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शनिवार, जनवरी 09, 2021

'कुछ देर ठहर के देखेंगे ' (चर्चा अंक-3941)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से। 


सादर अभिवादन। 

शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।


      ठहराव का आह्वान सुस्ताने के उद्देश्य से उत्तम है क्योंकि थकान से उबरना भी नितांत आवश्यक है वहीं बेवजह या जबरन ठहर जाना नकारात्मक अर्थों की क़वाएद है। प्रकृति में होते निरंतर परिवर्तन जीवन की तरह हैं। सांसें चलते रहना या सक्रिय बने रहना जीवन है तो सांसों का ठहर जाना मृत्यु है। किसी नयनाभिराम दृश्य को देखकर मन सहज ही कह उठता है-
इसे कुछ देर ठहरकर देखा जाय। 

-अनीता सैनी 'दीप्ति'

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  

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गीत-प्रीत का व्याकरण "नीर पावन बनाओ करो आचमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रास्ते में मिलेंगे बहुत पेंचो-खम,
साथ में आओ मिलकर बढ़ायें कदम,
नीर पावन बनाओ करो आचमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
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कहते हैं कि उस के पास है, कोई कल्प तरु,
उस के साए में हम कुछ देर ठहर के देखेंगे।

इक बार जो देख ले, दोनों जहाँ से तर जाए,
समुद्र से भी गहन, आँखों में उतर के देखेंगे।
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अनसुलझे
चंद प्रश्न
हाथ में उगे
पथरीले
दुख-दर्द
हो गए सगे
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दम घुटने के बाद की बची सांसें 
खर्च तो करनी ही होती हैं 
एक उम्र उन्हें खींचती रहती है 
जीने के लिए 
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मोहब्बत सी होने लगी है अब फिर से 
लफ़्ज़ों के जुमलों को पढ़ने लगी हूँ जब से 
जाने क्या जूनून सा हो चला है अब तो 
बस ढूंढ़ती फिरती हूँ उस शख्स के किस्से 
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कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर   
जोखिमों की लम्बी क़तार को   
बच-बचाकर लाँघ जाना,   
क्या इतना आसान है   
बिना लहूलुहान पार करना?   
हर एक लम्हा संघर्ष है  
--

मेरा भक्त छात्र जगन्नाथ उर्फ़ जगन जब बी. ए. में था, तभी से वह मेरे निर्देशन में पीएच. डी. करना चाहता था. पीएच. डी. के लिए विषयों का चुनाव भी वह खुद ही करना चाहता था पर उसके लिए मेरी संस्तुति लेना वह ज़रूरी समझता था. गांधीजी के लाठी-प्रेम पर वह पीएच. डी. और नेहरूजी के जैकेट प्रेम पर वह डी. लिट. करना चाहता था. मैंने उसे जैसे तैसे राजी किया कि वह एम. ए. करने तक अपना पीएच. डी. और डी. लिट. वाला प्लान टाल दे.

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रीति‍-रि‍वाज

रास्ते से गुज़रते हुए अचानक नज़र पड़ी कि कुछ लोग हैं और दो युवती पेड़ के तने को पकड़ लिपटी हुई है।दूर से देख कर समझ नहीं आया तो पास गयी..

--

'सत्य"

 किसी भी लड़की के पास अगर रंग है तो आज ही 

अपनी क्लास टीचर को या फिर मुझे जमा करा दें ।" 

स्कूल की प्रधानाचार्या ने सख़्ती से प्रेयर-हॉल में छात्राओं

को संबोधित करते हुए कहा ।

--

आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 

-अनीता सैनी 'दीप्ति' 

11 टिप्‍पणियां:

  1. Anita ji, aapka behad shukriya meri rachana ko yahan shamil karne ke liye.
    Anya sathiyon ki rechanta padhne ka ye suavasar dene ka bahut bahut dhanyawad.
    Abhar!

    जवाब देंहटाएं
  2. हमेशा की तरह लाजबाव प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए
    आपका हृदयतल से आभार अनीता!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय अनीता सैनी जी,
    उम्दा संयोजन...
    उम्दा लिंक्स....

    बधाई एवं शुभकामनाएं 🌺🙏🌺
    सस्नेह,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  4. अनीता सैनी जी,
    मेरा नवगीत चर्चा मंच में शामिल के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
    यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    - डॉ. शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी महत्वपूर्ण लिंक्स के लिए साधुवाद 🌷

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन हेतु बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर नमन माननीय।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति अनिता जी, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर और पठनीय लिंकों की प्रस्तुति।
    --
    आपका आभार अनीता सेनी दीप्ति जी।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर संकलन,मेरी रचना को स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं

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