Followers



Search This Blog

Friday, January 22, 2021

"धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये"(चर्चा अंक- 3954)

सादर अभिवादन ! 

शुक्रवार की चर्चा में आप सभी विज्ञजनों का मंच पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !

चर्चा का शीर्षक चयन -आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी  की गीतिका से ।

अब आपके अवलोकनार्थ  ब्लॉग जगत के रचनाकारों के हृदयग्राही भावों से सम्पन्न चंद रचनाओं के सूत्र

आज की चर्चा में प्रस्तुत हैं-

--

रिवाज़-रीत बन गये -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

देह थी नवल-नवल, पंक में खिला कमल

तोतली ज़ुबान की, बातचीत बन गये


सभ्यता के फेर में, गन्दगी के ढेर में

मज़हबों की आड़ में, हार-जीत बन गये


आइना कमाल है, 'रूप' इन्द्रज़ाल है

धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये

***

एक मोती क्या टूटा जो उस माल से..

एक मोती क्या टूटा जो उस माल से

हर इक मोती को खुलकर जगह मिल गयी


एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से

नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी


तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर

त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी

***

राह का गोपन - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह

( नवगीत संग्रह )

झोपड़ी के

द्वार में सूखा,

खेत का महका हुआ यौवन

खा गया है

मौसमी धोखा


बिम्ब हरियाला 

उगाए

अब नहीं उगता।

***

अब कोई सवाल नही

चेतन सुबह होते ही कहाँ चल दिए..?

मॉम हजार बार कहा है कि घर से निकलते समय मत टोका करो..चेतन बड़बड़ाया।

अच्छा अब मेरे बोलने से टोक लगती है तुम्हें..?रुक बहुत दिनों से तेरे कान नहीं उमेठे इसलिए आवारागर्दी बढ़ गई है तेरी..!

***

अवशेष .....

प्रायोजित संगोष्ठियां

मुक्ति की बातें

विद्रुप ठहाके

इन सबमें

एक दबी हुई हँसी 

मेरी भी है .

***

मंत्रमुग्ध सीढ़ियां - -

शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत -

ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों

से ले जाते हैं पाताल में,

कुछ अंतरंग माया,

कुछ सम्मोहित

छाया, प्रेम,

ग्लानि

ढके रहते हैं धुंध के इंद्रजाल में,

***

चिंता का विषय बनता, ''एजिज्म''

युवा पीढ़ी यदि अपने कर्मों से तत्काल फल दे सकती है तो बुजुर्ग अपने अनुभवों की छाया से उन्हें लाभान्वित कर सकते हैं। इसलिए जरुरी है कि इस प्रवृति से बचा जाए। क्योंकि कठिन समय, संकट और मुश्किलात में बुजुर्गों की नसीहत, उनकी बुद्धिमत्ता और उनके अनुभव ही काम आते हैं।

***

चुपके से एक बूँद बरसी - सुजाता देवराड़ी

चुपके से एक बूँद बरसी

चींटी हूँ मैं वो नदी सी

माटी के मेरे घर में आई

सुराही की वो धार जैसी

रूह मेरी डर गई

घर मेरा कहीं बह न जाए

***

सबसे बड़ी भेंट

दुनियाँ  की  सबसे बड़ी भेंट है। 

किसी को प्रेम व स्नेह देना 

जितना बड़ा उपहार है ।

उससे कहीं बड़ा 

उसे पाना साक्षात् ...

आत्मसम्मान है ।।

***

चाँद पर चलेंगे

कभी जब चाँद पर चलना तो धीरे से  बुला लेना 


चले आयेंगे हम छुपकर जहाँ की उन निगाहों से 

जिन्होंने कल कहा था राह में काँटे बिछा देना 


बहुत दिन हो गए पकड़ी नहीं रेशम सी वो उँगली 

मेरी जुल्फों में धीरे से वही उँगली फिरा देना

***

फ़र्क -डॉ. वर्षा सिंह  (संग्रह - सच तो ये है )

अपने गांव - शहर का पत्थर,भला सभी को लगता है 

चाक हृदय हो जाता है जब कभी कहीं वह बिकता है 


पकने को दोनों पकते हैं, फ़र्क यही बस होता है

नॉनस्टिक में सुख पकते हैं, हांडी में दुख पकता है 


नाम वही चल पाता है जो यहां बिकाऊ होता है 

उसे भुलाया जाता है जो स्वाद ज़हर का चखता है

***

भारतीय क्रिकेट टीम के संकटमोचन :

 बिन्नी और मदन

अब जबकि भारतीय क्रिकेट दल द्वारा शक्तिशाली ऑस्ट्रेलियाई दल को उसके घर में ही पराजित करके विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप में  अंकतालिका के शीर्ष पर विराजमान होने पर भारतीय क्रिकेट-प्रेमी मंत्रमुग्ध हो रहे हैं तो मुझे दो ऐसे भारतीय हरफ़नमौला (ऑलराउंडर) खिलाड़ियों की याद आ रही है जिन्होंने न केवल १९८३ के विश्व कप में एवं उसके दो वर्षों के भीतर ही ऑस्ट्रेलिया में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में भारत की ऐतिहासिक विजयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।

***

आज का सफर यहीं तक…

  फिर मिलेंगें 🙏🙏

"मीना भारद्वाज"

--

17 comments:

  1. बहुत सुन्दर श्रमिसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
    मेरे गीत की शीर्ष पंक्ति को प्रमुखता देने के लिए
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति।
    मेरे गीत की शीर्ष पंक्ति को प्रमुखता देने के लिए
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    ReplyDelete
  3. एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन ।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय मीना दी।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

    ReplyDelete
  5. सुंदर लिंक्स से सुसज्जजित चर्चा... मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार....

    ReplyDelete
  6. मीना भारद्वाज जी,
    आभारी हूं कि आपने मेरा नवगीत चर्चा मंच में शामिल किया है।
    आपको हार्दिक धन्यवाद 🌹🙏🌹
    - डॉ शरद सिंह

    ReplyDelete
  7. मोती चुन-चुन कर लाने जैसे सुंदर पठनीय सामग्रियों से परिपूर्ण लिंक्स प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद 🌹🙏🌹

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर लिंक्स, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।

    ReplyDelete
  9. मीना जी, सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार

    ReplyDelete
  10. आनंदम् आनंदम् ... अति सुन्दर चर्चा के लिए हार्दिक आभार ।

    ReplyDelete
  11. प्रिय मीना भारद्वाज जी,
    आपके द्वारा श्रमपूर्वक तैयार की गई आज इस चर्चा में मेरी स्वयं की पोस्ट का मौज़ूद होना मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    हार्दिक आभार,
    डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  13. सभी रचनाओं से अवगत कराने के लिए शुक्रिया। सभी रचनाये बहुत उम्दा लगी।

    ReplyDelete
  14. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    ReplyDelete
  15. आदरणीय मीना जी, सादर अभिवादन ! सुन्दर सारगर्भित रचनाओं से परिचय कराने के लिए आपका हृदय से आभार..इस चर्चा में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपको मेरा नमन और वंदन..सादर सप्रेम..जिज्ञासा सिंह..

    ReplyDelete
  16. आदरणीय मीना जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
    इस चर्चा में प्रस्तुत सभी लिंक्स बहुत ही अच्छे है पढ़कर अच्छा लगा

    ReplyDelete
  17. उम्दा लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति...
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद।

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।