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शनिवार, जनवरी 30, 2021

'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक- 3962)

चर्चा का शीर्षक चयन- आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी।


सादर अभिवादन। 

शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

         'कोहरा छँटना' या 'कोहरा छँटने वाला है' वाक्यांश हम एक मुहावरे की तरह इस्तेमाल करते हैं जिसका अर्थ है स्थिति होना या स्थिति स्पष्ट होने वाली है। प्रकृति की अनुपम देन है कोहरा जिसके अनेक ज्ञात-अज्ञात लाभ-हानि हैं फिर भी हम कोहरे का इंतज़ार करते हैं क्योंकि यह सृष्टि का मनमोहक सृजन है। कोहरे पर अनेक काव्य रचनाओं का सृजन हुआ है जो हमें अनेक आयामों से परिचित कराता हुआ प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति आकर्षित एवं आगाह करता है। 
आधुनिक जीवन शैली में कोहरा गति में बाधक सिद्ध हो रहा है साथ ही अनेक दुर्घटनाओं का हेतु भी बन रहा है। 
-अनीता सैनी 'दीप्ति'   

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ- 
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धन से सब कुछ मिल जायेगा
लेकिन मिलता प्यार नहीं,
इससे बढ़ कर दुनिया में
होता कोई उपहार नहीं,
नादिरशाही से कोई भी
खिलता पीत कनेर नहीं।
कुहरा छँटने ही वाला है
फिर होगा अन्धेर नहीं।।
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किसी ने पूछना नहीं है
 क्यों नहीं दिख रहे हो
किसे मतलब है
कहने से
किसलिये
बकवास करने से आजकल बच रहे हो
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ख़्वाब मत देखना,और मुझको दिखाना भी नहीं
खुल गयी आँख मेरी नींद अब आना भी नहीं
मैंने जो दी है किताबें उन्हें सादा रखना
मोर के पंख ,कोई फूल सजाना भी नहीं
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रेशमी कोशों के मध्य चलता रहता
है निःशब्द जीवन का रूपांतरण,
विशाल वृक्ष हों या कोई
सूक्ष्म खरपतवार,
हर एक पल
में होता
है
कहीं न कहीं जीवन का अवतरण -
निःशब्द जीवन का रूपांतरण।
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पयोधर से निलंबित हुई
अच्युता का भान एक क्षण
फिर वो बूंद मगन अपने में चली
सागर में गिरी
पर भटकती रही अकेली
उसे सागर नही
अपने अस्तित्व की चाह थी
महावीर और बुद्ध की तरह
--
अपने में खोया

कुछ जागा कुछ सोया

एकाकी मन

बंजारा बन...

ठौर अपना सा ढूँढे

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चश्मे... मतिभ्रम

सोचती हूँ
भ्रमित लेंस से बने
चश्मे उतार फेंकना ही
बेहतर हैं,
धुंध भरे दृश्यों 
से अनभिज्ञ,
--
  मैंने आँसू से कितने दीप जलाये , तुम क्या जानो ?
पल गिन गिन पन्थ निहारा ,
 नयनों के दीप जला कर |
 मन की खिलती आशा से ,  
 नव वन्दनवार सजाकर 
 मैंने जग जगकर कितने कल्प बिताये , तुम की जानो ?
--
बदलाव का ये दौर है..
और ये एक वक्त है महज़..!
रहेगी तुम्हारी.. ना हमारी ही...
देखो होगा निर्माण कुछ..
होगा कुछ तहस नहस..!
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दिल्ली निवासी मुंशी सदासुखलाल 1793 के आसपास कंपनी सरकार की नौकरी में चुनार के तहसीलदार थे। बाद में नौकरी छोड़कर प्रयाग निवासी हो गए और अपना समय कथा वार्ता एवं हरिचर्चा में व्यतीत करने लगे। उन्होंने श्रीमद्भागवद् का अनुवाद 'सुखसागरनाम से किया। अलबत्ता इस ग्रंथ की कोई प्रति उपलब्ध नहीं हैं। शायद वह पुस्तक अधूरी रही। उन्होंने 'मुतख़बुत्तवारीखमें अपना जीवन-वृत्त लिखा है।
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दूसरे गाँव में जाते ही बुढ़िया के सारे के सारे मुर्गेअपनी खातिरदारी देखकर फूल कर कुप्पा हो गएउनमें घमंड आ गया और घमंड के मारे वो एक दूसरे के प्रतिद्वंदी बनकर राजनीति में प्रविष्ट हो गए.अब हर-एक मुर्गा अलग-अलग समय पर अलग-अलग ढंग की बांग देने लगा.
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 कहते हैं कि ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है ! किसान आंदोलन के नाम पर हुए इस हुड़दंग से कइयों के चेहरे बेनकाब हो गए हैं ! ये तो शीशे की तरह पहले ही साफ़ था कि इन कानूनों की आड़ ले कर लुटे-पिटे, हारे-थके, हाशिए पर सिमटा दिए गए कुछ दल बाहरी ताकतों की शह पर अपने अस्तित्व के लिए आखिरी लड़ाई जरूर लड़ेंगे ! वार्ता के बार-बार असफल करवाए जा रहे प्रयास इसके गवाह हैं। अब तक अवाम की जो थोड़ी-बहुत सहानुभूति आंदोलन के साथ थी. वह भी इनकी इस हिमाकत से तिरोहित हो चुकी है। अब तो हर आम नागरिक की ख्वाहिश यही है कि जब इनका असली सूरत ए हाल सबके सामने आ चुका है तो इनकी हर उद्दंडता का माकूल व कठोर जवाब दिया जाए। 
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                    मैंने कुछ वर्षों पूर्व किसी भी कथा के नायक की एक हिंदी उपन्यासकार द्वारा दी गई अग्रलिखित परिभाषा पढ़ी थी : 'नायक वह है जो दिलों पर छाप छोड़ जाए। इस नज़रिये से 'विश्वास और मैंमें कोई नायक नहीं है (यहाँ नायक में नायिका भी सम्मिलित है) । लेखिका ने 'मैंद्वारा विश्वास को लिखे गए विस्तृत पत्र के माध्यम से 'प्रेमऔर 'प्रेम के भ्रमके अंतर को सराहनीय ढंग से स्पष्ट किया है । अच्छा यही है कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अध्ययन के साथ-साथ प्रेम की उलझन को भी सुलझाने में लगे युवक-युवती आसक्ति (इनफ़ैचुएशन) और प्रेम (लव) के अंतर को तथा भावी जीवन के लिए सम्बन्धों में प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) के महत्व को भली-भांति समझ लें क्योंकि - 

  और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा 


--

आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    --
    आपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।

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  2. सुन्दर और सराहनीय प्रस्तुति अनीता जी ! आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
    चर्चा के प्रारंभ में कोहरे पर आपका मंतव्य रुचिकर लगा।
    बहुत अच्छी चर्चा-संयोजन हेतु बधाई !!!!
    शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत सराहनीय प्रस्तुति | इसके लिए बधाई भी और हार्दिक शुभ कामनाएं भी |

    जवाब देंहटाएं
  6. कोहरे पर सुंदर व्याख्यात्मक भूमिका आकर्षक लगी ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    शानदार लिंक चयन।
    सभी सामग्री अतीव प्रभावशाली।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार ।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  7. सभी रचनाएँ अपनी जगह अद्वितीय हैं मुझे जगह देने हेतु असीम आभार आदरणीया अनीता जी - - नमन सह। अतुलनीय प्रस्तुति व संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  8. सराहनीय भूमिका एवं उत्कृष्ट सूत्रों से सजी प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँँ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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