो भगवान जगन्नाथ भी 15 दिन का 
एकांत वास लेते है साल में एक बार । 
मान्यता है कि वो बीमार होते है और 
ठीक होने की इस अवधि तक मंदिर बंद रहता है.... 
कहानी बहुत वायरल हो रखी है, 
शायद आप सबने पढ़ी भी होगी। 
इसे बताने का औचित्य सिर्फ यही है कि  
प्रयास, सावधानी, सतर्कता या सख्ती सब हमे रखनी होगी । 
******
Image result for images of yoga
रहें घरों में कैद ,दवा ये उत्तम जानें ।
संकट में है राष्ट्र ,बात मुखिया की मानें।
बनें जागरूक आप ,नहीं अब विचलित होना ।
करें योग अरु ध्यान ,हराना अब कोरोना ।
******
Image result for images of yoga
कोरोना वायरस श्वास तन्त्र पर हमला करता है.
फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने के लिए
श्वास विधि को सीखना अति आवश्यक है.
सभी जानते हैं कि शरीर की रोग प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ाने के लिए भी
प्राणायाम और योग आसन करने चाहिए.
*******

कुछ याद उन्हें भी करलें 

मातृभूमि की बलिवेदी पर,
शीश लिये, हाथ जो चलते थे।
हाथों में अंगारे ले कर,
ज्वाला में जो जलते थे ।
********
बंधी, दो किनारों से,
कहती रही, उच्छृंखल तेज धारों से,
हो मेरे, श्रृंगार तुम ही,
ना, कभी कम,
तुम, ये धार करना, 
उमर भर, साथ बहना,
******

कोरोना के नाम 

Image result for images of tali bajana
तुमसे जंग लड़ रहे लोगो की सेवा में 
जुटे कर्मियों को धन्यवाद देने के लिए 
आज मैंने ताली तो बजायी 
लेकिन साथ मन किया कि जो ज्यादे 
बुर्दहिमान और चम्पादक टाइप के लोग है 
उनका कान भी बजा दें।
******
जनता कर्फ्यू के बहाने खुद को कोरोना से दूर कर परिवार के करीब ले जाए और एक बार खुद का मंथन करे कि -इस आधुनिकता के अंधीदौड़ में हमने क्या पाया
 और क्या खोया हैं ये अच्छा सुअवसर मिला हैं लाभ उठाए... 
अपना और अपने परिवार का विशेष ख्याल रखें... 
अब आज्ञा दे ,आपका दिन मंगलमय हो। 
कामिनी सिन्हा 

23 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक अंक भूमिका एवं रचनाएं सराहनीय है ।

    बात ताली, थाली और शंख बजाने की नहीं है। बात यह है कि संकट काल में जब आपस में एकजुटता दिखती है, तो संघर्ष की क्षमता बढ़ती है और जंग सदैव हौसले से जीता जाता है। लेकिन, ऐसा करते समय हम यह क्यों भूल गए कि सुकमा छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हुए, क्या उनके प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए इस दौरान हमारी आंखों में दो बूंद आंसू भी नहीं थे। उन शहीद परिवारों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य था। हमारे परिवार में कोई मर जाता तो क्या हम शंखनाद करते है ?

    ख़ैर कर्फ़्यू पर चर्चा करें, तो दो 1992 के बाद अपने मीरजापुर में यह दूसरी बार लगा था।

    एक वह कर्फ़्यू और एक यह कर्फ़्यू
    ------
    एक गवर्नमेंट कर्फ्यू, एक पब्लिक कर्फ्यू । एक हिंसायुक्त कर्फ्यू एक भययुक्त कर्फ्यू । एक भगवान के लिए कर्फ्यू तो एक यमराज के लिए कर्फ्यू ।
    एक कर्फ़्यू यहाँ मीरजापुर में 6 दिसम्बर 1992 की घटना को लेकर देखा गया। 4 दिन नगर पुलिस के हवाले हो गया था ।दोनों समुदाय अपने अपने ईष्ट के स्थल के लिए मन-मुटाव में थे ।
    और दूसरा कर्फ़्यू कोरोना वायरस लेकर धरती- भ्रमण पर निकले यमराज के खिलाफ 22 मार्च को दिखा। जिसमें चारों समुदाय हिंन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी के दरवाजे बंद, दुकानें बंद, गाड़ी-घोड़े बंद । नन्हे बच्चों से लेकर शतायु के करीब पहुंच रहे लोग 'भागो यमराज' की भावनाओं के साथ लामबंद दिखे।

    सभी को प्रणाम।

    हमारे जैसे लोग , जब दिनभर समाचार संकलन केलिए दौड़ रहे हैं, तो घर में रहने का उपदेश भला क्या दूं।


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना से परे आपकी समीक्षा शशि भाई.
      नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हुए, क्या उनके प्रति संवेदनाव्यक्त करने के लिए इस दौरान हमारी आंखों में दो बूंद आंसू भी नहीं थी... गहनता लिये विचार..
      सादर प्रणाम

      हटाएं
    2. सहृदय धन्यवाद शशि जी ,बिलकुल सही कहा आपने -देश के हर मोर्चे पर डटे सेनिक जो हर पल अपनी जान जोखिम में डालकर हमारी रक्षा कर रहें हैं उनको सत सत नमन

      हटाएं
  2. सुंदर भूमिका के साथ बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दीदी. मेरी लघु कथा को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आप का. सभी रचनाकारो को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,आपके स्नेह की आभारी हूँ ,सादर

      हटाएं
  3. आदरणीया कामिनी जी आपका हार्दिक आभार | मुझे शामिल करने के लिए विशेष आभार |सभी अच्छे लिंक्स |

    जवाब देंहटाएं
  4. सकारात्मक भूमिका के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    कामिनी सिन्हा जी आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सर ,आपका आशीर्वाद बना रहें ,सादर नमन

      हटाएं
  5. ग्रास बनोगे तुम स्वत:,कोरोना के आज।
    मोदी के आह्वान में,मिली नहीं आवाज।।

    जवाब देंहटाएं
  6. कब आएगी अक्ल उन्हें भी,जो धरने पर बैठे हैं।
    राष्ट्र धर्म को धता बताकर,अपने में ही ऐंठे हैं।।
    खुली नहीं हैं आंखें अब भी, भ्रमित अभी भी दिखते हैं,
    मोदीजी की योजनाओं को,धर्म विरोधी कहते हैं।।
    अटल मुरादाबादी

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही अच्छे चर्चा सूत्र बांधें हैं आपने कामिनी जी ... आपका आभार है मेरी रचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी ,सुंदर समीक्षा के लिए दिल से आभार ,सादर नमन

      हटाएं
  8. वाकई आज मंथन का समय है, एकान्तवास में खुद के करीब आकर, परिवार के निकट आकर, समाज और देश के हित में कुछ करने का समय है, सुंदर सूत्रों से सजा चर्चा मंच, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  9. मैंने अपने जीवनकाल में जबसे होश सँभाला, ऐसा सन्नाटा कभी नहीं देखा। ना कभी कर्फ्यू देखा, भगवान करे आगे कभी देखना भी ना पड़े। जिस शहर में जन्मी, वहीं ब्याही गई और ये बड़ा शांतिप्रिय शहर है यही अनुभव रहा।
    ये सब बहुत खराब लग रहा है, ऐसा लग रहा है कि कुदरत ने ही सजा दी है मानव को। इस वक्त को ध्यान और प्रार्थना में ही अधिक बिताने की कोशिश करना सही रहेगा।
    कामिनी बहन, हमेशा की तरह सारगर्भित भूमिका और सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से धन्यवाद मीना जी ,आपने सही कहा ऐसे दिन ना देखे थे और आगे भविष्य में विधाता कभी दिखाए भी नहीं ,हर सौ साल पर इंसान को उसकी औकात याद दिलाने का विधाता का शायद यही तरीका हैं ,सादर नमन

      हटाएं
  10. वाह!! प्रिय कामिनी । तुमने सच कहा । इस चुपपी के समय में परसों जो आभार नाद था वो कृतज्ञता के साथ वातावरण में व्याप्त विषैले जीवाणुओं का काल भी था। पर मीना बहन ने सच कहा, ये मौन शांति जानलेवा सी लग रही है। सुंदर भूमिका के साथ सार्थक लिंकों के साथ आज की चर्चा सराहनीय रही । हार्दिक शुभकामनायें सखी। यूँ ही आगे बढती रहो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से धन्यवाद सखी ,तुमने सही कहा ये ख़ामोशी जानलेवा हैं ,सादर नमन

      हटाएं
  11. सार्थक और सटीक भूमिका के साथ सुंदर संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई मुझे सम्मिलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।