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बुधवार, मई 05, 2021

"शिव कहाँ जो जीत लूँगा मृत्यु को पी कर ज़हर "(चर्चा अंक 4057)

सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति मे स्वागत है आप सभी का 
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय दिगंबर जी की रचना से)


शास्त्री सर तो पहले से ही बीमार थे ,अब अनीता जी की भी अस्वस्थ होने की खबर मिली है 
इसीलिए आज मैं फिर से उपस्थित हूँ 
लेखन और पठन दोनों से मन उचट सा रहा है... 
प्रस्तुति लगाना भी अच्छा नहीं लग रहा,परन्तु... 
जो चले गए उनका शोक तो दिल से जायेगा नहीं मगर...  
जो है उनके लिए साकारत्मक रहना भी नितांत आवश्यक है...
और हमारा तो सहारा कलम ही है... 
हम उसी से किसी को ख़ुशी भी दे सकते हैं और सुकून भी... 
हौसला अफ़ज़ाई भी कर सकते हैं और हतोत्साहित भी... 
तो बस, अपना कर्तव्य समझ यही करने का प्रयास करते रहना है हमें.. 
सही कहा आपने दिगंबर जी 

इस विरह की वेदना तो प्राण हर लेगी मेरे,
शिव कहाँ जो जीत लूँगा मृत्यु को पी कर ज़हर.
--
विरह की वेदना हर तरफ सिसक रही है,
लेकिन कोई शिव तो नहीं जो मृत्यु पर विजय पा सकें 
हर तरफ सिसकियाँ और दर्द का आलम है तो ऐसे में 
यदि हम दो घड़ी भी किसी को सुकून दे सकें 
तो सौभाग्य है अपना 
---





लुप्त हो जाते हें जब इस रात के बोझिल पहर.
मंदिरों की घंटियों के साथ आती है सहर.


शाम की लाली है या फिर श्याम की लीला कोई,
गेरुए से वस्त्र ओढ़े लग रहा है ये शहर.
 
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समय की चाल ना कभी रुकी है ना रुकेगी किसी के लिए 
 बस, इसके साथ चलना ही होता है.....

 समय की चाल




कभी नहीं होता कुछ जग में,

 अकारण अकाल!

समय सदा से चलता आया,

अपनी अद्भुत चाल।


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सफर जिंदगी का




ना साथ छोड़ रही है ना ही ठीक से साथ निभा रही है!
जिन्दगी और मौत की इस लडा़ई को, 
मैं अकेली लड़ रही हूँ
जिन्दगी के इस सफर में अकेली पड़ रही हूँ!


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श्रद्धासुमन



जब भी खिल आएंगी, कहकशाँ,
वो याद आएंगे, बारहां!

बारिशों से, नज्म उनके, बरस पड़ेंगे,
दरख्तों के ये जंगल, उनकी ही गजल कहेंगे,
टपकती बूँदें, घुँघरुओं सी बज उठेंगी,
सुनाएंगी, कुछ नज्म उनके,
उनकी ही कहानियाँ!


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ये साहित्य की दुनिया  जिसे "ब्लॉग-जगत "कहते हैं जहाँ सिर्फ लिखने और पढ़ने का कार्य नहीं होता 

यहाँ हम एक दूसरे से एक अनदेखे बंधन से भी जुड़ते जाते हैं..

मुझे तो महज दो-ढाई साल ही हुए ब्लॉग जगत से जुड़ें हुए,वर्षा जी से तो मिले महज 4 -5 माह ही हुए थे 

इस आभासी जगत में ढेरों आभासी मित्र बने,जिनके स्नेहिल प्रतिक्रिया के माध्यम से एक स्नेह-बंधन जुड़ता गया। 

इस सफर पर सबसे पहली मेरी सखी बनी "रेणु "

जिनके साथ तो ऐसा लगता है जैसे इस जन्म का नहीं कोई पिछले जन्म का रिश्ता जुड़ा है। 

इतने समय में मेरा अनुभव यही कहता है कि -ये  "आभासी रिश्ता "

 सचमुच सबसे पावन और पवित्र रिश्ता हो सकता है 

बशर्ते  इसकी गरिमा को बनाये रखा जाए,जो कि वर्षा जी ने हमें सीखा दिया। 

कुछ स्वार्थी और भ्रमजाल में फांसने वाले तो हर जगह है जिन्होंने हर रिश्तें को नापाक किया है। 

 

(मैंने अपनी एक लेख "खिलते है फूल बनके,चुभते है हार बनके "

में इस पर विस्तृत चर्चा की है,)


आज वर्षा जी ने जाते-जाते ऐसे 

 रिश्तों के  पवित्र-बंधन को सिद्ध कर दिया 
किसी आभासी रिश्तें के असमय चले जाने का इतना गम होता है,मैंने कभी अनुभव नहीं किया था। 

वर्षा जी के लिए हर एक की आँखें नम है। 

उनको श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए "सखी रेणु" की लिखी चंद पक्तियाँ 

जिसने हर एक के दिल की पीड़ा कह दी है....



लौट आओ दोस्त
हुई सूनी दिल की महफ़िलें,
नज़्म है उदास
थमे ग़ज़लों के सिलसिले,
अंतस में घोर सन्नाटे हैं।
सजल नैनों में ज्वार - भाटे हैं
बिछड़े जो इस तरह गए
ना जाने किस राह चले?
कौन देगा शरद को
स्नेह की थपकियाँ
किसके गले लग बहन की।
थम पाएंगी सिसकियां
किस बस्ती जा किया बसेरा

हुए क्यों इतने फासले!! 



पता है वो जहाँ गई है वहाँ से लौटना असम्भव है मगर.....

अब तो परमात्मा से यही दुआ है-"रोक लो ये त्रासदी"


आप सभी अपना और अपने अपनों का बहुत-बहुत ख्याल रखें 
घर में रहें सुरक्षित रहें 
कामिनी सिन्हा 


13 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के दर्शन को चुनती रचनाओं का सुंदर लिंक। रेणु जी द्वारा दिवंगत वर्षा जी को समर्पित श्रद्धा-शब्द दिल को छू गए। शीर्षक गीत अप्रतिम लगा। अत्यंत आभार इतनी सुंदर प्रस्तुति का!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. सामयिक और समुचित चयन किया है आपने। नमन।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीया कामिनी जी, इस आभासी जगत की बात ही कुछ और है। यह हमारी चेतनाओं को जोड़ता हुआ ऐसा जाल है जिसमें हम उलझकर और आनंदित होते हैं । कभी-2 यह दुःख का कारण भी बनता है, जो मानसिक पीड़ा दे जाती है और हम किसी से कुछ कह भी नहीं सकते।
    पर एक दीर्घकाल में हमें सच और झूठ, गलत सही की पहचान हो ही जाती है।
    आप जैसे चंद लोग है, जो इस बंधन को और मजबूत बना रहे हैं। उन सभी को हार्दिक नमन है।
    आदरणीया स्व. वर्षा जी के निधन ने इस तथ्य को और भी सत्यता प्रदान की है। योग्यता और प्रकृति से बढकर कुछ भी नहीं।
    पिछले दिनों, गूगल प्लस के wind up होने के कारण में जब हमारे ब्लॉग से हजारों टिप्पणियाँ स्वतः ही गायब हो गई थी तब भी एक टीस का आभास हुआ था और आभासी पर सशक्त कलाकार मित्रों का साथ छूटने का गम भी हुआ था।
    तत्पश्चात कई कर्मठ ब्लॉगरों ने फेसबुक का सहारा लेकर ब्लॉग को चलाने की कोशिश की। लेकिन मुझे हमेशा ही लगा कि ब्लॉग पर लिखी रचना की टिप्पणी और प्रतिक्रिया ब्लॉग पर ही आनी चाहिए। लेकिन आज भी शत् प्रतिशत ऐसा नहीं हो रहा है। यह चिंता का विषय है।
    ऐसे में हम किसी ब्लॉगर मित्र के निधन पर शोक प्रकट कर शायद झूठी तसल्ली दे रहे हैं खुद को।
    इस मंच के माध्यम से मै इस विषय पर लोगों को और मुखर और जागरूक होने के लिए आग्रह करंगा।
    आशा है, ब्लॉग जगत इस तथ्य को समझेगा।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ व नमन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी,
      आपके विचारों से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। ये सच है कि -ये ब्लॉग जगत भी हमारा एक परिवार हो गया है जहाँ हम सबकी ख़ुशी में खुश हो लेते है और गम में दुखी। अब ये दिखावा एक छलावा भी हो तो भी क्या ?कम से कम हम थोड़ी देर के लिए ही सही किसी से जुड़ तो जाते हैं। अगर इस रिश्तें की पाकीज़गी बनाये रखा जाये तो इससे पवित्र कोई रिश्ता नहीं जहाँ सिर्फ ज्ञान और भावनाओं का आदान प्रदान होता है। बाकी स्वार्थ तो किसी भी रिश्तें को नापाक कर देता है,कुछ स्वार्थी लोग ही हमारे दुःख का कारण बनते है। हाँ,ये भी सत्य है कि -देर-सवेर हम उन्हें पहचान लेते है मगर कभी-कभी बहुत देर हो जाती है और वो हमारे दुःख की वजह बन जाते हैं। यहाँ भी मैं यही कहूँगी (जो कि-मैंने अपनी लेख में कहा है)कि -यदि रिश्तों के मर्यादाओं का ध्यान में रखेंगे तो कोई भी आपको छल नहीं सकता। वर्षा जी,यकीनन एक सदविचारों वाली आत्मा होगी तभी तो जाते-जाते भी वो हमें ये सीख दे गई।
      जहाँ तक ब्लॉग जगत में पूर्ण सहभागिता की बात है तो मैं यही कहना चाहूंगी कि -हम साहित्यजगत से जुड़े परिपक्व लोग है हमें आज की नवयुवक-युवतियों जैसा व्यवहार शोभा नहीं देता जैसा कि फेसबुक जैसी जगहों पर होता है। हमारा हर एक कथन हमारे आगे की पीढ़ियों के लिए संवाहक है तो हमें बहुत सोच-समझकर मर्यादित तरिके से अपनी बात रखनी चाहिए ,जैसा कि हम ब्लॉग जगत की टिप्पणियों में रखते हैं। तो फेसबुक और ब्लॉग जगत दोनों को अलग रखकर ही हम ब्लॉग जगत को बचा सकतें हैं। ब्लॉग पर लिखी रचना की टिप्पणी और प्रतिक्रिया ब्लॉग पर ही आनी चाहिए,इस बात से मैं भी पूर्णतः सहमत हूँ।
      अपने विचारों को साझा करने के लिए हार्दिक आभार आपका। सादर नमन आपको

