सादर अभिवादन
समय की ये निष्ठुरता अब सहन नहीं हो रही
कितने अपनों को छिनेगी ये,कब तक यूँ ही खून के आँसू रुलायेगी हमें
आदरणीया वर्षा जी तो शायद खुद एक डॉक्टर थी, यकीनन जानकर भी थी और सतर्क भी मगर...
फिर भी इस क्रूर काल से खुद को बचा नहीं पाई।
हाँ,यकीन ही नहीं हो रहा है न कि -एक हँसता-मुस्कुराता चेहरा
जिसे देखकर ही मन प्रफुलित हो उठता था,आज हमारे बीच नहीं है
मुझे भी यकीन नहीं हुआ,जब प्रस्तुति बनाने के लिए रीडिंग लिस्ट खोली ही थी
और जैसे ही पहली पोस्ट जो की जितेंद्र माथुर जी का था उस पर नज़र पड़ी तो दिल धड़क गया
यकीन ही नहीं हुआ,तुरंत मैं शरद जी की पोस्ट पर गई
और वह जाकर जब पता चला कि -ये तो सत्य है
तो मेरी भी हालत जितेंद्र जी जैसी ही हो गई,यकीन करना मुश्किल था
मैंने उसी वक़्त लैपटॉप बंद करके रख दिया।
प्रस्तुति बनाने की हिम्मत ही नहीं रही थी,
देर रात खुद को सयंमित किया और सोचा हमारी इस आभासी दुनिया की
"प्रिय साथी"जिनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में तो मैं कुछ नहीं जानती मगर
उनकी मुस्कुराहट और मिलनसार स्वभाव जो कि-
हर किसी के ब्लॉग पर टिप्पणी के रूप में नज़र आ जाती थी,
जिसने हर एक से एक अनकहा-अनदेखा सा संबंध जोड लिया था
उन के लिए व्यक्तिगत रूप से भले ही ना कुछ कर सकूँ परन्तु
आभासी रूप में दो श्रद्धासुमन तो चढ़ा ही सकती हूँ।
आज का ये विशेष चर्चा अंक आदरणीया "वर्षा जी" को श्रद्धासुमन के रूप में समर्पित है...
जिन्हे "स्वर्गीय " लिखते हुए हाथ काँप रहें है और अंतरात्मा तड़प रही है..
परमात्मा उनकी आत्मा को शन्ति दे और परिवारजनों को सब्र
शरद जी परमात्मा आपको ये दर्द सहने की शक्ति दे।
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सबसे पहली पोस्ट जो जितेंद्र जी ने वर्षा जी को श्रद्धासुमन के रूप में अर्पित किया है
धूप के दर से होकर चली जो हवा
क्या बताएगी वो चांदनी का पता
उसका ख़त आज की डाक में भी न था
आज भी सांझ खाली गई इक दुआ
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आप तक जा के ख़त्म हो जाए
ऐसा मिल जाए रास्ता कोई
मंज़िल-ए-राहे-इश्क़ में "वर्षा"
चलते-चलते नहीं थका कोई
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शिव कहां ! अब पूछती व्याकुल धरा
जो स्वयं ही कण्ठ में धारे गरल
बूंद "वर्षा" की, सभी की प्यास को
तृप्ति देती है सदा निर्मल तरल
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एक नदी बाहर बहती है, एक नदी है भीतर
बाहर दुनिया पल दो पल की, एक सदी है भीतर
साथ गया कब कौन किसी के, रिश्तों की माया है
बाहर आंखें पानी-पानी, आग दबी है भीतर
आंच दिन की न रात को ठहरी
मुट्ठियों में बंधी न दोपहरी
प्यार का दीपदान कर आए
हो गई और भी नदी गहरी
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पत्तियां झुलस चुकी हैं, फूल सूख जाएगा
ये धूप का शहर मुझे इसीलिए न भाएगा
आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा
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एक लय है ख़ुशी, गुनगुनाओ ज़रा
मुझको मुझसे कभी तो चुराओ ज़रा
कौन जाने कहां सांस थम कर कहे -
"अलविदा !" दोस्तो, मुस्कुराओ ज़रा
वर्षा जी का जाना केवल शरद जी के लिए ही नहीं, हम सब के लिए और हम जैसे अनगिनत लोगों के लिए ऐसी क्षति है जिसकी पूर्ति संभव नहीं। आभार कामिनी जी इस आयोजन के लिए तथा मेरे हृदय से फूटे उद्गारों को इसमें स्थान देने के लिए।
जवाब देंहटाएंनि:शब्द हूं..माथुर साहब आपने सही कहा...परंतु ऐसे व्यक्तित्व तो अमर हो जाते हैं...
हटाएंनि:शब्द! न नम आंखों को कुछ दिख रहा है न कंठ से कोई शब्द फूटने को तैयार है... कितना धुंधला-सा लगता है जीवन का यह चित्रपट! वर्षा जी की स्मृति सदैव मन के एक विक्षुब्ध कोने में काल के इस क्रूर दंश से सिसकती रहेगी। वर्षा जी प्रणाम। हमारी यादों के अंतरिक्ष में आपकी ग़ज़ल सर्वदा अनंत को साधती रहेगी।😢😢😢🙏🙏🌹🌹🙏🙏
जवाब देंहटाएंआदरणीय शरदजी, काल के इस भयानक प्रहर में हम आपके साथ हैं। ईश्वर इस भीषण त्रास को सहने की हम सबको शक्ति दे और दिवंगत आत्मा को चिर शांति!!🌹🌹🌹🙏🙏🙏
कल से ही आ. डा. वर्षा जी के निधन की खबर पाकर स्तब्ध हूँ। कई बार उनकी प्रतिकियाओं ने मुझे प्रेरित किया है।
जवाब देंहटाएंउनके बारे में ज्यादा व्यक्तिगत जानकारी तो नहीं, पर रचनाओं और उनकी लेखन कलाओं के माध्यम से उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी है मुझ पर। उनकी सशक्त रचनाएँ ब्लॉग जगत में एक मील के पत्थर की तरह अंकित रहेंगी।
उनकी असामयिक मृत्यु ब्लॉग जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
ईश्वर से उनकी दिवंगत आत्मा हेतु शांति की प्रार्थना करता हूँ।
आदरणीया शरद जी व उनके समस्त बन्धुजनो को, ईश्वर, इस दुख की वेदना को सहन करने की शक्ति दें ।।।।
श्रद्धांजलि। ।।।।।।
आदरणीया कामिनी जी, इस असाधारण प्रस्तुति हेतु ब्लॉग जगत व व्यक्तित्व मेरी ओर से साधुवाद व बधाई की पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंनमन आपको भी.....
ऐसे बधाई की पात्र मुझे नहीं बनना पुरुषोत्तम जी,ईश्वर से प्रार्थना है अब आगे किसी के लिए भी ये "श्रद्धांजलि " शब्द भी ना लिखना पड़ें। कल मुझ पर क्या बीती मैं ही जानती हूँ। अपनों के दुःख में आँसू गिरना फिर भी सहज है मगर शोक संदेश लिखना.....
हटाएंआप की भावनाओं को मैं नमन करती हूँ परन्तु परमात्मा अब ऐसा कोई भी दिन ना दिखाये।
आदरणीय वर्षा जी का इस तरह से जाना सुनकर स्तब्ध और निःशब्द हूं, उनकी हमेशा मुस्कुराती, आंखों में बसी हुई मनमोहक छवि, मन को कचोट रही है, ईश्वर को जाने क्या मंजूर है,अभी तो उन्हें बहुत कुछ करना था वो निरंतर बहुत बढ़िया सृजन गजल कविताओं के रूप में कर रही थी। उनकी टिप्पणी हमेशा पूर्णता लिए होती थी,उनका इस तरह असमय चले जाना हम सबकी और साहित्य जगत की क्षति है, अलविदा प्रिय वर्षा जी,ईश्वर आपको चांद सितारों के बीच सजाए, आप एक तारे की तरह हमेशा चमकें,आपको मेरा शत शत नमन 😢😢🙏🙏🌹🌹।वर्षा जी के बारे में आज का अंक प्रकाशित करने के लिए प्रिय कामिनी जी,आपको मेरा वंदन ।।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि के रूप में पेश है, उनकी ही लिखी कुछ पंक्तियों से प्रभावित, एक कविता, मेरी ओर से एक श्रद्धासुमन-
जवाब देंहटाएंhttps://purushottamjeevankalash.blogspot.com/2021/05/blog-post_4.html
श्रद्धांजलि के रूप में पेश है, उनकी ही लिखी कुछ पंक्तियों से प्रभावित, एक कविता, मेरी ओर से एक श्रद्धासुमन -
जवाब देंहटाएंhttps://purushottamjeevankalash.blogspot.com/2021/05/blog-post_4.html
