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Saturday, May 22, 2021

'कोई रोटियों से खेलने चला है' (चर्चा अंक 4073)

सादर अभिवादन। 

शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।  

सामाजिक विसंगतियों के 

बढ़ने का दौर 

चिंतनीय हो चला है,

कोई फाँके कर रहा है 

कोई रोटियों से 

खेलने चला है। 

#रवीन्द्र-सिंह-यादव 

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ चुनिंदा रचनाएँ-

"अचरज में है हिन्दुस्तान!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

माली लूट रहे हैं बगिया को बन करके सरकारी,
आलू,दाल-भात महँगा है, महँगी हैं तरकारी,
जीने से मरना महँगा है, आफत में इन्सान!
अचरज में है हिन्दुस्तान! अचरज में है हिन्दुस्तान!!
*****

मैं हूँ आत्म केन्द्रित

 सब की सोच नहीं पाती

केवल खुद तक ही 

सीमित होकर रह जाती |

*****

 भारतीय मिट्टी की सोंधी महक से सुवासित 'प्रवासी मन' - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

उम्र की साँझ / बेहद डरावनी / टूटती आस।

वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।

दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।

*****
शोर की वजह से काम ठप्प हो गया. मै उसे पकड़ कर अन्दर केबिन में ले आया, बिठाया और उसकी बात समझने की कोशिश की. पर उसका तमतमाया चेहरा और गुस्से वाली उसकी भाषा नहीं समझ पाया. गार्ड को बुला कर पूछा तो पता लगा कि उसकी बहु पेंशन के पैसे ले कर भाग गई थी. वैसे तब तक तो बस पकड़ कर मायके की तरफ निकल भी गई होगी. इस बीच बिनोद पर दूसरे पेंशनर ने कमेंटरी भी शुरू कर दी थी. 
*****

कसक कुछ न कर सके   

हर अधूरी चाह मन की, 

दूर ले जाती उसी से 

पूर्ण भीतर पल रहा है !

*****

कविता कौन है?

नयन-नयन क्रांति का काजल,

युग से युग तक झंकृत पायल,

हाथ रची है प्रेम की मेहँदी,

माथे शोभित सौभाग्य की बेंदी,

तम काट रही है कांति कंचन,

खनक रहे छंदों के कंगन,

*****

धुंध के उस पार - -

सब
कुछ है मुट्ठी बंद, बहते जाना है निरंतर
नियति के सहारे, कहने को डूबे हैं
सितारे, संभवतः धुंध के उस
पार है कोई जुगनुओं का
प्लावित द्वीप, और
नव सृजन के
सम्भाव्य
ढेर
सारे, कहने को डूबे हैं सितारे - - - - -

*****

साजन आपद काल मह करें सबहि कर दान | 

दारिद दानए सेवा श्रम धन दानए धनवान || 

तमस काण्ड अतिव घना जीवन है उद्दीप | 

सार गहे बिस्वास का जलए आस का दीप || 

*****

माँ के बिना एक लड़की का जीवन

मायके से कोई कहने वाला न था मेरी बेटी है 
उसके कान तरस गए सुनने को की 
मेरी बेटी बहुत काम करती है,रूपवान है गुणवान है,
क्योंकि माँ तो अंधी होती है प्रेम में बच्चों के ।
*****
#रिश्ते#
मे एक बात आज तक समझ मे नही आई,कि क्या वो पति इतना मजबूर होता है कि अपनी पत्नी के कहने पर अपने परिवार की छोड़ दे..ऐसा नही है.. पति मजबूर नही होता..वो बेटा कमजोर होता है,कायर होता है...जो अपने परिवार के लिए कुछ करना नही चाहता.. और अपनी कमजोरियो को अपनी पत्नी की मर्जी के पीछे छिपा कर खुद को बचा लेता है..*****ई- गोल्ड
ये सोब्रिन गोल्ड बॉण्ड स्कीम से अलग है क्योंकि इसमें सोने को ,सोन के रूप आप दुबारा वापस ले सकते हैं पर सोब्रिन गोल्ड बॉण्ड स्कीम में ऐसा नहीं कर सकते! पर इसमें उन लोगों का फायदा नही होने वाला जिन्होंने ने काले धन को पीला धन बना रखा है 😃😃😅😅 
*****आज बस यहीं तक फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 
रवीन्द्र सिंह यादव 

9 comments:

  1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏

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  2. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |उम्दा चर्चा |

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  3. सामाजिक मूल्यों का कितना पतन हो चुका है यह आज देखने को मिल रहा है जब इस आपदा में भी लोग अपना स्वार्थ भुना रहे हैं. पठनीय रचनाओं से सजा चर्चा मंच, आभार !

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  4. वर्तमान सामाजिक परिवेश की विकृतियों पर साहित्य की पैनी नजर। सभी वेहतरीन रचनाएं

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  5. 'ससुर जी की पेंशन शामिल करने के लिए धन्यवाद!

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  6. सादर धन्यवाद मंच को और आदरणीय रविन्द्र जी को मेरी रचना को पटल का प्रेम देने के लिए ।।

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  7. सुंदर चर्चा प्रस्तुति

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  8. हालत अभी से पस्त हो चुकी है और अभी तो विसंगतियों के इस दौर को अपने चरम तक जाना है। चिंता का विषय है यह। समाज के व्यवहार और विचारों में तत्क्षण उचित परिवर्तन की आवश्यकता है किंतु हमे इस बात का आभास भर होने में बहुत समय लग जाएगा।
    विचारणीय पंक्तियों के साथ सुंदर प्रस्तुति दी आपने आदरणीय सर। सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उम्दा।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। मंच पर उपस्थित सभी आदरणीयजनों को सादर प्रणाम 🙏

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  9. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

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