शीर्षक पंक्ति: आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
मिर्ज़ा ग़ालिब ख़्वाहिश पर कहते हैं-
"हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसीं कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।"
ज़िंदगी ख़्वाहिशों, मुरादों, अरमानों, हसरतों का ख़ूबसूरत पुलिंदा है जिसमें परत-दर-परत एहसासों की ख़ुशबू बसती है जो ज़िंदगी को रवानगी देती है।
ख़्वाहिशें हैं तो ज़िंदगी ऊर्जावान लगती है क्योंकि इन्हें पूरा करने के यत्न रचनात्मक हैं।
कुछ ख़्वाहिशें फेंटसी की तरह होती हैं जिन्हें वजूद में लाना मुमकिन नहीं होता है तो वे कल्पना में भी सुकून दे जातीं हैं।
ख़्वाहिशों का संबंध कभी-कभी योग्यता से जुड़ जाता है तब ऐसीं ख़्वाहिशें विशिष्टता के तावीज़ में बंद हो जातीं हैं।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गंगा जी के तट पर, अपनी खिचड़ी खूब पकाओ,
खिचड़ी खाने से पहले, तुम तन-मन शुद्ध बनाओ,
आसमान में खुली धूप को सूरज लेकर आया।
गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।।
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एक अहसास..
सर्द सी छुवन लिये
स्वेटर के रेशों को चीर
समा गया रूह में
सिहरन सी भर कर
न्यूज़ में..
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अब आत्मस्मरण ओढ़ रहा है , क्षीणता का आवरण
तरंग हीन हो कर , कहीं और अंतर्धान हुआ यह मन
विश्रांति की इस बेला में , वज्र नींद आकर कह रही
संयोग श्रम से ही श्लथ हुआ है , तेरा तंद्रित यह तन
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हम कई बार निकले, किसे दिखाते
ज़ख़्मों के निशां, क्यूँ कर
कोई बेवजह हो
परेशां, वो
हमारे
हिस्से के भंवर थे, लिहाज़ा हम डूब
के उस पार निकले, वो फ़क़त
अभिनय था, या
असलियत,
ज़ख़्मों के निशां, क्यूँ कर
कोई बेवजह हो
परेशां, वो
हमारे
हिस्से के भंवर थे, लिहाज़ा हम डूब
के उस पार निकले, वो फ़क़त
अभिनय था, या
असलियत,
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एक अदद दरिया लिख देना मेरी ख़ुश्क हथेली में
जैसे मीठापन लिख डाला रब ने गुड़ की भेली में
पत्ता-पत्ता शोर लिखा है, फूलों-फूलों में खुशबू
एक कहानी लिखी हुई है मौसम की अठखेली में
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हम राह तुम्हारी देखेंगे ।
हम किसी हाल में रह लेंगे ।।
अपने मन को समझा लेंगे,
तुम देश के खातिर चले गए ।
प्रहरी तुम थक तो नहीं गए ।
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
सुप्रभात !अप सभी का दिन शुभ हो |मुझे शामिल करने के लिए हार्दिक आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत मनोयोग से की गयी श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
सारगर्भित भूमिका,बेहतरीन पठनीय सूत्रों से सजे सुंदर अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
सादर।
आज की चर्चा के शीर्षक में मेरे सृजन को मान देने के लिए तहेदिल से आभार अनीता । विविधताओं से परिपूर्ण सुन्दर सूत्रों से सजी सार्थक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स, बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति।मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता सैनी जी,
जवाब देंहटाएं"ख़्वाहिशें हैं तो ज़िंदगी ऊर्जावान लगती है" बिलकुल. सही कहा आपने...."ख़्वाहिश" शीर्षक के अंतर्गत इस्तेमाल मीना भारद्वाज जी की कविता पंक्तियों - "एक अहसास../सर्द सी छुवन लिये/ स्वेटर के रेशों को/ चीर समा गया रूह में... की ख़ूबसूरती ने मन को छू लिया। बहुत अच्छी चर्चा, साधुवाद 🙏
मुझे प्रसन्नता है कि मेरी पोस्ट को भी आपने शामिल किया है। हार्दिक आभार 🙏🌷🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
प्रिय अनीता जी, रोचक एवं सारगर्भित रचनाओं से सुसज्जित चर्चा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई एवं श्रमसाध्य कार्य हेतु आपका नमन एवं वंदन..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
जवाब देंहटाएंऔर कुछ ख्वाहिशें ऐसी केन्द्र बिन्दु हो जाती हैं कि जहाँ सबों का मिलन होता है ... ये मंच ऐसा ही है । इस मंच पर सबों को मिलाने वाले और भी महत्वपूर्ण हैं ही । हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आभार ।
जवाब देंहटाएंज़िंदगी ख़्वाहिशों, मुरादों, अरमानों, हसरतों का ख़ूबसूरत पुलिंदा है जिसमें परत-दर-परत एहसासों की ख़ुशबू बसती है जो ज़िंदगी को रवानगी देती है - - ख़ूबसूरत अंदाज़ लिए हुए चर्चा मंच का आग़ाज़ एक सुखद अनुभव देता है, सभी रचनाएं असाधारण हैं, मुझे शामिल करने हेतु हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी, नमन सह।
जवाब देंहटाएं"ख्वाहिश"की बेहतरीन व्याख्या, लाजबाव भुमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का संकलन प्रिय अनीता, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं
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