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रविवार, जनवरी 17, 2021

"सीधी करता मार जो, वो होता है वीर" (चर्चा अंक-3949)

मित्रों रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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मित्रों आज के अंक में 
मैं धुन की धुनी और साहित्य सेवा में संलग्न
श्रीमती आशा लता सक्सेना के विषय में 
प्रकाश डालना चाहता हूँ।
 लब्ध प्रतिष्ठित कवयित्री श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना की  कोख से विदिशा मध्यप्रदेश में जन्मी 2 मई, 1943 को आशा लता सक्सेना ने अर्थशास्त्र और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर करने के उपरान्त जीवनपर्यन्त अध्यापन किया। यूँ तो आपने अंग्रेजी में भी कविता लेखन किया लेकिन देवनागरी के प्रेमपाश में बँधकर हिन्दी में अपनी कविता की सरिता को आज भी आगे बढ़ा रहीं है। जब भी अपने आस-पास या समाज में कुछ ऐसा घटित होता देखती है, जिसे देखकर उनका मन संवेदनशील हो उठता है तो वही उनको लिखने के लिए प्रेरित करता है।  सामाजिक परिवेश की घटनाओं, परिदृश्यों और मानव मन में उठने वाली सहज भावनाओं व विचारों को सरल शब्दावली में व्यक्त करना इनकी भाषा-शैली का एक प्रमुख अंग है।

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दोहे "चला दिया है तीर" 

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अपने ही जब पीठ पर, करते सतत प्रहार।

बैरी की उसको नहीं, दुनिया में दरकार।।
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जिनकी जिह्वा दो मुखी, समझो उनको सर्प।
वो करते हैं बेवजह, अपने विष पर दर्प।।

उच्चारण 
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कोरोना काल की शादी 
22 मार्च के लॉक डाउन ने हमें शॉपिंग का भी मौक़ा नहीं दिया और दिन प्रतिदिन कोरोना को लेकर वातावरण हमारे देश में भी भयावह होता गया! हमारे कुछ निकटतम लोगों तक कोरोना का इन्फेक्शन, उससे माहभर की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानी और कुछ की मौत की खबर भी हमतक पहुंची! अक्टूबर तक वातावरण की भयावहता को देखकर लगा कि हमें शादी की तिथि बढ़ानी होगी! पर नवंबर में कोरोना के प्रति लोगों में बढ़ती रोग प्रतिरोधक क्षमता और छिटपुट मामले हमारी निराशा को कम करते गए और हमने 11 दिसंबर को शादी होने देने का निश्चय किया! 
संगीता पुरी, Gatyatmak Jyotish  
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(गज़ल)  इश्क़ में जलने लगती है मशाल आंखों में 
पूछते क्या हो यूं लेकर सवाल आंखों में
पढ़ सको पढ़ लो मेरा सारा हाल आंखों में

देखना था कि समंदर से क्या निकलता है
बस यही सोच के फेंका था जाल आंखों में 
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फेहरिस्तों का शहर 
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा, 
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तुर्की के क्रांतिकारी कवि  नाज़िम हिकमत की 118वीं जन्मतिथि,  उनकी कुछ कव‍ितायें (अनूद‍ित ) पढ़‍िए- 

जीने के लिए मरना

ये कैसी स‍आदत है

मरने के लिए जीना

ये कैसी हिमाक़त है

अकेले जीओ

एक शमशाद तन की तरह

और मिलकर जीओ

एक बन की तरह। 

यह नाज़िम हिकमत की पहली कविता है, जो उन्होंने तुर्की की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक मुस्तफ़ा सुबही और उनके चौदह साथियों की स्मृति में 1921 में लिखी थी, जिन्हें 28 जनवरी 1921 को तुर्की के बन्दरगाह ’त्रापेजुन्द’ के क़रीब काले सागर में डुबकियाँ दे-देकर मार डाला गया था। 

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महामारियों का  विश्व साहित्य और संस्कृति पर प्रभाव दो हज़ार बीस का साल "कोरोना" की महामारी का साल कहा जा सकता है. कई लोगों ने तो इसे "कोरोना काल" का नाम भी दे दिया है. अब आप इसे "कोरोना काल" कहें या फिर "महामारी का वर्ष", हक़ीकत यह है कि कोविड-19 की इस प्रलयंकारी बीमारी ने पूरी दुनिया में अब तक सवा नौ करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है. बीस लाख से ऊपर लोगों की मौत हो चुकी है. खुद अपने देश में ही, तक़रीबन एक करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं और लगभग डेढ़ लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है. कहने को तो अब दुनिया के बड़े-बड़े देशों में इसका टीका (वैक्सीन) बन गया है, लेकिन वह कितना कारगर साबित होता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा. पर भारत ने इस वैक्सीन को बनाकर लोगों तक पहुँचाने की दिशा में जो एक ऊंची छलांग लगाई है, वह क़ाबिले तारीफ़ है. 
रात के खिलाफ, रात के ख़िलाफ़  
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वैदिक वाङ्गमय और इतिहास बोध (१८) 

प्राणी और वनस्पति  जगत के नामों के साक्ष्य 

 प्रोटो-भारोपीय भाषाओं के मूल स्थान से संबंधित भाषायी गवेषणाओं और शास्त्रार्थों में वनस्पति एवं जीव-जंतुओं के समाविष्ट स्वरूप की चर्चा एक विशेष स्थान रखती है। मल्लोरी और ऐडम्ज़ का विचार है कि “अमूमन हाथ में शब्दकोश थामकर  भारोपीय मूलभूमि की तलाश में निकले लोग प्राणी और वनष्पति जगत से मिले सबूतों पर ही अमल करते हैं।“ [मल्लोरी-ऐडम्ज़  :२००६:१३१]

इन सबूतों की जाँच हम नीचे करेंगे : 

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ग़ज़ल ,  इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें 

नमस्कार , 

मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है 

जिसे मै आपके सम्मुख रख रहा हूँ 

मेरी ये नयी ग़ज़ल आपको कैसी लगी 

मुझे जरुर बताइएगा | 

इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें 

तीन साल की मासूम बच्ची हैं तेरी आंखें 

कोई बनावटी अंदाज नही उतरता इनमें 

तुझसे तो सौ गुना अच्छी हैं तेरी आंखें 

Harinarayan Tanha, साहित्यमठ 
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परख हीनता 
हम बहुत
कुछ रख आते हैं बंधक, अदृश्य
भस्म लपेटे सारे अंग में,
निरंतर भटकते हैं
किसी मृग -
सार की
तरह 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा :  
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एक हास्य व्यथा :  दीदी ! नज़र रखना 

" दीदीमेरी बातें ध्यान से सुनना। आजकल जीजा के चाल चलन ठीक नहीं लग रहा है। तुम  तो ’फ़ेस बुक’ पर हो

नहीं। मगर मैं उनका हर पोस्ट पढ़ती हूँ । जाने किसे कैसे कैसे  गीत ग़ज़ल पोस्ट कर रहे हैं आजकल।मुझे तो  दाल में

कुछ काला लग रहा है ।  हाव भाव ठीक नहीं लग रहा हैउअनका।  

पिछले महीने एक रोमान्टिक गीत पोस्ट किया था ।

लिखा था-

खोल कर यूँ न ज़ुल्फ़ें चलो बाग़ में

प्यार से है भरा दिल,छलक जाएगा

 

 ये लचकती महकती हुई डालियाँ

 झुक के करती हैं तुमको नमनराह में

 हाथ बाँधे हुए सब खड़े फ़ूल  हैं

 बस तुम्हारे ही दीदार  की  चाह में

 

यूँ न लिपटा करों शाख़  से पेड़  से

मूक हैं भी तो क्या ? दिल धड़क जायेगा

 

पता नहीं किसको घुमा रहे हैं  गार्डेन में,आजकल ? 

आनन्द पाठक, आपका ब्लॉग 
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आज के लिए बस इतना ही...!
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18 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय सर, सुप्रभात और प्रणाम🙏🙏, सुंदर प्रस्तुति। माननीया आशा जी के बारे में मंच पर एक बार पहले भी चर्चा हो चुकी है। आज भी उनके बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। ब्लॉग जगत में आशा जी की उपस्थिति एक मौन साधिका सी है जोअपने कर्म पथ पर अग्रसर हैं । उन्हें बधाई और शुभकामनाएं आज के इस सम्मान के लिए। मैं भी उनकी नियमित पाठक हूँ। उनके उत्तम स्वास्थ्य और यश की कामना करती हूँ।
    आजके सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएँ।
    सभी ने अच्छा लिखा है।आपको भी पुनः आभार🙏🙏

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  2. सुप्रभात
    आज की चर्चा लिंक्स और मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सर |मेरे लिए आप जैसा सोचते हैं इतना मुझमें है नहीं |यह सच है कि मुझे हिन्दी की सेवा करना अच्छा लगता है मैं इस प्रकार प्रोत्साहन के लिए आपकी आभारी हूँ |सारी लिंक्स सदा की तरह शानदार है |सभी रचनाकारों को मेरी शुभ कामनाएं और आपको भी एक बार फिरसे आभार |

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय शास्त्री जी,नमस्कार ! सुन्दर सरस,ज्ञानवर्धक एवं रोचक लिंक्स के संकलन संयोजन तथा श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आपको बधाई..एक ही पर विविध तरह की रचनाओं को पढ़ने का अवसर मिला..जिसके लिए आपको धन्यवाद..सादर.

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी। आशा दीदी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। उन्हें बहुत बहुत शुभकामानाएं एवं बधाई।

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  5. आपने अच्छी जानकारी दी है , इसी तरह आप हमलोगो को जानकारी देते रहे। धन्यबाद
    अगर आप शायरी पढ़न चाहते है तो हमारे वेबसाइट पर जाये -
    shayarihd.com

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  6. बेहद खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति । आ.आशा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में पढ़ना सुखद अनुभूति है । विविधताओं से परिपूर्ण पुष्पगुच्छ सी प्रस्तुति । सादर नमन सर!

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  7. आदरणीय शास्त्री जी,
    सादर अभिवादन 🙏

    आदरणीया श्रीमती आशा लता सक्सेना जी का परिचयात्मक विवरण पढ़ कर अच्छा लगा। उनके ब्लॉग "आकांक्षा" की मैं पिछले एक दशक से पाठिका हूं। उनकी पूज्यनीय माताश्री ज्ञानवती सक्सेना जी मेरी माताश्री डॉ. विद्यावती "मालविका" की मित्र थीं। उस ज़माने कविताकर्म में इन दोनों महिलाओं की सक्रियता महत्वपूर्ण रही है। अनेक समवेत काव्य संग्रहों में दोनों की कविताएं संकलित हैं। आदरणीया आशा लता जी का लेखन भी उल्लेखनीय है।

    आदरणीय, आप हमेशा ढ़ूंढ-खोज कर सर्वोत्तम लिंक्स का संयोजन कर चर्चा को श्रेष्ठतम बना देते हैं। नमन है आपके इस श्रम को 🙏
    मेरी पोस्ट को आज की चर्चा में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  8. बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति,एक से बढ़कर एक रचना

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  9. आदरणीय सर, आशा दी के व्यक्तित्व और उनके कृतियो के बारे में जानकारी देने के लिए आप को दिल से शुक्रिया, मां सरस्वती की कृपा दृष्टि हमेशा उन पर बनी रहे यही कामना है
    बेहतरीन चर्चा अंक, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

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  10. बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आ0

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  11. यथावत सुन्दर प्रस्तुति व संकलन, सभी रचनाएं असाधारण हैं, मुझे जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीय शास्त्री जी - - नमन सह।

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  12. वाह बहुत ही बेहतरीन लिंक्स एवम शानदार प्रस्तुति ... आभार आपका ...

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  13. आदरणीय शास्त्री जी नमस्कार!
    आशालता सक्सेना के बारे में उत्तम जानकारी ।धन्यवाद।

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  14. मेरी रचना को यहां स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार सर

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  15. मेरी रचना को यहां स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार आदरणीय
    क्षमा कीजियेगा चर्चाओं नहीं आ सका क्योंकि संचार पत्र को लेकर अधिक कार्य हो जाते हैं , तथा अक्षरवाणी काव्य-मंजरी को लेकर और अधिक
    अतः पुनश्च क्षमाप्रार्थी हूँ |

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  16. आपने अच्छी जानकारी दी है

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