मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
--
महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती 23 जनवरी को मनाई जाती है। केंद्र सरकार ने इसे पूरे देश में पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। नेताजी की जीवनी और कठोर त्याग आज के युवाओं के लिए बेहद ही प्रेरणादायक है।
--
दोहे
"अब भी वीर सुभाष के, गूँज रहे सन्देश"
अर्पित श्रद्धा के सुमन, तुमको करता देश।
अब भी वीर सुभाष के, गूँज रहे सन्देश।।
--
--
Jigyasa Singh, जिज्ञासा के गीत
--
प्रचार, पक्षपात और अनबनों का दौर है
फूल-फल रहा है झूठ, उलझनों का दौर है
न ठौर "वर्षा" पा सकी, न ठौर मेघ पा सके
वक़्त रच रहा है खेल, अड़चनों का दौर है
--
- पहाड़ और विकास
- उस शहर के पश्चिमी छोर परएक पहाड़ को काटकररेल पटरी निकाली गईनाम नैरो-गेज़धुआँ छोड़तीछुकछुक करतीरूकती-चलती छोटी रेलसस्ते में सफ़र करातीअविकसित इलाक़ों में जाती
Ravindra Singh Yadav, हिन्दी-आभा*भारत
--
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi
--
:1:
सजदे में इधर हैं हम
और उधर दिल है
दर पर तेरे जानम
;2;
जब से है तुम्हें देखा
दिल ने कब मानी
कोई लछ्मन रेखा
आनन्द पाठक, आपका ब्लॉग
--
देखो. इतने समय बाद चल रही हो. कुछ कहें तो चुप रहना,
उसने घूर कर पति की ओर देखा- यह बात उन्हें क्यों नहीं कहते. तुम जानते तो हो. एक दो बार में तो मैं किसी को कुछ कहती ही नहीं.
वाणी गीत, ज्ञानवाणी
--
बदबू भर गई है इसमें,
अब खोल भी दो खिड़कियाँ,
रोशनदान और दरवाज़े,
निकाल भी दो अन्दर की गर्द,
गुस्सा, मनमुटाव , घृणा,
Onkar, कविताएँ
--
--Randhir Singh Suman, लो क सं घ र्ष !
--
जयकृष्ण राय तुषार, छान्दसिक अनुगायन
--
इस मिथ्या जगत में
एक सच्ची अनुभूति की
आस है मुझे, इसलिए
हर करवट में दुनिया की
दिलचस्पी है मेरी
नूपुरं नमस्ते namaste
--
जैसे जैसे मानव जाति में सांस्कृतिक विकास हुआ वैसे वैसे शिक्षा पद्धति में भी विकास हुआ। शिक्षा ही वह अभूतपूर्व विधा है जो मानव को पशुओं से अलग करती है अन्यथा पशु एवं मनुष्य में कोई अंतर ही नहीं होता। मानव सभ्यता को क्रमशः आगे बढ़ाने में शिक्षा को ही श्रेय दिया जा सकता है। प्रारम्भ में शिक्षा मौखिक थी। ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में शिक्षा मौखिक ही दी जाती थी। कालांतर में ज्ञान भोजपत्रों एवं शिलालेखों के रूप में सामने आया। जब कागज का आविष्कार हुआ तो मौखिक ज्ञान पांडुलिपियों के रूप में आया। जब छपाई का विकास हुआ तो
Asharfi Lal Mishra, परिवर्तन
--
--
--
रात भी रफ्ता रफ्ता गुजरने को है,
रौशनी आसमां से उतरने को है,
बैठने फिर लगीं तितलियां फूल पर,
खुशबू—ए—गुल फजां में बिखरने को है
जैसे मौसम बदलने को हलचल हुई,
था अजब सा नजारा कोई जादुई
देखकर दिल मचलता रहा रातभर,
चांद छत पर टहलता रहा रातभर।।
Unknown, शायर अतुल कन्नौजवी
--
Dr.Manoj Rastogi, साहित्यिक मुरादाबाद
--
आचार्य ओम नीरव जी को माना जाता है जो कि कविता लोक समूह के संचालक और संस्थापक है।
1) एक दोहा और अर्धरोला के योग से चार चरणों वाला कुण्डलिनी छंद बनता है ।
2) इसके पहले दो चरणों में प्रत्येक का मात्रा भार 13, 11 होता है और बाद के दो चरणों में प्रत्येक का मात्राभार 11, 13 होता है ।
3) दोहा का अंतिम पद ही अर्धरोला का प्रारम्भिक पद होता है । यह 'पुनरावृत्ति' सार्थक भी होनी चाहिए ।
4) इसके प्रारंभिक शब्द/शब्दों का अंत में 'पुनरागमन' करने से विशेष सौन्दर्य उत्पन्न होता है, यह 'पुनरागमन' अनिवार्य है ।
5) दोहा और रोला की दो-दो पंक्तियों के अलग अलग तुकांत होते हैं।
1) एक दोहा और अर्धरोला के योग से चार चरणों वाला कुण्डलिनी छंद बनता है ।
2) इसके पहले दो चरणों में प्रत्येक का मात्रा भार 13, 11 होता है और बाद के दो चरणों में प्रत्येक का मात्राभार 11, 13 होता है ।
3) दोहा का अंतिम पद ही अर्धरोला का प्रारम्भिक पद होता है । यह 'पुनरावृत्ति' सार्थक भी होनी चाहिए ।
4) इसके प्रारंभिक शब्द/शब्दों का अंत में 'पुनरागमन' करने से विशेष सौन्दर्य उत्पन्न होता है, यह 'पुनरागमन' अनिवार्य है ।
5) दोहा और रोला की दो-दो पंक्तियों के अलग अलग तुकांत होते हैं।
Achary Pratap, आचार्य प्रताप
--
--
गगन शर्मा, कुछ अलग सा
--
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल
--
आज के लिए बस इतना ही...।
--
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंविविधतापूर्ण सारगर्भित प्रस्तुति । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स आज की |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! रोचक, ज्ञानवर्धक तथा विविधतापूर्ण रचनाओं के मध्य आपने मेरे एक लोकगीत को शामिल किया जिसके लिए आपका जितना नमन करूँ कम है आपकी प्रेरणा से गीतों को स्थान मिलेगा..शुभकामनाओं सहित आपका नमन और वंदन..सादर..
मंगल सुप्रभात ।
जवाब देंहटाएंआज का अंक बहुत अच्छा और दिलचस्प लगा ।
रोचक सामग्री से भरपूर पत्रिका ।
रविवार का इंतेज़ाम तो हो गया ।
इतनी अच्छी रचनाओं के बीच स्थान देने के लिए धन्यवाद,शास्त्री जी ।
नेताजी को स्मरण करते हुए प्रार्थना है कि पराक्रम दिवस हम सबके ह्रदय में अपने कर्तव्य का पालन करने का साहस जगाए ।
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार!
चर्चा मंच में सभी लिंक उत्तम हैं।इस मंच में हमारे ब्लॉग को सम्मिलित करने के लिए आप का हृदय से आभार।
रोचकता से भरपूर अंक में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संयोजन है हमेशा की तरह... मेरी पोस्ट को आपने इसमें शामिल किया यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
बहुत-बहुत आभार एवं अनंत शुभकामनाओं सहित
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बेहतरीन प्रस्तुति, मेरी रचना को चर्चा मंच का हिस्सा बनाने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएं