नमस्कार मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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भारत का वित्तीय बजट
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है, जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के पहले कार्य-दिवस को भारत के वित्त मंत्री द्वारा
संसद में पेश किया जाता है।
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सारे कौए हो गये, राजनीति में हंस।
बाहर से गोपाल हैं, भीतर से हैं कंस।।
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मक्कारों ने हर लिया, जनता का आराम।
बगुलों ने टोपी लगा, जीना किया हराम।।
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जब से दल-बल में बढ़ी, शैतानों की माँग।
मुर्गे पढ़ें नमाज को, गुर्गे देते बाँग।।
उच्चारण वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत और सांकेतिक जीडीपी वृद्धि दर 15.4 प्रतिशत रहेगी
- "आदत"
- आदत सी हो गई हैअपने में खो जाने की ।खुद से मनमानी करने कीफिर अपने को समझाने की ।कल्पनाओं के कैनवास परकल्पित लैण्ड स्केप सजाने की ।सोचों की भँवर में उलझी हुईअनसुलझी गिरहें सुलझाने की ।बेमतलब तुम से बातें करबेवजह जी जलाने की ।टूटे दिल के जख्मों परखुद ही मरहम लगाने की ।
न उर्वरा धरा रही, न बांसवन रहा यहाँ
शहर पसर के फैलता, घुटन भरी हवा यहाँ
धुआं - धुआं है दोपहर, उदास रात क्या कहें
न पूछिए कि चांद क्यों लगे बुझा-बुझा यहाँ
देखो बिल्ली मौसी क्या पसरी खूब!
धूप में छिपा है इसकी सेहत का राज
बड़े मजे में है मत जाना उसके पास
बिना धूप ठण्ड के मारे सभी थरथर्राते
मिलती जैसे ही धूप तो फूले न समाते
नरम धूप लेकर सूरज उगा लोग सुगबुगाते
छोड़ कम्बल-रजाई धूप सेंकने चले आते
सुबह की धूप ठंड में सबको खूब है भाती
यही है भैया जो बिना भेदभाव सबको बचाती
बहुत दिल से
पर तुमने न सुनी अरदास
ऐसा किस लिए ?
सच्चे दिल से निकली आवाज
और इन्तजार भी किया था
मगर तुम न आए
जीवन का संगीत उपजता,
मिले-जुले सब तत्व दे रहे
संसृति को अनुपम समरसता !
हर कलुष मिटाती कर पावन
चलती फिरती आग बनो तुम,
अपनेपन की गर्माहट भर
कोमल ज्योतिर राग बनो तुम !
नज़्म में ,गीत में ,गज़लों में फ़सानों में रही
रेडियो भी तो परिंदो सी उड़ानों में रही
इसके परिधान का हर रंग लुभाता है हमें
बांसुरी ,तबला ये करताल ,पियानों में रही
रामः रामौ रामा: ...
यूँ तो खींच ही लाते हैं एक दिन बाहर
रावण को हर साल पन्नों से रामायण के
और .. मिलकर मौजूदगी में हुजूम की
जलाते हैं आपादमस्तक पुतले उसके ।
कुछ देख के, कुछ भी
देखा नहीं, सत्य
सुन्दर है
बहुत,
लेकिन उसमें छुपा है विष
का प्याला,