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Sunday, May 23, 2021

'यह बेमौसम बारिश भली लग रही है जलते मौसम में' (चर्चा अंक 4074)

सादर अभिवादन।

रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।  

यह बेमौसम बारिश

भली लग रही है

जलते मौसम में,

शायद तब हो

जब ज़रूरत हो

फ़सलों के मौसम में!

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद चुनिंदा रचनाएँ-

"अब तो मिलनें में भी लगे पहरे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

शूल बिखरे हुए हैं राहों मे,

नेक-नीयत नहीं निगाहों में

पहले थीं खामियाँ सँवरने में,

अब उजड़ने में भी लगे पहरे।

*****

जब समुद्र मंथन हुआ

मोहिनी एकादशी को

विष्णु ने

रूप धरा मोहिनी

घट अमृत को

छीना दानवों से

सब देवों को

अमृत पान कराया।

*****

अमन नहीं छोड़ा..

परिंदों की शर्तों पर शाखें नहीं उगतीं,

हमने तन,धन छोड़ा वतन नहीं छोड़ा।

थक गए आंधी तूफान भी दर आते-आते

हम बनाते रहे हैं घर सृजन नहीं छोड़ा।

*****

लालबत्ती पर खड़ी अर्थव्यवस्था

भारत में माँग भले ही स्थिर है, अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और व्यापार में तेजी आई है। मई के पहले सप्ताह में निर्यात में 80 फीसदी की वृद्धि है। उद्योग बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। महामारी से पहले के विदेशी निर्यात के आँकड़ों को आधार बनाएंतो अप्रैल 2021 में विदेशी व्यापार की विकास दर 16 प्रतिशत है। घरेलू औद्योगिक गतिविधियों में कमी होने के बावजूद निर्यात में वृद्धि होती रहीक्योंकि वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ी है। लॉकडाउन में छूट मिलते ही घरेलू माँग बढ़ने पर कारोबार फिर तेजी पकड़ेंगे। अनिश्चितता को दूर करने में टीकाकरण की बड़ी भूमिका होगी। इसके लिए कामकाजी युवा-वर्ग के बड़े पैमाने पर टीकाकरण की जरूरत है।

*****

उसे क्या | कविता | डॉ शरद सिंह | नवभारत में प्रकाशित

मत पूछो कारण मृत्यु का

मृत्यु टहलती है इनदिनों

अस्पतालों के आईसीयू वार्डों में

फेफड़ों से ऑक्सीजन सोखती हुई

प्राणरक्षक दवाओं को हराती हुई

जीने की उम्मीदों को तड़पाती हुई

उसे क्या

जो सिर्फ़ बची अकेली छोटी बहन

*****

गीतिका और युग्ल : संजय कौशिक 'विज्ञात'

*युग्म ~ शे'* दो पांक्तियों का समूह जैसे मुखड़ा। *गीतिका ~ विशेष हिन्दी - गजल* जिसमें उर्दू भाषा का प्रयोग किया जाता हो। *प्रवाह ~ रवानी* काव्यमयी वह बहाव जो आत्ममुग्ध करता हो। *पद ~ मिसरा* एक पंक्ति। *पूर्व पद ~ मिसरा ऊला* युग्म की प्रथम पंक्ति को पूर्व पद कहा जाता है।

*****

जब कोई अपना जाता है

जिनसे प्यार हो दिल में उनकी तस्वीर बन जाती है,माना रोज देखते हैं उन्हें पर आँखें रोज भर आती है,उन्हें मेरी आँखों मे आँसू नहीं थे कभी भी पसंद,ये बात उन्हें देख देखकर ज्यादा रुलाती है।

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव


9 comments:

  1. अच्छा अंक। इस महामारी के समय में भी चर्चाकारों की प्रतिबद्धता सराहनीय है।
    उस दिन डॉ के के अग्रवाल का कोरोना से निधन से पहले बनाया गया वीडियो देखा। उसमें वे कहते हैं -
    "THE SHOW MUST GO ON !"
    सचमुच,
    THE SHOW MUST GO ON !

    ReplyDelete
  2. महत्वपूर्ण लिंक्स ..।

    ReplyDelete
  3. रवींद्र सिंह यादव जी मेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏 - डॉ. शरद सिंह

    ReplyDelete
  4. बहुत ही शानदार प्रस्तुति।
    भूमिका सटीक ।
    सभी रचनाएं पठनीय।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    सादर स्नेह।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर पठनीय रचनाओं का संकलन

    ReplyDelete
  6. सराहनीय तथा पठनीय अंक ।सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई आपको ।

    ReplyDelete
  7. उम्दा अंक आज का |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद आपको
    \

    ReplyDelete

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