सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
तूफ़ान
आकर चले जाते हैं
घर-द्वार
जिनके
उजड़ते हैं
वे
जीवनभर तड़पते हैं
नेता
अपने सम्मान के
लिए लड़ते हैं।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद सद्य प्रकाशित रचनाएँ-
"सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
‘उलूक’ सब परेशान हैं
कहते भी हैं हमेशा तुझसे कहीं और जा कर के दिमाग को लगाओ
मरना नहीं होता है जिसमें शब्द को
गोता लगाने के पहले चिल्लाता है
पृथ्वीराज बड़े योद्धा थे,
नभ तक फैला उनका नाम।
राव सभी थर्राते उनसे,
चढ़ आये चंदेला धाम।।५।।
*****
कौतुहल वश!
एक दिन जब
बादलों की बेबसी
नहीं होगी
जब तुम
सपने गूंथ चुकी होगी
मैं
सुई और धागा
बादल की पीठ पर रख
सपनों के उस
बोनसाई घर में
लौट आऊंगा।
सच मैं तुम्हें बादल
नहीं दे सकता।
*****
मेरे अंदर इतिहास का क्रूर राजा जीवंत हो उठा, जिसने सदियों पहले मन्दिर आक्रमण कर आस्था-विश्वास को गहरी चोट पहुँचाई थी। नीचे जाकर थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा फिर अचानक इतिहास दोहराने उठा। पटाखों के थैले से एक सुतली बम निकाला। जेब में माचिस रखी। छत के एक कोने पर जा चुपचाप सुतली पर तीली खींच दी और पुन: कमरे में आकर लेट गया।
लाजवाब प्रस्तुति आदरणीय रविंद्र सिंह जी
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्र
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा अंक आज का |पठनीय लिंक्स |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी। सार्थक चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद रविंद्र सिंह यादव जी 🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार🙏🙏 - डॉ शरद सिंह
सदा की तरह सुंदर व संतुलित अंक ! साधुवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा एवम पठनीय अंक, सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर मेरे हाइबन को शामिल करने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
सादर
सटीक भूमिका !
जवाब देंहटाएंशानदार लिंकों के साथ शानदार चर्चा सभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा....
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