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शुक्रवार, मई 21, 2021

'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 )

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से। 

 सादर अभिवादन। 

शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

इज़राइल-फिलिस्तीन  

युद्धविराम का 

समाचार सुन 

प्रबुद्ध मानवता 

लेती है 

पुरसुकून की सॉंस,

दोनों में जीता है कौन?

पर हमें तो 

चुभ रही है 

निरीह मासूमों की 

मौत की फाँस! 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 

सुप्रसिध्द पर्यावरणविद एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा जी का 94 वर्ष की आयु में ऋषिकेश एम्स में करोना संक्रमण के चलते आज निधन हो गया। 

चर्चामंच परिवार उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।   

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद चुनिंदा रचनाएँ-

"मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

हो गया क्यों बे-रहम इन्सान है?

हो गया नीलाम क्यों ईमान है?

हबस के बहशी पुलिन्दे आ गये।

मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
*****

जब...

सदियों से तुम्हारी प्रशंसा में 

 कसीदे पढ़ने वालों की

  नींव...

 दरक रही है धीरे-धीरे

सुनो !

 जड़-चेतन साझा सहभागी हैं

प्रकृति के ..,

हम भी उन्हीं की संतान हैं

और माँ की नजर में तो

 सभी समान है

*****

८- झूल रही मैं

रहती दुविधा में

क्या किया जाए

९-उड़ान भरी

अधर में अटकी

पंख उलझे  

*****

वह एक नजर है किसी गुरू की 

जो हर लेती है सारा विषाद शिष्य के अंतर का 

या एक स्पर्श  है माँ के हाथों का 

अथवा तो पिता का सबल आधार है 

जो शिशु को डिगने नहीं देता 

इन सबसे बढ़कर वह सहज प्रेम है 

या उसमें सब कुछ समाया है 

*****

जब डर नहीं लोगों में तो कोरोना भी क्यों डरे --

इम्युनिटी कम हो तो फंगस पर ताला नही होता,
मुंह पर सूजन होती आंख में उजाला नही होता।
हर गोल्डन दिखने वाली चीज गोल्ड नही होती,
ब्लैक फंगस भी वास्तव में काला नही होता।।
*****
पर्वतों पर, झुक रही वो घटा,
न्यारी सी, वो छटा,
विहँसता घटा,
दो बोल, ऐसे ही बोल दो,
लब खोल दो!
*****

हल्दी के 
छापे -कोहबर
हुडदंग इसी का है ,,
फूलों की
हर शाख
फूल में रंग इसी का है ,
आँखों की 
भाषा पढ़ने का 
हुनर सिखाता है |
*****
एक तरफ देश महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ महँगाई इस कदर आसमान छू रही है कि मध्य वर्ग का घर चलाना दुश्वार हो गया है। लॉकडाउन की वजह से जहाँ दिहाड़ी मजदूर भूखों मरने के कगार पर हैं वहीं शासन-प्रशासन के कर्ता-धर्ता मूक रह कर मौत की एक और त्रासद लहर के आने का जैसे इंतजार ही कर रहे हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कुछ विशेष प्रावधानों ( जिनमें कुछ मूलभूत अनाजों और अन्य उत्पादों की जमाखोरी पर प्रतिबंध
*****
तुम रहो तो बात सब प्यारा लगे,
तुम से ही है शोभिता श्रृंगार है।

हम जहां में साथ ही जीते रहें,
साथ ही मरना हमें स्वीकार है।
*****

इसके बाद एंकर ने उनसे चीन के शिनजियांग में वीगुरों के उत्पीड़न को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने कहा, चीन हमारा दोस्त है और हम उनके साथ डिप्लोमैटिक चैनल पर बात करते हैं। जब उनसे पाकिस्तान में महामारी को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने जवाब का रुख भारत की ओर मोड़ते हुए कहा कि वहाँ तो हालत बहुत ज्यादा खराब है।

श्वाँस का घर्षण (कोरोना काल)

श्वाँस का घर्षण छिड़े,छाए व्यथा हर अंग में ।
रोंया रोंया टूटता, कालिख पुती हर रंग में ।।

हर तरफ फैली विफलता,हर तरफ आक्रोश जैसा ।।
फिर भला कैसे संवारें देश, औ श्रृंगार कैसा ?
*****

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

11 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा रचनाओं से परिपूर्ण बेहतरीन प्रस्तुति 👍👍❤️❤️

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  2. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद। सभी लिंक का चयन बहुत अच्छा है।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा चर्चा। बहुगुणा जी को भावभिनी श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  5. देशों में आपसी वैर मिटे, युद्ध बन्द हो, कोरोना का कहर जल्द से जल्द खत्म हो, सार्थक भूमिका के साथ सुंदर लिंक्स का चयन, आभार !

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  6. आपका हृदय से आभार।सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  7. सार्थक भूमिका के साथ सुंदर लिंक्स का चयन । चर्चा मंच की प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार रवीन्द्र सिंह जी।

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  8. अच्छी रचनाएँ, बेहतरीन अंक।

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  9. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. सराहनीय सूत्रों से सजा अंक, बहुत बहुत आभार एवम सादर शुभकामनाएं रवीन्द्र सिंह यादव जी ।

    जवाब देंहटाएं

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