      हटाएं
  4. आप की चर्चा में मेरी रचना को मुख्य स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार है आपका ...
    आदरणीय वर्षा जी का असमय जाना बहुत बड़ी क्षति है ... हमारे पास केवल प्रार्थनाओं के सिवा कुछ नहीं है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। सही कहा आपने इस समय साहित्य ही वह सम्बल देगा। पढ़ना लिखना जारी रखें।

    जवाब देंहटाएं
  6. भावों का अथाह सागर समेटे आज का अंक हृदय स्पर्शी संवेदनाओं से भरा है।
    इस अनुपम चर्चा के लिए साधुवाद कामिनी जी।
    सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन।
    सभी रचनाएं समय की अमिट पदचाप हैं ।
    सादर सस्नेह।

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  7. अच्छी चर्चा। आदरणीय शास्त्री जी और अनीता जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना है।

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  8. आभारी हूं कामिनी जी...। मेरी रचना को स्थान देने के लिए। ये हालात हैं जो रोज कुछ ऐसा दिखा रहे हैं, सुना रहे हैं जिनसे हम अपने आप को असहज सा पा रहे हैं। बदलेगा ये दौर, ये स्याह दौर बीतेगा। आभारी हूं आपका

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  9. प्रिय कामिनी जी,आज की विकट स्थिति में आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन करती हूँ,सूत्रों का चयन,संयोजन,प्रस्तुतीकरण के सुंदर कार्य के लिए आभार और शुभकामनाएँ।आज का अंक बहुत ही सामयिक तथा पठनीय है,आदरणीय शास्त्री जी तथा प्रिय कामिनी जी के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करती हूँ...जिज्ञासा सिंह ।

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  10. उम्दा चर्चा, कामिनी दी। ईश्वर से प्रार्थना है कि आदरणीय शास्त्री जी और अनिता दी को शिघ्र स्वास्थ्य लाभ दे।
    मैं भी परुषोत्तम भाई के विचारों से सहमत हूं।ब्लॉगिंग की दुनिया आभासी ही सही लेकिन हैम लोगो मे एक अनजाना ही सही रिश्ता बन जाता है। वो इतना मजबूत जो जाता है कि अनजाना भी नही कह सकते। जैसे कि वर्षा दीदी से रिश्ता। उनके जाने का इतना दुख हुआ कि लगा ही नही की मैं उन्हें रूबरू जानती नही हूं। ऐसा लगा कि जैसे कोई मेरा अपना करीबी मुझ से बहुत दूर चला गया।

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  11. बेहतरीन लिंक्स के साथ सुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी।

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