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Sunday, January 03, 2021

"हो सबका कल्याण" (चर्चा अंक-3935)

मित्रों!
नये वर्ष-2021 की मेरी पहली चर्चा में 
आपका स्वागत है।
देखिए बिना किसी भूमिका के
मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहे "कुहरे की सौगात" 

नभ पर छायी है घटा
ठिठुर रहा है गात।
नये साल के साथ मेंकुहरे की सौगात।१।
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कुहरा आफत बन गयाबदले जीवन ढंग।
अच्छे दिन की आस में, छन्द हुए बेरंग।२।

 उच्चारण  

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     मुझे बहुत प्रसन्नता होरही है अपने  (बारहवा काव्य संकलन ) अपराजिता का कवर पेज आपसे सांझा कर के |
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किसको क्या मिला? 

 तुच्छताओं को 
स्थाई स्थान ढूँढ़ना था 
तो राजनीति में समा गईं
हताशाओं को 
तलाश थी मुकम्मल ठिकाने की 
तो कापुरुष में समा गईं 

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"नई सोच के साथ,  
नया साल मुबारक हो" 

" 2021 "आख़िरकार नया साल आ ही गया। कितने उत्साह, कितने उमंग के साथ आज रात को पुराने साल की विदाई और नए साल के स्वागत का जश्न चलेगा। पुराने साल को ढेरों बद्दुआएं देकर कोसा जायेगा और नए साल से कई नयी उम्मीदें लगायी जायेगी। उम्मीदें लगाना, अच्छा सोचना और आशावान होना सकारात्मक सोच है जो होना ही चाहिए। 
मगर सवाल ये है कि - किस आधार पर हम नए साल में नए बदलाव की कामना कर सकते हैं ? 
सफर के रोचक किस्से कामिनी सिन्हा

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  • (नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँँ)

अभिनन्दन
हर्षित जन गण
बीति बिसार
आगत का स्वागत
वर्ष नवल
समय अविरल
सत्य अटल
हो कर गतिमान
करें उर्जित
अपने मन प्राण
मंगलमय
लक्ष्य करें संधान
ओ वसुन्धरा!
ह़ो प्रसन्न वदन
दो वरदान
उपजे धन-धान्य
धरती पुत्र
श्रम से हो हर्षित
हो सबका कल्याण

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सागर: साहित्य एवं चिंतन | पुनर्पाठ 15 | जगत मेला चलाचल का | काव्य संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह
Dr. Varsha Singh
प्रिय ब्लॉग पाठकों, स्थानीय दैनिक समाचार पत्र "आचरण" में प्रकाशित मेरे कॉलम "सागर : साहित्य एवं चिंतन " में पुस्तकों के पुनर्पाठ की श्रृंखला के अंतर्गत पंद्रहवीं कड़ी के रूप में प्रस्तुत है - सागर नगर के वयोवृद्ध साहित्यकार निर्मलचंद "निर्मल" की पुस्तक "जगत मेला चलाचल का" का पुनर्पाठ।

शांति की दूकान में भी लोभ की पट्टी चढ़ी

क्या है पावन, क्या अपावन, समझ में दुविधा बढ़ी

शुद्धता के सूत्र कैसे किस तरह समझा सकूं

कौन से पथ पर चलें कि मार्ग सीधा पा सकूं

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Ambition 
पी.सी.गोदियाल "परचेत", 'परचेत'  
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नवर्षगामन पर विशेष  (कविता) 
नव वर्ष का करते हैं अभिनन्दन!

प्रकृति भी कर रही नव श्रृंगार है,
दिशायें भी खोल रही नव पट-द्वार हैं।
मधु बरस रहा, हेमंत भी तरस रहा,
लताओं, पुष्पों से सजा बंदनवार है।

धुंध में घुल रहा सुगन्धित सा - मन ।
नव वर्ष का करते हैं अभिनंदन! 
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वैदिक वाङ्गमय और इतिहास बोध (१७) 

(भाग - १६ से आगे)

ऋग्वेद और आर्य सिद्धांत: एक युक्तिसंगत परिप्रेक्ष्य - (ढ)

(मूल शोध - श्री श्रीकांत तलगेरी)

(हिंदी-प्रस्तुति  – विश्वमोहन)

