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शनिवार, मई 29, 2021

"वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080)

सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है 

(शीर्षक और भूमिका आदरणीया उषा किरण जी की रचना से )

हौसला रखोआशाओं के दिए जलाए रखो

नफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना 

हम सब फिर मुस्कुराएंगे

मिल कर उम्मीदों केप्रेम-गीत गाएंगे

धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी

देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!




हाँ,यक़ीनन "वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी "

उम्मींदों की दीप जलती उषा जी की लिखी ये सुंदर पंक्तियाँ 

एक अनमोल संदेश है..... 

पुरे विश्वास के साथ  इसे आत्मसात करते हुए 

चलते है,आज की कुछ खास रचनाओं की ओर  


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 वो सुबह कभी तो आएगी...



भूल जाओ अब भी

सारा द्वेषईर्ष्या  क्रोध

पुरानी रंजिशेंप्रतिशोधआरोपप्रत्यारोप

तुम्हारी निर्ममता का सही वक्त नहीं ये

हाथ बढ़ा कर लगा लो सबको गले

हौसला रखो...हौसला दो

दोस्त,दुश्मन की लकीरें मिटा दो

पीली धूपों पर शीतल चन्दन के फाहे रखो

अब भी  समझे तो कब समझ पाओगे 


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कांची काया मन अथीरा




काची काया मन भी अथिरा ,

हींड़ चढा हीड़े जग सारा ।

दिखे सिर्फ थावर ये माया,

थिर थिर डोले है जग सारा ।


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भीतर रस का स्रोत बहेगा



छा जाएं जब भी बाधाएं 

श्रद्धा का इक दीप जला लें, 

दुर्गम पथ भी सरल बनेगा

जिसके कोमल उजियाले में !


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देखा है दादाजी के चश्में ने

कुशल-क्षेम हो

कोविड विपदा दूर होगी रक्खो विश्वास सभी
हिम्मत हौसला विश्वास,बढाओ अपनों में सभी 
एक, अकेला थक जाएगा मिल चलना होगा 
मातृभूमि की मिट्टी से तुमको वादा करना होगा 
सर्वोपरि राष्ट्र हित,देना होगा देशवासियों साथ।
आज नही तो कभी नही आएगा ये मौका हाथ। 
हिज्जे वाले सबक के बीच


कहीं
खिली हो तुम।
मन की
दीवारों पर
तुम्हारी मुस्कान
और
हमारा भरोसा
दोनों
उभरे हैं।


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आओ निहारिका हो जाए

तो आओ 

इस मैं  को मिटा कर 

इस तुम  को भुला कर 

बस राख राख 

 धुआं धुआं हो  आए 


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गहरे सत्य को उजागर करती अलकनंदा जी का ये लेख 

एक बार जरूर पढियेगा.....

ये लेख एक सवाल छोड़ता है कि -निष्पक्ष होकर सत्य पर चिंतन किये 

बिना किसी का समर्थन या विरोध करना 

                         कहाँ तक उचित है ?

--






ज़ाह‍िर है कि लगभग  7000 cr के कोव‍िड धंधे में हजारों करोड़ के प्राइवेट हॉस्पिटल, ज‍िनका एक-एक दिन का चार्ज लाखों मेें होता है, की अगर कोई ऐसे पोल खोलेगा तो बुरा तो लगेगा ही ना, आईएमएम को भी लग गया और ठोक द‍िया बाबा पर मुकद्दमा, देखते हैं अब ऊँट क‍िस करवट बैठता है।



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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 
आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 
कामिनी सिन्हा 

13 टिप्‍पणियां:

  1. आभार आपका कामिनी जी। रचना को सम्मान देने के लिए आभार। सभी लिंक अच्छे है...। अपना ध्यान रखियेगा सभी साथी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए









    सुप्रभात
    धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |


    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. आज की प्रस्तुति में मेरी रचना का चयन कर सम्मान देने के लिए आपका हृदय से आभार कामिनी जी...कुछ लिंक पढ़े...उत्तम हैं बाकी भी पढूँगी...सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ...कृपया सभी अपना खूब ध्यान रखिए...सभी को शुभकामनाएँ 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत धन्‍यवाद काम‍िनी जी, मेरी पोस्‍ट को इस नायाब मंच पर लाने के ल‍िए। साथ ही ऊषा क‍िरण जी की रचना तो गजब ही है---
    "पुरानी रंजिशें, प्रतिशोध, आरोप- प्रत्यारोप

    तुम्हारी निर्ममता का सही वक्त नहीं ये

    हाथ बढ़ा कर लगा लो सबको गले

    हौसला रखो...हौसला दो" वाह।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत शानदार चर्चा।
    सभी लिंक बहुत ही आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में लेने के लिए बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. सार्थक भूमिका और पठनीय सूत्रों का चयन, आभार कामिनी जी, 'मन पाए विश्राम जहाँ' को आज के चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही शानदार यथा रोचक अंक ।बहुत शुभकामनाएं आपको कामिनी जी । अपना ध्यान रखें,सादर जिज्ञासा सिंह ।

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  9. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए आभारी हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  12. विलम्ब हेतु क्षमा \हार्दिक आभार आपका |

    जवाब देंहटाएं

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