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सोमवार, मई 24, 2021

'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

ख़बर है कि हद तक फ़ज़ीहत में पड़ने के बाद बाबा रामदेव ने कहा है-

"मैं एलोपैथी का विरोधी नहीं हूँ।"

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ ताज़ा-तरीन रचनाएँ-

"विपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है,

कुहासे को मिटाने को, उसी ने तो हवा दी है।

जो रहते जंगलों में, भीगते बारिश के पानी में,

उन्ही के वास्ते झाड़ी मे कुटिया सी छवा दी है।।
*****
गुप्ता जी – ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का पाठ पढ़ाने वाले संत रैदास के शिष्य हमारे सुकुल आज हनुमान जी का प्रसाद कैसे बाँट रहे हैं?
शुक्ल जी – अमाँ कल की बात भूल जाओ ! प्रसाद ग्रहण करो.
गुप्ता जी – हम प्रसाद तो तभी ग्रहण करेंगे जब तुम इस ह्रदय-परिवर्तन के रहस्य का उद्घाटन करोगे.
शुक्ल जी – प्रसाद ले लो यार ! बड़ी अच्छी बूंदी हैं.
गुप्त जी – पहले तुम इस ह्रदय-परिवर्तन का कारण बताओ. तुम्हें बजरंग बली की कसम !
शुक्ल जी – बड़े धर्म-संकट में डाल दिया तुमने ! बजरंग बली की झूठी कसम तो मैं खा नहीं सकता.
मेरा कोई ह्रदय-परिवर्तन नहीं हुआ है. बजरंग बली का भक्त मैं कल भी था और आज भी हूँ. हाँ मेरा मोज़ा-परिवर्तन ज़रूर हुआ है.
*****

तुम्हारे भीतर जो

बसी है 

उदासियां, पीड़ा

दुख  और अकेलापन

स्पीड पोस्ट कर दो मुझे

मैं उन्हें सहेज रखूंगा 

अपने भीतर किसी उपहार की तरह

*****

पत्रकार‍िता की आड़ में पीड़‍ितों को न‍िगलता “बड़ों” का रसूख

और अंत में सभी पत्रकारों से यही कहूंगी क‍ि हमें अपना ग‍िरेबां चुस्‍त दुरुस्‍त रखने के ल‍िए ही सही,  #ज़फ़र_इक़बाल_ज़फ़र के ही शब्‍दों में “रेत का लिबास पहनकर हवा के सफ़र पे निकलने” वाली बेवकूफ़ी से बचना चाह‍िए।

एक ग़ज़ल

बस्तियाँ जल के जब ख़ाक हो ही गईं,

बाद जलने के आना न आना भी क्या !

अब सियासत में बस गालियाँ रह गईं,

ऎसी तहजीब को आजमाना भी क्या !

*****

सुधा चुरा लूँ चँदा से।

चंचल किरणे रचूँ पत्र पर

करतब सीखूँ वृंदा से।

चटकी कलियाँ फूल खिला दूँ

पनधट बोध लिखूँ भविता।।

*****

किताब में खोजता है एक अदद नींद


वो थके व्यक्ति को

शब्दों की थाप देकर

सुला देती है

इस उम्मीद से

कि कोई भोर होगी

जब व्यक्ति

अपने अंदर से जागेगा

बदहवास दौड़ को

पीछे छोड़...।

*****

बची खुची सांसों का हाल पूछता हुआ निकल लेता है सूखी पथरीली रेतीली धरती पर बरसने को *****खण्ड काव्य कैसे लिखें ? संजय कौशिक 'विज्ञात'

यह एक साहित्यकार का तप है जो गहन अध्ययन, एकाग्रता और लेखन के प्रति समर्पण माँगता है। परंतु इस कठिन साधना का फल इतना हर्षदयक होता है जिसकी कल्पना उस साधक के अतिरिक्त कोई नही कर सकता। उसके लेखन कौशल को परिभाषित करता खंड काव्य उसे पूर्णता का आभास कराता है।*****मन की बात / ओछी सरकार

बाँट चवन्नी कहते रुपया हरिश्चंद्र की ये औलाद टकरा कर हर आँसू रोया ऐसा है सीना फौलाद महँगाई का खीँचे फंदा बोले गाओ राग मल्हार*****

इन हवाओं ने

फिर से

बिछुड़ चुके

उन सभी मिठे-मिठे

एहसासों को

बचपन के ख़जाने से

ढूँढ़कर

आज मेरे

थक चुके मन को सहला रही है।

*****

 आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

11 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ प्रस्तुत सभी रचनाएं उत्कृष्ट लग रही है। मैं एक-एक कर सभी को अवश्य पढूंगा।
    मैं अभी केवल "खण्ड काव्य कैसे लिखें?" इसे ही पढ़ा हूँ। इस लेख ने मेरा बहुत मार्गदर्शन किया। मुझे इनके ब्लॉग पर मेरी आवश्यकता की बहुत सारी सामाग्रियाँ मिली। इस ब्लॉग की जानकारी यहाँ देने के लिए आपका अभिनन्दन।
    साथ ही मेरी रचना को इन महानुभावों के बीच स्थान देने के लिए सहृदय आभार एवं बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। 🙏🌺

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी ब्‍लॉगपोस्‍ट को शम‍िल करने के ल‍िए बहुत बहुत धन्‍यवाद रवींद्र जी, बहुत बढ़‍िया कलेक्‍शन द‍िया, चर्चा मंच का बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. जी बहुत आभारी हूं आपका...मेरी रचना को सम्मान प्रदान करने के लिए। शेष सभी रचनाएं श्रेष्ठ हैं। आपको बेहतर चयन के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. पठनीय रचनाओं के लिंक्स सुझाती सुंदर चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी भाई रविन्द्र जी।
    भूमिका सार्थक संतुलित।
    आदरणीय शास्त्री जी का फिर से सक्रिय होना बहुत अच्छा लग रहा है।
    चर्चा कारों की नामौजूदगी अखर रही हैं ईश्वर करे सभी शुभ हो।
    सभी रचनाएं बेजोड़ है सभी रचनाकारों को बधाई।
    ममुझे चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति आदरणीय रवींद्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. भैय्या रवीन्द्र जी
    शुभ संध्या..
    दिनांक सत्रह से चौबीस तक
    लगातार प्रस्तुति बनाने का रिकॉर्ड
    आपके नाम हुआ..साधुवाद
    मैं कायल हुई आपकी कार्यक्षमता की..
    शुभकामनाएं स्वीकार करें
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  9. श्रमसाध्य कार्य तथा रोचक अंक के लिए आपको बहुत बधाई रवींद्र जी,आपको सादर शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं

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