मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
--
भूमिका"प्रीत का व्याकरण"'प्रीत का बहुआयामी सागर'(डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘नन्द’) डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', --
कलम अपनी
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है
एक लम्बे समय से
आँखें निकाल कर बैठा है
कान खुले हैं मगर
कटोरा भर तेल डाल कर बैठा है
सुशील कुमार जोशी, उलूक टाइम्स
--
मानव को बोलने की अनोखी ताकत देते हुए ईश्वर ने कभी नही सोचा होगा कि यही शक्ति एक दिन अभिशाप बन जाएगी।
ये विडंबना ही है कि सब कुछ बोल सकने वाले मनुष्य एक दूसरे को सुनना नही चाहते जबकि वही मनुष्य एक ही तरह की आवाज़ निकालने वाले पक्षियों और झरनों की आवाज़ें सुनने के लिए लालायित रहते हैं।
कभी कभी हमारे पास कहने को कितना कुछ होता है पर कोई सुनने वाला नही होता। सुना ना जाना कह ना पाने से ज़्यादा दुखदायी होता है।
इस दुनिया को अब कहने वाले नही सुनने वालों की ज्यादा जरूरत है।
ये विडंबना ही है कि सब कुछ बोल सकने वाले मनुष्य एक दूसरे को सुनना नही चाहते जबकि वही मनुष्य एक ही तरह की आवाज़ निकालने वाले पक्षियों और झरनों की आवाज़ें सुनने के लिए लालायित रहते हैं।
कभी कभी हमारे पास कहने को कितना कुछ होता है पर कोई सुनने वाला नही होता। सुना ना जाना कह ना पाने से ज़्यादा दुखदायी होता है।
इस दुनिया को अब कहने वाले नही सुनने वालों की ज्यादा जरूरत है।
Amit Mishra 'मौन', अनकहे किस्से
--
तारीफ़ कैसे करूँ जो खुद चाँद की मूरत है,
चाँद भी अब पूछ रहा, कैसी तेरी चाँद की सूरत है।
--
--
Dr.Manoj Rastogi, साहित्यिक मुरादाबाद
--
कुछ स्मृतियाँ कुछ कल्पनाएँ
बुनता रहता है मन हर पल
चूक जाता है इस उलझन में
आत्मा का निर्मल स्पर्श....
यूँ तो चहूँ ओर ही है उसका साम्राज्य
घनीभूत अडोल वह है सहज ही ज्ञातव्य
पर डोलता रहता है पर्दे पर खेल
मन का अनवरत
बुनता रहता है मन हर पल
चूक जाता है इस उलझन में
आत्मा का निर्मल स्पर्श....
यूँ तो चहूँ ओर ही है उसका साम्राज्य
घनीभूत अडोल वह है सहज ही ज्ञातव्य
पर डोलता रहता है पर्दे पर खेल
मन का अनवरत
Anita, मन पाए विश्राम जहाँ
--
Anita, मन पाए विश्राम जहाँ
--
--
कल अब कहाँ है आता।
कल-कल करके काम है टल जाता।।
लाखों लोग रखते है इस पर भरोसा।
यह दिन होता है हर एक लिए अनोखा।।
कई जीवन है बस इसी पर टिकी।
कहीं चली न जाये यह कल फीकी।।
कल अब कहाँ है आता।
BAL SAJAG, बाल सजग
--
उस
अदृश्य सेतु बंधन में हैं शामिल,
कम्पित अधरों के तिर्यक
सुख, व्यथित देह -
प्राण में राहत
का मरहम
ज़रा सा,
अधूरेपन में ही है, जीने की अदम्य
अभिलाषा।
अदृश्य सेतु बंधन में हैं शामिल,
कम्पित अधरों के तिर्यक
सुख, व्यथित देह -
प्राण में राहत
का मरहम
ज़रा सा,
अधूरेपन में ही है, जीने की अदम्य
अभिलाषा।
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा
--
वह मुझे ताक रहा था,
उसकी आँखों में नफ़रत थी,
जैसे ही मैंने उसे देखा,
वह मुस्कराकर बोला,
हैप्पी न्यू इयर.
Onkar, कविताएँ
--
सधु चन्द्र, नया सवेरा
--
गुफाओं के समंदर में
डूबकर आज अन्दर मैं
धरा पर शीश ज्यों रक्खा
नींद का आ गया झोंका
बजे घड़ियाल घण्टे यूँ
मैं उनसे जा तनिक मिल लूँ
Jigyasa Singh, जिज्ञासा की जिज्ञासा
--
- "माँ"
- कल ही किसी ने कहा थामुझे "माँ"पर कुछ कहना हैमाँ का प्यार, माँ के संस्कारकुछ तो दे कर, कह कर जाती माँ.कैसे कहूँ सब के बीचतुम्हारी बहुत याद आती है माँ!
Meena Bhardwaj, मंथन
--
- " वृद्धाआश्रम
- "बनाम "सेकेण्ड इनिंग होम "
- " वृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ढहरे और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके है ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके है। आप के बच्चो के पास फुर्सत नहीं है कि वो आप के लिए थोड़ा समय निकले और आप की देखभाल करे।(कृपया ये लेख पूरा पढ़ेगे )
- मेरी नजर से, कामिनी सिन्हा
--
- सरकारी फ़ाइल में
- रहती है एक रेखा
- जिनके बीच खींची गयी है
- क्या आपने देखा ..?
- सम्वेदनाविहीन सत्ता के केंद्र को
- अपनी आवाज़ सुनाने
- चलते हैं किसान पैदल
Ravindra Singh Yadav, हिन्दी-आभा*भारत
--
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi
--
मोहब्बत की राहों में शिकस्त खाए बैठे हैं वो
ख़ामोश निगाहों से गुनाह क़बूल किये बैठे हैं वो
समय की चोट कहूँ या वक़्त का मरहम
सीने से लगाये बैठे हैं वो
लव ख़ामोश, आँखों से बयां कर बैठे हैं वो
भूल चुके जीना, ज़िंदगी को सीने से लगाये बैठे हैं वो
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया
--
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल
--
डॉ. जेन्नी शबनम, लम्हों का सफ़र
--
आज के लिए बस इतना ही...!
--
आदरणीय भाई साहव ,सादर नमस्ते
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक मुरादाबाद की रचना मंच परशामिल करने के लिए आपका आभार ।
अत्यंत सुन्दर श्रमसाध्य संयोजन... मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिये हृदय से आभार । सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर श्रमसाध्य संयोजन... मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिये हृदय से आभार । सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी ,नमस्कार ! रोचक, ज्ञानवर्धक रचनाओं को एक मंच पर उपलब्ध कराने के लिए आपका अभिनंदन करती हूँ..सुन्दर प्रस्तुतीकरण तथा श्रमसाध्य कार्य हेतु आपको बधाई..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से शुक्रिया..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंवाकई जिंदगी हर पल कुछ न कुछ सिखाती है, बशर्ते कोई सीखने को लालायित हो, बेहतरीन रचनाओं के सूत्र से सजी चर्चा, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा अंक ! साधुवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति...मेरी पोस्ट को चर्चाअंक में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति व संकलन के साथ चर्चा मंच मुग्ध करता हुआ - - मुझे शामिल करने हेतु आभार आदरणीय शास्त्री जी, नमन सह।
सही कहा आपने सर, जीवन का हर पल कुछ सिखा कर ही जाता है, बहुत ही सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति, मेरी एक पुरानी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपका एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर ।