सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीया कल्पना मनोरमा जी की रचना से वाक्यांश-
सांझ का लाल मुखमंडल देखकर लग रहा था कि सूरज अस्ताचल की ओर मुखातिब हो चला था। पश्चिम की ओर क्षितिज पर लग रहा था, किसी स्त्री ने चूल्हे में ढेर सारी लकड़ियाँ एक साथ जला दी थीं जिनमें मानो वह भुट्टे भून रही थी और आग की रेशमी गुनगुनाहट के साथ आकाश से लेकर धरती तक सुनहरी लालिमा पसरती जा रही थी। आकाशमार्गी सभी जीवों का मुख पश्चिम की ओर था। लग रहा था कि वे सभी सूरज के प्रेमी हों। जहाँ पश्चिम दिशा गुलज़ार होती जा रही थी वहीँ पूरब की ओर सन्नाटा पसरता जा रहा था। संध्यारानी ने अपने स्लेटी आँचल को कंधे से गिराकर खोल दिया था और लहरा-लहराकर रात्रि के स्वागत के लिए बेचैन हो रही थी। हवा वृक्षों की फुनगियों से उलझ-उलझ कर बहनापा दिखा रही थी। मेरे माथे पर पड़ी लटें उड़कर उसे थपक रही थीं। अभी मन साँझ की मनोरम झांकी में निमग्न ही था कि इतने में हवा के एक कोमल झोंके पर सवार होकर मेरा छुटपन का मन छलाँगें मारता हुआ महानगर से दूर उत्तर प्रदेश की औरैया तहसील में बसा एक हरे-भरे कमल पत्ते-से गाँव अटा जा पहुँचा। वहाँ ये समय मक्की की आख़िरी खेप आने का होता था। बरसात, कांस को बूढा कर विदा हो चुकी होती थी। बम्बा और कूलों पर फूल-फूलकर लम्बी घास सहर्ष मौसम के बदलाव को स्वीकार कर चुकी होती थी। लेकिन खेतों की मिट्टी में वर्षा की नमी वैसे ही बची रहती थी जैसे बचत खोर स्त्री के मुट्ठी में पैसे। जिसके साथ मिलकर पवन मौसम में ठंडक घोलने लगती थी। बरसात के दिनों में चूने से पुती दीवारों पर जमी काही धूप लगने से चटकने लगती थी। दिन सुनहरे और रातें ओस से भरीं होने लगती थीं। दिनभर गुनगुनाहट में घर की चीज़-सामान सुखाये जाते और रात में चंद्रमा की झरती चाँदनी में प्रकृति का मन ओसीले मोतियों से भर जाता था। गाँव में इन दिनों की शामों में कुछ लोग भोजन करते और कुछ भुट्टे भुनवाकर खाते थे और चौपालों में बैठकर मनमानी बतकही का रस लिया करते थे।
आइए पढ़ते हैं आज की कुछ चुनिंदा रचनाएँ -
अभी गाँव के देवालय में, बूढ़ा पीपल जिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी, होता वो शरमिन्दा है।।
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बाबू-अफसर-नेता करते, खुलेआम रिश्वतखोरी,
जिनका खाते माल, उन्हीं से करते हैं सीनाजोरी,
मक्कारी के जालों में, उलझा मासूम परिन्दा है।
करतूतों को देख हमारी होता वो शरमिन्दा है।।
हमें ज़र नहीं आतींपेड़ों की अस्थियां और उन पर रेंगते समय की पीठ परहमारे कुचक्र।--हर कोई बीत जाएये मुम़किन नहींउनका देह नहीं तोनाम ज़िंदा रहेगा--मुझे यक़ीन है कि कल वो
ज़रूर कुछ ख़ास ख़बर
ले के आएगा, बर्फ़
का दरिया है
एक दिन
पिघल
जाएगा। --झूठ की कश्ती पर बैठा वो मुसाफ़िरजाने कहाँ जाने को तैयार हैझूठा रास्ता है जिसका उसकी मंजिले भी बेकार हैडोर भी थाम रखी है उसनेकाटों से भरी है--खुशियों से भरी महफिल हंसते दिन हँसती राते शामों की रंगीन झलक दिखला जानाबीते हुवे लमहों ज़रा लौट के आजाना।।
माना गम की धूप है छाई.....जीवन में रिक्तता भर आईअम्बर से आशाओं की बारिष कर जानाबीते हुवे लम्हो जीवन रंगीन बना जाना।।--आज यूँही यादों के सफर में निकल गयी जब हाथ पड़ा पुराने एल्बम पर एक से दूजा तीजा मन खो गया उन दिनों की यादें जैसे बचपन लौट आया वो स्कूल के दिन और उन दिनों की आशाएं--
ज़रूर कुछ ख़ास ख़बर
ले के आएगा, बर्फ़
का दरिया है
एक दिन
पिघल
जाएगा।
हमेशा की तरह बहुत बढ़िया।👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।हमारी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंसु-प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद अनीता जी |
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी 🙏
जवाब देंहटाएंजिस प्रकार का वातावरण चल रहा है उसमें स्वयं को सकारात्मक बनाए रखना बेहद जरूरी है । अनिता जी के इस प्रयास से निश्चित ही खुशी का अनुभव हो रहा है । बहुत धन्यवाद के साथ ...... शुभ दिन!
जवाब देंहटाएंवाह अनीता जी, सभी रचनायें एक से बढ़कर एक हैं...और कल्पना जी की रचना से की गई शुरुआत तो बहत ही गजब की रही...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह ! इतनी सुंदर भूमिका कि पढ़ते पढ़ते ही मन गाँव पहुँच गया और प्रकृति की सुंदरता में खो गया. पठनीय सूत्रों से सजी सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ साथ शानदार प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई प्रिय अनीता जी,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंआशा के मोती पिरोए,हरी-भरी वंदनवार बाँधी,
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा आपने समवेत वंदना बना दी.
मोगरे को भी जगह दी.धन्यवाद,अनीता जी.
अभिनन्दन आपका और रचनाकारों का.
मेरी रचना को इस मंच के लायक समझने के लिए, स्नेह और सम्मान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसुंदर भुमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का संकलन प्रिय अनीता, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंअनीता सैनी जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो अपने मेरी रचना को अपने संकलन में शामिल किया, और बहुत ही खूबसूरत रचनाओं का सम्मेलन है, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआभार!