सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
बसंत की छटा बिखरने लगी है
शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं,
कोहरे की श्वेत चादर ओढ़े-ओढ़े
बसुंधरा रह-रहकर मुस्करा रही है।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
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किलकारी की गूँज सुनाती,
परिवारों को यही बसाती,
दोनों कुल का मान बेटियाँ।
आन-बान और शान बेटियाँ।।
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लता-बेल सी बढ़ती जातीं,
सबके दुख-सुख पढ़ती जातीं,
मात पिता की जान बेटियाँ।
आन-बान और शान बेटियाँ।।
संधि की तरह रहते हैं, देह से
लिपटे हुए अनगिनत
सुरभित क्षणों के
आलेख, कुछ
आयु से
दीर्घ
"सुनो! तुम जबाब क्यों नहीं दे रही हो? मैं तुमसे कई बार पूछ चुका हूँ, क्या ऐसा हो सकता है कि किसी भारतीय को गोबर का पता नहीं हो ?"
"क्या जबाब दूँ मेरे घर में ही ऐसा हो सकेगा.. मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी..!"
"आप दोनों आपस में ही बात कर रहे हैं और मुझे मेरे ही कमरे में कैद कर तथा मुझे ही कुछ बता नहीं रहे हैं। क्या मुझे कोई कुछ बतायेंगे?"
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तथाकथित अपनों के
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
अद्यतन लिंकों के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग के दो-दो लिंक लगाने के लिए आभार।
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,
जवाब देंहटाएंपठनीय एवं रुचिकर लिंक्स का बेहतरीन संयोजन... साधुवाद 🙏
मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी भूमिका के साथ शानदार सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंसम्मलित रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
नमस्कार रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंबसंत आगमन पर सुंदर कविता...शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं,
कोहरे की श्वेत चादर ओढ़े-ओढ़े
बसुंधरा रह-रहकर मुस्करा रही है। ....के साथ सभी ब्लॉग बेहद शानदार हैं
Nice links
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या को सुरभित करता हुआ चर्चा मंच , सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय रवींद्र जी - - नमन सह।
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