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सोमवार, जनवरी 11, 2021

'सर्दियों की धूप का आलम; (चर्चा अंक-3943)

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 


सर्दियों की धूप का आलम 

लगता बहुत प्यारा हमें,

कुहाँसा चीर निकला भानु 

लगता बहुत न्यारा हमें। 

-रवीन्द्र सिंह यादव 

आइए अब पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद रचनाएँ- 

--

 दोहे "विश्व हिन्दी दिवस" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

दो हजार छः से मिला, हिन्दी को उपहार।
आज विश्व हिन्दी दिवस, मना रहा संसार।।
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हिन्दी है सबसे सरल, मान गया संसार।
वैज्ञानिकता से भरा, हिन्दी का भण्डार।।
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बड़े दिनों बाद आवाज़ लगाई 
सूखे पत्तों से सजे आँगन ने
बाहें फैलाए  स्मृतियाँ 
स्वागत में प्रीत दीप जलाए 
वात्सल्य वीरानियों में
दहलीज़ पर सीलन अपनेपन की 
दीवारों की दरारों से झाँकता स्नेह
मन की आवाज़ में मैं बह चली
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शब्दों के अर्थ
जब अनर्थ होने लगे
तो साफ है कि
बाजार ज्यादा से ज्यादा 
घातक हथियारों की 
आपूर्ति चाह रहा है .
--

जीवन  की हलचल में

उठती नित नई तरंगों में 

कभी हाथ पकड़ 

जीने की राह

दिखला दे  कोई...

--

जो कभी आया नहीं | ग़ज़ल | डॉ.

 वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

आजकल मेरी ग़ज़ल रूठी हुई है 

जो बनी मरहम सदा सुखदा रही है 


काश, कोई तो उठा लेता जतन से 

धूप आंगन में पड़ी कुम्हला रही है 

--

पुरानी धुन में

आज की भोर 
फ़िर दिखी
उठाए बादलों को अपनी गोद में
आकाश होने को आतुर
भोर ने छोड़ दिए कई दृश्य अनदेखे
अटके थे जो जंगली घास पर
प्रेम की तलाश में
पंछियों ने गाए गीत
--
यह शरीर को ऊर्जावान बनाता है ! थकान महसूस नहीं होने देता ! सुस्ती दूर करता है ! शरीर में लाभकारी बैक्टेरिया की बढ़त होती है ! शरीर की बढ़ी हुई गर्मी कम होती है ! पेट के लिए बहुत मुफीद है ! रक्तचाप को नियंत्रित करता है 
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कहाँ गए ?  थे हवामहल ही 
कहाँ गया वह लक्ष्य साधता, 
मंजिल पर ही बैठ मुसाफिर 
पूछा करता था जो रस्ता ! 
--
सभी हैं सवार, एक ही नैया, एक ही
खेवैया, उन्मुक्त है नीला पाल,
दोनों तरफ खेलते हैं, सुख
दुःख के उठते गिरते
तरंग, बहे जा रहे
हैं सभी समय
स्रोत में,
दूर 
--

हाल-ए-दिल अब बतलाने से डरता हूँ

नाकाम रहे उस अफ़साने से डरता हूँ।

गाँवों के ये टूटे झोंपड़ और रठाने ही अच्छे

तेरे व्यस्त शहर के वीराने से डरता हूँ।

तू नही मिला तो गैरों से अय्याशी क्या

--

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सूत्रों का संयोजन । चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार रवींद्र सिंह जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक सूत्रों से सजा सुंदर अंक आदरणीय रवींद्र भाई. सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएं. दिवंगत प्रधान मंत्री आदरणीय लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन🙏🙏 आपको हार्दिक बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी दिवस की शुभकामनाएं ! सुंदर प्रस्तुति आज के चर्चा मंच के अंक में, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. काश लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया कोहरा भी छंट सके

    जवाब देंहटाएं
  5. रवीन्द्र जी
    सम्मिलित कर सम्मान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही उम्दा संकलन।सभी रचनाएँ अति सुंदर
    मुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार श्रीमान

    जवाब देंहटाएं
  7. सर्दियों की धूप सी ही गुनगुनी चर्चा के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  8. विश्व हिंदी दिवस की असंख्य शुभकामनाएं, विविध रंगों से सरोबार चर्चा मंच मुग्ध करता हुआ, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय रवींद्र जी - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  9. सर्दियों की धूप का आलम
    लगता बहुत प्यारा हमें

    आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,
    वाकई सर्दियों की धूप की गुनगुनाहट बहुत प्यारी लगती है। बहुत अच्छे लिंक्स संजोए हैं आपने।
    मेरी पोस्ट को इस चर्चा में शामिल करने हेतु आपके प्रति हार्दिक आभार 🙏🌷🙏
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर और संग्रणीय संकलन।
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं

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