शीर्षक पंक्ति: आदरणीय पी.सी.गोदियाल "परचेत " जी की रचना से।
सादर अभिवादन
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
सर्दियों में गुनगुनी धूप का अरमान था
बेवजह झमाझम बारिश आ गई,
बर्फ़ीली हवाओं ने क़हर ढाया बहुत
ज़माने को मौसम की बेवफ़ाई भा गई.
-रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
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बादल नभ में छा गये, शुरू हुई बरसात।
अन्धकार ऐसा हुआ, जैसे श्यामल रात।।
अकस्मात सरदी बढ़ी, मौसम करे बवाल।
पर्वत के भूभाग में, जीना हुआ मुहाल।।
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जश्न मनाने का ये अंदाज़ अच्छा है,
उम्मीदों से भरा ये मिज़ाज अच्छा है,
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एक सर्पिल रेखा की तरह, अतीत
की नदी, छोड़ गई है विस्तृत
बंजर अहसास, जिसके
दोनों किनारे हैं
खड़े रेत के
पहाड़,
समय मुझ से कहता है, कि मैंने
खो दिया है बहुत कुछ, अब
रिक्त हस्त के सिवा
कुछ भी नहीं
मेरे पास।
की नदी, छोड़ गई है विस्तृत
बंजर अहसास, जिसके
दोनों किनारे हैं
खड़े रेत के
पहाड़,
समय मुझ से कहता है, कि मैंने
खो दिया है बहुत कुछ, अब
रिक्त हस्त के सिवा
कुछ भी नहीं
मेरे पास।
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अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!
पर अंजाना आने वाला क्षण!
ना जाने कौन सा पल, है कितना भारी!
किस पल, बढ़ जाए लाचारी!
ना जाने, ले आए, कौन सा पल,
अन्तिम क्षण!
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तारीफें झूठी होती हैं अक्सर
उन पर हम आँख मूंदकर भरोसा करते हैं
फटकार सही हो सकती है
पर कान नहीं धरते हैं
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नये साल की शुरुवात कुछ इस ढंग से मैंने की
प्रकृति के साथ और कुछ युवाओं के संग हुई
कहते हैं पानी में रहकर मगर से न रखो कभी बैर
सोचकर शामिल हुए बच्चों की टोली में करने सैर
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एक रिश्ते के मायने हैं कई
पास रहकर भी फ़ासले हैं कई
घाटियों में नदी का खो जाना
इस तरह के तो हादसे हैं कई
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1962 में पिताजी का इटावा से रायबरेली तबादला हो गया था. रायबरेली में कक्षा 7 में मेरा प्रवेश गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में करा दिया गया था. हमारा कॉलेज अच्छा था, काफ़ी भव्य था और वहां के अध्यापकगण भी आम तौर पर अच्छे थे, खासकर इतिहास, हिंदी और गणित के मास्साब तो लाजवाब थे. हमारे कॉलेज में कक्षा 6 से लेकर कक्षा 8 तक एक वैकल्पिक विषय होता था. हमको पुस्तक-कला, काष्ठ-कला और ज्यामितीय-कला में से कोई एक विषय चुनने की आज़ादी थी.
बंगाल में नील की खेती 1777 में शुरू हुई. नील की खेती कराने वाले बागान मालिकों ने जो लगभग सभी यूरोपियन थे, स्थानीय किसानों को बाध्य किया कि वे अधिक लाभदायक धान की फसल करने के स्थान पर नील की खेती करें। उन्होंने किसानों को बाध्य किया कि वे अग्रिम राशि ले लें और फर्जी संविदाओं पर दस्तखत करें जिन्हें बाद में उनके विरुद्ध उपयोग में लिया जा सके।
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
प्रिय अनीता जी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत -बहुत शुक्रिया मेरी रचना को यहाँ शामिल किया
और रचनायें भी सुन्दर और सृजन लगे
धन्यवाद!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात। ।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीय। ।।
बहुत सुन्दर और सार्थक लिंकों की चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
Nice links today
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति । चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार अनीता ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच का संयोजन आप हमेशा बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से करते हैं। आज की प्रस्तुति भी नायाब है।
आपने इसमें मेरी पोस्ट को भी शामिल किया यह मेरे लिए बहुत प्रसन्नता का विषय है।
सादर आभार,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । आभार आपका, अनिता जी🙏
जवाब देंहटाएंपठनीय रचनाओं से सुसज्जित चर्चा मंच के आज के अंक में मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन व प्रस्तुति के साथ मुग्ध करता हुआ चर्चा मंच - - मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीया अनीता जी - - नमन सह।
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