सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से )
"अमल नीर बह रहा, मैल तो उतार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।"
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आदरणीय रविंद्र सर लगातार सात दिनों तक चर्चा मंच संभालते रहे उनकी
कर्मठता को मेरा सत-सत नमन
यही वो घडी है जब हमें एकजुट हो निस्वार्थ सेवा और सहयोग देनी है...
वर्तमान की यही मांग है,जाति-धर्म सब भूल के मानवता को अपनाना...
तभी हम अपना और आने वाली पीढ़ी का भविष्य सँवार सकते हैं।
आईये इसी संकल्प के साथ चलते हैं कुछ खास रचनाओं की ओर....
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मत करो कुतर्क को, सत्य स्वयंसिद्ध है,
मन को साफ कीजिए, पथ नहीं विरुद्ध है,
धर्म, प्रान्त-जाति के, बन्द अब विवाद हों,
मनुजता के नीड़ से, दूर सब विषाद हों,
किसी के होंठ पे दिखती न मुझको वो खुशी है
जिसे चंद रोज़ पहले हमने तुमने की थी साझा
वो जा के दरमियाने सात परतों के छिपी है ।
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शायद फिरौती में माँगी गई रकम
शास्त्रों में ईश्वर की तुलना आकाश से, आत्मा की सूर्य से, मन की चंद्रमा से और देह की पृथ्वी से की गई है। जिसमें सब कुछ टिका है, पर जो किसी पर आश्रित नहीं है, जब कुछ भी नहीं था तब भी जो था
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कर रहे हैं भक्त पुकार,
सुन ले हे मातु भवानी।
रक्षा के लिए गुहार,
सुन ले हे मातु भवानी।
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उठती हुई पीड़ा हो ,
या हो
सबसे पहले चर्चामंच की पूरी टीम को बहुत-बहुत धन्यवाद/आभार इस कठिन समय में भी आप कंटिन्यू इस मंच का कार्य संचालन कर रहे हैं जो कि काफी काबिले तारीफ है इस टीम के कई सदस्य इस वक्त अस्वस्थ है पर टीम के अन्य इस मंच का कार्य बखूबी निभा रहे हैं।
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ReplyDeleteआद. कामिनी जी बहुत ही उम्दा चर्चा।
ReplyDeleteमेरी ब्लॉग की एक पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
उत्कृष्ट चर्चा अंक आ०कामिनी जी। सुंदर रचनाओं का संयोजन।
ReplyDeleteसुन्दर पठनीय सूत्र पिरोने के लिये आभार
ReplyDeleteसारगर्भित चर्चा, आज के अंक में डायरी के पन्नों को सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
ReplyDeleteसुंदर और पठनीय सूत्रों से सजा अंक,मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
ReplyDelete👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏
उम्दा व सार्थक अंक ! आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक प्रिय कामिनी। मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteआदरणीय रवींद्रजी ने लगातार सात दिनों तक चर्चामंच के प्रकाशन को निर्बाध गति से अंजाम दिया। इस ऊर्जा, कर्मठता और प्रतिबद्धता के लिए वे निश्चय ही सराहना के पात्र हैं। उनका यह कार्य हमें निराशा,अकर्मण्यता एवं नकारात्मकता से लड़ने की प्रेरणा दे रहा है।
ReplyDeleteवाह लाजबाव चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteआप सभी स्नेहीजनों को तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
ReplyDeleteमेरी कविता " मैं सम्पूर्ण सार लिए " को इस मंच पर स्थान देने के लिए आपका सादर धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी ! 🙏 😊
ReplyDeletedam hai boss
ReplyDeleteचर्चा पर देर से पहुंचने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति बहुत अच्छी भूमिका शीर्ष पंक्तियां बहुत सुंदर।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।