सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
सामाजिक विसंगतियों के
बढ़ने का दौर
चिंतनीय हो चला है,
कोई फाँके कर रहा है
कोई रोटियों से
खेलने चला है।
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
"अचरज में है हिन्दुस्तान!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मैं हूँ आत्म केन्द्रित
सब की सोच नहीं पाती
केवल खुद तक ही
सीमित होकर रह जाती |
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उम्र की साँझ / बेहद डरावनी / टूटती आस।
वृद्ध की कथा / कोई न सुने व्यथा / घर है भरा।
दवा की भीड़ / वृद्ध मन अकेला / टूटता नीड़।
कसक कुछ न कर सके
हर अधूरी चाह मन की,
दूर ले जाती उसी से
पूर्ण भीतर पल रहा है !
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नयन-नयन क्रांति का काजल,
युग से युग तक झंकृत पायल,
हाथ रची है प्रेम की मेहँदी,
माथे शोभित सौभाग्य की बेंदी,
तम काट रही है कांति कंचन,
खनक रहे छंदों के कंगन,
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साजन आपद काल मह करें सबहि कर दान |
दारिद दानए सेवा श्रम धन दानए धनवान ||
तमस काण्ड अतिव घना जीवन है उद्दीप |
सार गहे बिस्वास का जलए आस का दीप ||
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |उम्दा चर्चा |
सामाजिक मूल्यों का कितना पतन हो चुका है यह आज देखने को मिल रहा है जब इस आपदा में भी लोग अपना स्वार्थ भुना रहे हैं. पठनीय रचनाओं से सजा चर्चा मंच, आभार !
जवाब देंहटाएंवर्तमान सामाजिक परिवेश की विकृतियों पर साहित्य की पैनी नजर। सभी वेहतरीन रचनाएं
जवाब देंहटाएं'ससुर जी की पेंशन शामिल करने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद मंच को और आदरणीय रविन्द्र जी को मेरी रचना को पटल का प्रेम देने के लिए ।।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहालत अभी से पस्त हो चुकी है और अभी तो विसंगतियों के इस दौर को अपने चरम तक जाना है। चिंता का विषय है यह। समाज के व्यवहार और विचारों में तत्क्षण उचित परिवर्तन की आवश्यकता है किंतु हमे इस बात का आभास भर होने में बहुत समय लग जाएगा।
जवाब देंहटाएंविचारणीय पंक्तियों के साथ सुंदर प्रस्तुति दी आपने आदरणीय सर। सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उम्दा।
मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। मंच पर उपस्थित सभी आदरणीयजनों को सादर प्रणाम 🙏
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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