इस दुखद खबर से स्तब्ध और दुखी हूँ । ईश्वर से उनकी आत्मा हेतु शांति की प्रार्थना करती हूँ । वर्षा जी को अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन समय है। हर सुबह कुछ अनहोनी का अन्देशा। वर्षा जी का जाना चिट्ठा जगत की अपूर्णीय क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनसे जुडे सभी लोगों को इस कठिन समय में दुख सहने का धैर्य प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंडा० वर्षा सिंह जी का परिचय:
हटाएंM.Sc. in Botany, Doctorate in Electro Homeopathy मैं यानी डॉ. वर्षा सिंह बचपन से लेखन कार्य कर रही हूं। मैं वनस्पति शास्त्र में एम.एस.सी हूं, इलेक्ट्रो होम्योपैथी में डॉक्टर हूं तथा मध्यप्रदेश पूर्वक्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी लिमि. सागर से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुकी हूं। मेरे छः ग़ज़ल संग्रह - वक्त पढ़ रहा है, सर्वहारा के लिए, हम जहां पर हैं, सच तो ये है, दिल बंजारा, ग़ज़ल जब बात करती है ; दो नवसाक्षरों हेतु पुस्तकें -पानी है अनमोल, कामकाजी महिलाओं के सुरक्षा अधिकार; एक आलोचना पुस्तक-हिन्दी ग़ज़ल: दशा और दिशा प्रकाशित हैं। मुझे मेरे सृजनात्मक लेखन हेतु केन्द्रीय हिन्दी परिषद, मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मण्डल द्वारा ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान,हिन्दी परिषद् (बीना शाखा) मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मण्डल द्वारा ‘हिन्दी शिरोमणि’ सम्मान,राजभाषा परिषद् भारतीय स्टेट बैंक, सागर शाखा द्वारा ‘उत्कृष्ट साहित्य सृजनकर्ता सम्मान’,हिंदी साहित्य सम्मेलन शाखा सागर द्वारा ‘सुधारानी जैन महिला साहित्यकार सम्मान’, बुन्देली लोक कला संस्था, झांसी, उत्तरप्रदेश द्वारा ‘गुरदी देवी सम्मान’ , शक्ति सम्मान आदि अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। मैं मानती हूं कि महिलाएं शक्ति का पर्याय हैं। उन्हें अपनी शक्ति को पहचान कर आत्मनिर्भर बनना चाहिए, ताकि देश और समाज के विकास में वे अपना पूर्ण योगदान दे सकें।
विश्वास नहीं होता।
जवाब देंहटाएंशब्दों का अभाव मन भारी हो गया।
पिछले महीने ही उनसे बात हुई थी विश्वास करने का मन नहीं होता।
प्रेम की प्रतिमूर्ति थी आदरणीया वर्षा दी।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनसे जुडे सभी लोगों को इस कठिन समय में दुख सहने का धैर्य प्रदान करे।
सादर
कामिनी दी,ब्लॉगिंग की इस आभासी दुनिया मे हम लोग आपस मे मिलते तो नही है। लेकिन न मिलते हुए भी कई ब्लोगरों से एक अनजाना लेकिन मजबूत रिश्ता बन जाता है। आपने जिन शब्दों में चर्चा मंच की शुरुवात की है, वो इस बात की पुष्टि करते है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही दुखद घटना। विश्वास ही नही होता। वर्षा जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
ज्योति जी की बात से शतप्रतिशत सहमत हूं...आभासी रिश्ते अवश्य हैं परंतु कामिनी जी के प्रयास ने हमें आपस में और करीब ला दिया है...वर्षा जी का चला जाना शब्दों में कहा ही नहीं जा सकता...औश्र कितना लिखें हम...
हटाएंआपने सही कहा ज्योति जी और अलकनंदा जी ,हम एक अनदेखे डोर से बंधे है। हम पर एक दूसरे के सुख दुःख का असर होता ही है।
हटाएंमेरा ये प्रयास सिर्फ वर्षा जी के प्रति अपना दुःख प्रकट करने का माध्यम था। यदि आपको लगता है कि -मेरे इस प्रयास से हम सब और करीब आएंगे तो ये मेरा सौभाग्य। वर्षा जी,यकीनन एक सदविचारों वाली आत्मा होगी तभी तो जाते-जाते भी वो हमें ये सीख दे गई।परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। शरद जी के लिए बहुत बुरा लग रहा उनकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। हम चाह कर भी उनके दुःख को नहीं बाँट सकते।
मन में गहरा दर्द है, उनकी प्रतिक्रियाएं बेहतर करना सिखाती थीं। ये दौर बहुत क्रूर है। ईश्वर से प्रार्थना है उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें।
जवाब देंहटाएंदुखद!! शोक-संतप्त करती सूचना, वो मुस्कुराता चेहरा जैसे सामने कोई अपना बेहद अपना आशा का दीपक लिये मुस्कुराकर कहता था मैं हूं ना।
जवाब देंहटाएंअविश्वसनीय!!
साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति, हर ब्लागर आज यही सोच रहा है लो कितना प्यारा साथी यूं बेमौसम चला गया सब को रूलाकर।
इतना जीवंत चेहरा इतनी सजीव स्मित कैसे भूलेगा कोई।
वो सदा अमर हैं हमारे आप सब के दिलों में।
प्रभु उन को साहित्य क्षेत्र जितना ही ऊंच स्थान प्रदान करें।
उनके सभी परिवार जनों को, स्नेही शरद जी को इस वज्रघात को सहन करने की शक्ति दें🙏
ॐ शांति।
कामिनी जी साधुवाद।
ब्लॉग जगत के लिये यह समय बहुत ही पीड़ा दायक है। पहले पाबला जी का जाना (कोरोना से नही) और अब वर्षा जी😢😢😢😢😢😢 ।
जवाब देंहटाएंगत १० वर्षों से मेरी लगभग सभी पोस्ट्स पर वर्षा जी अपना स्नेह देती थीं।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
अरे, कामिनी जी मैं स्तब्ध हूं ये सूचना पाकर, मैंने तो स्वयं उनसे कई टिप्स लिए थे होम्योपैथी के...पता नहीं कोरोना और कितना कहर ढाएगा ... उनके स्नेह को मैं कभी नहीं भूल सकती...ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें
जवाब देंहटाएंचर्चामंच के सभी मित्रो से प्रार्थना है! कृपया अपना ख्याल रखें...हमारे लिए ये समय की चुनौती है जिससे पार पाना ही होगा...प्रणाम
जवाब देंहटाएंस्तब्ध हूँ, हैरान हूँ, कुछ सोच नहीं पा रहा ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग के माध्यम से बने आत्मीय सम्बन्ध कितने अपने और सच्चे थे ... कभी मिला नहीं पर हर बार करीब पाता था उनको, उनकी गजलों को ... मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि ...
बस निःशब्द हूँ ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ओह! अविश्वसनीय, अकल्पनीय शोक की घड़ी है ये । ये कैसे हो सकता है कि हमारे बीच से कोई अचानक मुस्कुराने को कह कर अलविदा कह दे और रिश्तों को माया बता दे । पर हृदय तो हृदय ही है जो सत्य को स्वीकार नहीं कर पाता है और कुछ कहना भी चाहे पर अवाक कर जाता है । श्रद्धांजलि शब्द सोचकर भी कंपकंपी सी हो रही है । नि:शब्द .....
जवाब देंहटाएंस्तब्ध करती घडी
हटाएंशत शत नमन
जवाब देंहटाएंविश्वास नहीं होता, उनका मुस्कुराता चेहरा और सुंदर रचनाओं की पंक्तियाँ मानस पटल पर घूम रही हैं, उनकी प्रतिक्रिया बहुत सधी हुई होती थी. ईश्वर से प्रार्थना है कि शरद जी को इस दुःख को सहने की शक्ति दे और दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे.
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