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लोहड़ी पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) यह पर्व मनाया जाता है। यह प्राय: १२ या १३ जनवरी को पड़ता है। यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है, यह द्योतार्थक (एक्रॉस्टिक) शब्द लोहड़ी की पूजा के समय व्यवहृत होने वाली वस्तुओं के द्योतक वर्णों का समुच्चय जान पड़ता है, जिसमें ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = 'लोहड़ी' के प्रतीक हैं। श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवत: लोहड़ी उसी का अवशेष है। पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है-यही व्यावहारिक आवश्यकता 'लोहड़ी' को मौसमी पर्व का स्थान देती है।
लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से 'त्योहार' (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि) भेजा जाता है। यज्ञ के समय अपने जामाता शिव का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में 'खिचड़वार' और दक्षिण भारत के 'पोंगल' पर भी-जो 'लोहड़ी' के समीप ही मनाए जाते हैं-बेटियों को भेंट जाती है।
लोहड़ी से २०-२५ दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है। रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय 'लोहड़ी' में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।
जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर बराबर रेवड़ी बाँटते हैं। लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से 'मोहमाया' या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं।
शहरों के शरारती लड़के दूसरे मुहल्लों में जाकर 'लोहड़ी' से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं। यह 'लोहड़ी व्याहना' कहलाता है। कई बार छीना झपटी में सिर फुटौवल भी हो जाती है। मँहगाई के कारण पर्याप्त लकड़ी और उपलों के अभाव में दुकानों के बाहर पड़ी लकड़ी की चीजें उठाकर जला देने की शरारतें भी चल पड़ी हैं।
लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षोलाससे मनाया जाता हैं। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता हैं।
लोहड़ी त्यौहार के उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं जो की पंजाब के त्यौहार से जुडी हुई मानी जाती हैं। लोहड़ी का त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। यह लोहड़ी का त्यौहार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में धूम धाम तथा हर्षो लाश के साथ मनाया जाता हैं। यह त्यौहार मकर संक्राति से एक दिन पहले 13 जनवरी को हर वर्ष मनाया जाता हैं।
लोहड़ी त्यौहार के उत्पत्ति के बारे में काफी मान्यताएं हैं जो की पंजाब के त्यौहार से जुडी हुई मानी जाती हैं। कई लोगो का मानना हैं कि यह त्यौहार जाड़े की ऋतू के आने का द्योतक के रूप में मनाया जाता हैं। आधुनिक युग में अब यह लोहड़ी का त्यौहार सिर्फ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में ही नहीं अपितु बंगाल तथा उड़िया लोगो द्वारा भी मनाया जा रहा हैं!
लोहड़ी का त्यौहार और दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं।
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था! उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई।
दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था।
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जब से लॉकडाऊन लगा है, तब से हम यूट्यूब पर ज्यादातर वीडियो खाने पीने व ट्रेवलिंग के वीडियो बहुत देखने लगे हैं। खाने पीने के वीडियो ज्यादा देखने का एक मूल कारण यह भी है कि लॉकडाऊन के चलते बाहर का खाना लगभग बिल्कुल ही बंद है। बेटेलाल अपनी परीक्षा के बाद बोर होने लगे थे, तो खाना बनाने में रूचि जागृत हुई, हम उन्हें रसोई में जाने की इजाजत नहीं देते थे, परंतु सोचा कि चलो अब लॉकडाऊन के चलते अपनी देखरेख में रसोई में काम करने की इजाजत दे देते हैं।
Vivek, कल्पतरु
जब आज तक न जान पाई
न जाने कब तक
इंत्जार रहेगा तुम्हारा
मैं कैसे जान पाती ।
मन का विश्वास
अभी खोया नहीं है
है असीम श्रद्धा प्रभू पर
यह तो याद है मुझे ।
KBC के एपिसोड्स का गहन अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष:-
1) जया बच्चन इन दिनों बहुत खुश नज़र आ रही हैं। सम्भवतः इसलिए कि KBC में इस बार कोरोना-काल के चलते महानायक अमिताभ बच्चन व महिला प्रतिभागी परस्पर गले नहीं लग पा रहे हैं😜।
2) KBC में हॉट सीट पर आने वाले कई प्रतिभागी या तो उच्च आदर्शों वाले व त्याग और सद्भावना की प्रतिमूर्ति हुआ करते हैं जो अपने द्वारा जीती गई राशि का अधिकांश भाग परोपकार में लगाने का निश्चय किये होते हैं या फिर अपनी आर्थिक समस्याओं से इतना ग्रसित होते हैं😜 कि न केवल अमिताभ जी की सहानुभूति का लाभ पाते हैं, अपितु कुछ भोले दर्शक भी चाहने लगते हैं कि वह वहाँ से अच्छी राशि ले कर जाएँ।
3) इस सीजन में अभी तक में केवल महिलाएँ करोड़पति बनी हैं। सम्भवतः पुरुष-वर्ग बॉर्नविटा खा कर नहीं आते😜
छीनते अधिकार सारे
भाग्य के बनके विधाता
नोचते हैं पंख उसके
सोच में कीचड़ समाता
कल्पना ही नाचती है
धार दुर्गा रूप बेटी।।
तो बिखरूंगा क्या?
मुझे इंतज़ार है कि मुझ पर
कोई पहाड़ टूटे
या कोई बिजली गिरे,
कुछ तो ऐसा हो
कि मैं थोड़ा टूट जाऊं
और ख़ुशबू की तरह बिखर जाऊं.
जिन्हें जो चाहिए था वो साथ
ले गए, बहुत लुफ़्त आता
है लापरवाहियों
में।
वन्दन के संग हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंअसीम शुभकामनाओं के संग
उम्दा लिंक्स चयन
साधुवाद
सुन्दर संकलन.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर। लोहड़ी की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंलोहड़ी पर्व पर प्रकाश डालती भूमिका और बहुत सुन्दर लिंक्स से सजी अति सुन्दर चर्चा प्रस्तुति । लोहड़ी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सुसज्जित इस प्रभावी प्रस्तुति के लिए डॉ. शास्त्री 'मयंक' को बधाई एवं मेरी हास्य-व्यंग्य रचना "KBC -एक हास्यान्वेषण' को इस सुन्दर अंक में सम्मिलित करने के लिए मेरा हार्दिक धन्यवाद-आभार!
जवाब देंहटाएंलोहड़ी व मकर संक्रांति की सभी को असंख्य शुभकामनाएं। सुन्दर सामयिक प्रस्तुति व संकलन, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन आदरणीय सर, आप सभी को लोहड़ी पर्व एवं मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंलोहड़ी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय शास्त्री जी.🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा की प्रस्तुति के प्रति आभार... और आभार इसलिए भी कि इसमें आपने मेरी पोस्ट को भी शामिल किया 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह