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गुरुवार, जनवरी 21, 2021

देह शिवा वर मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरौं (चर्चा - 3953)

 आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है 

सिख धर्म की शुरूआत तद्कालीन समाज और धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने वाले एक सुधारवादी आन्दोलन के रूप में ही हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका अपना अलग स्वरूप विकसित हो गया| समय की माँग अनुसार गुरु गोबिंद सिंह ने इसे खालसा की नई पहचान दी, इसके वाबजूद हिन्दू-सिख आपस में कभी अलग नहीं हुए| हिन्दू देवी देवताओं की मान्यता गुरुजनों ने भी की, तभी तो गुरु गोबिंदसिंह जी ने शिवजी से वरदान मांगते हुए कहा -

देह शिवा वर मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरौं 

न डरौं अरि सों जब जाइ लरौं निश्चय कर अपनी जीत करौं। 

समय के साथ हर धर्म में कुछ कुरीतियाँ आ ही जाती हैं, लेकिन सिख पंथ आज  भी लंगर, सेवा और शुभ काम से पीछे न हटने के लिए जाना जाता है| खालसा एड का नोवेल शान्गुति पुरस्कार के लिए नामांकित होना इसे साबित करता है|  गोबिंद सिंह जी के जन्म पर आज मैं भी आशीर्वाद मांगता हूँ -

देह शिवा वर मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरौं 

चलते हैं चर्चा की ओर 

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    चुनी हुई लिंक के साथ आज का चर्चा मंच |
    |

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  2. उपयोगी लिंकों के साथ बहुत सुन्दर चित्रमयी चर्चा प्रस्तुति।
    धन्यवाद आपका आदरणीय दिलबाग सिंह विर्क जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. एक से बढ़कर एक सुंदर रचनाओं का संकलन।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. देह शिवा वर मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरौं, कितनी सुंदर प्रार्थना है यह, भक्ति योग, कर्म योग और ज्ञान योग तीनों समाये हैं इसमें, सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय दिलबागसिंह विर्क जी,
    गुरु गोबिंद सिंह जी के परम पावन जन्मदिवस की अनंत शुभकामनाएं 🙏
    बहुत सुरुचिपूर्ण संयोजन किया है आपने चयनित लिंक्स का। साधुवाद 🙏
    मेरी ग़ज़ल को आज की चर्चा में स्थान देने हेतु कृपया मेरा हार्दिक आभार स्वीकार करें।
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  7. सराहनीय भूमिका के साथ बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति आदरणीय सर।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

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