दशमलव के विकास की चौथी अवस्था 

दशमलव पद्धति के विकास की चौथी अवस्था मात्र उत्तर भारत की भारतीय आर्य भाषाओं को ही प्राप्त हुई।  यहाँ तक कि सिंहली सरीखी उत्तर भारत की वे आर्य भाषाएँ जो यहाँ कि मिट्टी से बाहर चली गयी, वे भी विकास की इस अवस्था से वंचित रहीं। इस अवस्था में भाषाओं में १ से १० तक की संख्याएँ, दहाई की २० से ९० तक की संख्याएँ और १०० की संख्या के लिए शब्दों की उपलब्धता है। ११ से १९ तक की संख्यायों के लिए एक ख़ास ढंग से शब्दों का गठन है। बाक़ी संख्यायों ( २१-२९, ३१-३९, ४१-४९, ५१-५९, ६१-६९, ७१-७९, ८१-८९ और ९१-९९) के लिए शब्दों का गठन दूसरे प्रकार का है। गठन का यह तरीक़ा न तो सीधे-सीधे ढंग से ही है और न ही इनकी कोई नियमित व्यवस्था ही है।  पूरी दुनिया में अपने आप में यह ढंग इतना अनोखा है कि इसमें १ से १०० तक की संख्यायों को रटने के सिवा और कोई चारा शेष नहीं रहता है। उदाहरण के लिए हम हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं में संख्यायों के लिए प्रयुक्त शब्दों के गठन पर विचार करें।

 हिंदी   

१-९ : एक, दो तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ, दस। 

११-१९ : ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पंद्रह, सोलह, सत्रह, अठारह, उन्नीस।

दहाई अंक १०-१०० : दस, बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे, सौ। 

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नया साल है... 

और 

अंत से आरंभ हो जाना 

नया साल है।

सधु चन्द्र, नया सवेरा 
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नव-परिचय 
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा,  
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कामाख्या शक्तिपीठ 
कामाख्या शक्तिपीठ असम राज्य के गुवाहाटी के पश्चिम में 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या मंदिर जो 51 महाशक्ति पीठो मे से एक है। यहां सती माता का योनि अंग गिरा था इसलिए इसे योनिपीठ भी कहा जाता है। कामाख्या मंदिर में प्रवेश करते ही एक बहुत बड़ा हॉल है।उस हॉल के बीच में हरगौरी के रुप में कामेश्वर शिव-कामेश्वरी देवी की युगल मूर्ति स्थापित है। सीढ़ियां उतर कर गर्भगृह है। कामाख्या योनि पीठ से निरंतर जल बहता रहता है। यह जल कहाँ से आता है और कहाँ जाता है, यह एक रहस्य है। गर्भगृह में देवी माता की योनि रूपा शिला विद्यमान है, जो वस्त्र से ढकी रहती है और... 
अंजना, power 
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पारदर्शी शब्द 
कुछ मृग मरीचिका,
खिड़की पार की दुनिया में
तैरते हैं, कुछ पारदर्शी
शब्द, धुंध की
गहराइयों
में वो
खोजते हैं गिरते हुए बूंदों की भाषा... 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा : 
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आज के लिए बस इतना ही...!
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14 comments:

  1. वन्दन व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका आदरणीय

    श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद

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  2. सुंदर संकलन की बधाई और हार्दिक आभार!!!

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  3. शुभ प्रभात,
    नए साल की इस प्रस्तुति का हिस्सा बनना बड़े ही सौभाग्य की बात है। आभार पटल।

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  4. बहुत सुन्दर भूमिका के साथ सुन्दर लिंक्स प्रस्तुति । मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।

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  5. बहुत ही उम्दा।आपको एवं चर्चा मंच के सभी सम्मानित मित्रों को नवबर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, शास्त्री जी🙏

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  6. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏 मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर

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  7. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।सभी रचनाकारो को हार्दिक बधाई।
    सादर

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  8. आदरणीय शास्त्री जी,
    निश्चित रूप से आप जितने उत्कृष्ट साहित्य सृजनकार हैं, उतने ही उत्कृष्ट साहित्य पारखी भी.... आज की यह चर्चा इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
    इस चर्चा में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु आभार 🙏💐🙏🏻
    पुनः नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  9. नये साल के इस शानदार गुलदस्ते में सजना एक सुंदर अनुभुति है,मैं अभिभूत हूं सधन्यवाद आदरणीय।
    सभी सह रचनाकारों , पाठकों सभी चर्चाकारों को नववर्ष पर अंतर हृदय से अशेष शुभकामनाएं।
    बहुत सुंदर अंक शानदार लिंक।

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  10. बहुत ही सुंदर चर्चा अंक आदरणीय सर, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

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  11. आकर्षक संकलन व सुन्दर प्रस्तुति के साथ चर्चा मंच विभिन्न रंगों को बिखेरता सा, मुझे जगह प्रदान करने हेतु ह्रदय तल से आभार आदरणीय शास्त्री जी - - नमन सह।

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  12. धन्यवाद मेरी किताबअप्राजिता का कवरपेज देख मुझे बहुत प्रसन्नता हुई इस हेतु आभार सहित धन्यवाद।

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  13. बहुत बहुत आभार आपका ।

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  14. बहुत बढ़िया प्रस्तुति। मेरे लेख को इस चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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