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शनिवार, मई 01, 2021

'सुधरेंगे फिर हाल'(चर्चा अंक- 4053)

सादर अभिवादन। 

शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

गर्दिश का दौर कभी तो ख़त्म होगा, यह उम्मीद हमें जीवन के प्रति आशावान और ऊर्जावान बनाती है। वर्तमान दौर में संवेदनाओं का विक्षिप्त रूप भी सामने आ रहा है। वक़्त की अपनी गति है जिसे न कोई बढ़ा सकता है और न ही कम कर सकता है। इस कठिन दौर में अपना और अपनों का ख़याल रखिए साथ ही यथाशक्ति ज़रूरतमंदों की सहायता कीजिए। 

-अनीता सैनी 'दीप्ति'

आइए पढ़ते हैं आज की कुछ चुनिंदा रचनाएँ -

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दोहे "सुधरेंगे फिर हाल" 

कुछ घण्टे कुछ दिवस मेंबीत जायगा साल।
आने वाले साल मेंसुधरेंगे फिर हाल।।
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आशंकाएँ हैं बहुतमन में बहुत सवाल।
करते हैं यह कामनाशुभ हो नूतन साल।।

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साधारण हूँ
साधारण ही होना चाहती हूँ
इन्द्रियों को वश में करना नहीं आता है
इन्द्रियों की दासता भी नहीं आती है
बस इतना ही होना चाहती हूँ कि
जब क्रोध आये तो बिना प्रतिरोध के
सहजता से स्वीकार करके प्रकट करूं
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कभी पूजा
कभी इबादत कभी आराधन 
जब भी मिलती है मुझे ,
भेस नया रखती क्यूँ है ,
ऐ बंदगी तू मुझे
नित नए रूप में मिलती क्यूँ है   ?
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झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!

कटीली तेरी यादें, कठिन है भुला दें,
बोए तूने, इतने काँटे,
फूलों संग, घर-घर तूने दु:ख बाँटे,
जा, अब याद मुझे न आ,
जा, अप्रिल तू जा!
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कोटि-कोटि जन होते पीड़ित 

उतनी हम सांत्वना बहायें,

भय आशंका के हों बादल 

श्रद्धा का तब सूर्य जलाएं !

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धुएं की लकीर - -

पथराई आँखों से ज़िन्दगी तकती है दूर
तक धुएं की लकीर, एक अंतहीन
नीरवता के आगे सभी हैं
मजबूर, क्या राजा
और क्या फ़क़ीर,
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सन्नाटे में घर है
पूरा शहर है
यूँ कहें पूरा देश है
बदला हुआ परिवेश है
रात में सन्नाटा चीरतीं हैं कुछ आवाजें
एंबुलेंसें
आती जाती गाड़ी
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श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति का अनूठा ग्रंथ है, जो विश्व के ज्ञाननिधि में एक अमूल्य चिंतामणि रत्न रूप में प्रकाशमान है। यह साहित्य सागर में अमृत कुंभ है, जिसमें कर्म-भक्ति-ज्ञान रूप में जीवनामृत भरा है। साथ ही यह एक सर्वांगसुंदर योगशास्त्र भी है। योग इसलिए कि यह शास्त्र परमपिता से जुड़ने की कला बताता है। श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा अनुपमेय शास्त्र है, जिसकी महिमा अपार है, अपरिमित है।
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सजा भाग-2

आराध्या गार्डन में राज का इंतजार करते हुए बार-बार कलाई मोड़कर घड़ी में समय देखकर बेचैन हो रही थी।"यह राज ने जाने कहाँ रह गया? फोन करके बोला बहुत अर्जेंट काम है, मिलने आ जाओ। मैं कबसे उसके इंतजार में बैठी हूँ, और यह साहब न जाने कहाँ गायब है..?"आराध्या गुस्से से बड़बड़ा रही थी कि सामने से उसे राज आते दिखाई दिया।

आ गए जनाब..? बुलाया तो ऐसे था जैसे यहीं बैठे हो,इतनी जल्दी क्या थी फोन करने की ?यहाँ आने पर फोन करते तो मैं भी साथ ही आ जाती। एक लड़की को गार्डन में अकेले बैठकर किसी का इंतज़ार करना कितना अजीब लगता है..!

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अपना ख़याल रखना

एक गहरी चुप सी लगी है. कुछ कहते नहीं बनते, कुछ सुनने को दिल नहीं करता. उदास खबरें बीनते बीनते हाथों में फफोले निकल आये हैं. लेकिन इन फफोलों का दर्द नहीं होता. दर्द होता है किसी के दर्द को कम न कर पाने का. कैसी महामारी है ये, ये कैसे बुरे दिन हैं कि चरों तरफ बस मौत बरस रही है. क्या सचमुच लोग वायरस की मार से मर रहे हैं. नहीं, ज्यादा लोग सिस्टम के फेल्यौर से मर रहे हैं. ये मौतें नहीं हैं हत्याएं हैं और हम दुर्भाग्य से इस हत्याकांड के गवाह. क्या हम कुछ नहीं कर सकते? हम कुछ क्यों नहीं कर सकते?
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लेकिन 'ज़हरीला इंसान' (या नागरहावू) की कहानी कुछ गंभीर सवाल उठाती है जो इसके पहले भी उठाए गए थे लेकिन जिन पर ग़ौर नहीं किया गया (अब भी नहीं किया जाता है)।  मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण समाज करता है (उसके बचपन और लड़कपन में)इसलिए व्यक्ति (अच्छा या बुरा) जैसा भी बनता हैउसके लिए समाज अपने उत्तरदायित्व से नहीं बच सकता। कोई भी व्यक्ति अपने अनुभवों का ही उत्पाद होता है। उसके अपने अनुभवों का निचोड़ ही उसके व्यक्तित्व का सत्व बनता है। अच्छे अनुभव व्यक्ति को अच्छा बना देते हैं और बुरे अनुभव बुरा।  तो क्या किसी प्रत्यक्षतः बुरे दिखाई देने वाले व्यक्ति पर 'बुराहोने का ठप्पा लगा देना ही पर्याप्त हैक्या समाज को अपने भीतर झाँक कर नहीं देखना चाहिए कि यदि आज वह बुरा है तो वह बुरा बना कैसे क्या उसे 'ज़हरीलाकहने वालों का फ़र्ज़ यह सोचना नहीं कि उसके अंदर ज़हर भरा किसने
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आज बस  यहीं तक 
फिर मिलेंगे
 बुधवारीय प्रस्तुति में 

@अनीता सैनी 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    सुंदर रोचक सूत्रों से सजी आज की चर्चा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई अनीता जी,
    मेरी रचना को मान देने के लिए आपका असंख्य आभार ।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रशंसनीय संकलन - विविधता से परिपूर्ण। मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आपका आभार आदरणीया अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. परम आदरणीय शास्त्री जी का स्वास्थ्य अब कैसा है ? शीर्षक भूमिका से आशा लगी थी कि शुभ समाचार मिले । उनके शीघ्र स्वस्थ होने के लिए ईश्वर से हार्दिक प्रार्थना है । संपूर्ण पृथ्वी के लिए भी हे प्रभु, त्राहिमाम! त्राहिमाम! त्राहिमाम !

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    उत्तर
    1. दिल से आभार आदरणीय दी।
      जी सही कहा आपने आदरणीय शास्त्री जी अब स्वस्थ है।
      जल्द ही हमारे बिच होंगे।
      सादर

      हटाएं
    2. अत्यंत शुभ समाचार देने के लिए हार्दिक आभार । आज ये ब्लॉग जगत जिस ऊंचाई पर है उसके आधार हैं आदरणीय शास्त्री जी । मंगल कामनाएं उनके लिए ।

      हटाएं
    3. आपका स्नेह आशीर्वाद यों ही बना रहे।
      सादर नमस्कार ।

      हटाएं
  4. सुंदर अंक
    गीता दोहावली की भूमिका का लिंक देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. समसामयिक भूमिका के साथ पठनीय लिंक्स का चयन, बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. सकारात्मकता के भाव लिए सुन्दर भूमिका और बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

    जवाब देंहटाएं
  8. सार लिंक बहुत अच्छे हैं

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी उत्कृष्ट लिनक्स के बीच मेरी कृति को यहां स्थान दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी!

    जवाब देंहटाएं

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