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मंगलवार, मई 18, 2021

'कुदरत का कानून अटल है' (चर्चा अंक 4069)

सादर अभिवादन। 

मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद चुनिंदा रचनाएँ- 

"कष्ट-क्लेश का होगा नाश।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आना है तो जाना होगा,
कुदरत का कानून अटल है,
निर्मल-नीर बहाना होगा,
जब तक सरिताओं में जल है,
विदा शब्द के उच्चारण से,
सुमन हुआ है बिना सुवास।

कल तक तो तुम वर्तमान थे,
कल बन जाओगे इतिहास।।
*****

लखनऊ की मेहमाननवाज़ी के किस्से सारी दुनिया में मषहूर हैं पर आलोकजी अपने मेहमानों की ख़ातिर ज़रा अलग ढंग से करते थे। स्कूल में उन्होंने काउण्टिंग करना क्या सीख लिया, बस मेहमानों की तो शामत आ गई। पेटू मेहमानों की खुराक का हिसाब रखने की जि़म्मेदारी उन्होंने बिना किसी से पूछे सम्भाल ली। धड़ाधड़ रसगुल्ले और समोसे गपागप करने वाले मेहमान के सामने वो अपनी रनिंग कमेन्ट्री कुछ इस तरह शुरू कर देते -
‘अंकिल ! ये आपने चौथा रसगुल्ला खाया। ये आपकी प्लेट में जो समोसा रक्खा है, वो पाँचवां है।’
*****

शायद यही है अंध भक्ति आज की

नेत्र बंद कर अनुसरण करने की प्रथा

खुद के विचारों से है  तालमेल कहाँ

फिर भी एक बार तो सोचा होता |

*****

जीवन तो है इक क्रीड़ांगन

गहराई जब मन में होगी 

होगी गहरी लंबी सांसें, 

भय से भरा हुआ जब अंतर 

कंपन से भर जाती सांसें !

*****

"आज के हालात पर कविता"


हो वैरी का जैविक वार या प्रकृति हुई ख़फ़ा
कि महाप्रलय पे तुले धर्मराज कर रहे ज़फ़ा
विस्मित हैं सांसों के अकस्मात् थम जाने से

सृष्टि विवश निरूपाय उचित उपचार पाने से ।
*****


अहसास | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

परिस्थिति से पलायन

समा गया है हमारे रक्त में

बदल रहा है हमारा डीएनए

बदल रहा है हमारा जिनोम

तो क्या

ज़िन्दा रहने का अहसास

बचा तो है

यह क्या कम है....?

*****

प्रकृति का भी मूल वही है

‘मैं’  प्रकृति  और चेतन  के सम्मिलित रूप का प्रतीक है। इस सम्मिलित रूप में जितना-जितना चेतनता का ज्ञान बढ़ता जाता है, ‘मैं मुक्ति की तरफ बढ़ता है।  जब ‘मैं’ प्रकृति के साथ जुड़ा होता है तब सुखी-दुखी होता है। प्रकृति ज्ञान देने को तैयार है, बुद्धि प्रकृति है. बुद्धि जब अपने मूल से जुड़ती है, तब हम अपने मूल को पहचानते हैं.*****
वैदिक वांगमय और इतिहास बोध-२२
यह सबूत तो वाक़ई अचरज में डालने वाला है कि पुरानी शाखा टोकारियन, यूरोपीय शाखा स्लावी और बाल्टिक तथा सबसे अंतिम शाखा भारतीय-आर्य  और ईरानी – इन सभी शाखाओं में मात्र *मधु-‘ शब्द है। दूसरी ओर पुरानी शाखा अनाटोलियन, यूरोपीय शाखा इटालिक और अंतिम शाखाएँ अर्मेनियायी और अल्बानी – इन शाखाओं में केवल *मेलिथ-‘ शब्द है। संक्षेप में,       समरूप रूप भाषायी लक्षणों को दर्शाती यह समवाक रेखा भारोपीय शाखाओं के भिन-भिन्न कालानुक्रमी समूहों का आलिंगन करती दिखायी देती है। तो फिर वे साझे तत्व कौन-से हैं?*****


आज बस यहीं तक

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।


रवीन्द्र सिंह यादव

12 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा अंक आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  2. अच्छे लिंक और अच्छा संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात, सभी रचनाकारों व पाठकों को शुभकामनाएं, पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजी सुंदर चर्चा के लिए संकलन कर्ता को बधाई, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी सुंदर रचनाओं के साथ मेरी कविता को भी चर्चा मंच में स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏🙏🙏

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  5. सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर लिंक्स से सजी चर्चा प्रस्तुति ।

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  7. आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. ऐसे ही आप अपनी कलम को चलाते रहे. Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं

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