सादर अभिवादन !
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है ।
शीर्षक व काव्यांश आ.जयकृष्ण राय तुषार जी की ग़जल 'मौसम सारे अच्छे थे' से-
हिरनी,मछली,जल पाखी की प्यास का गहरा रिश्ता था
लहरों से हर पल टकराते नदी किनारे अच्छे थे
अपनी बोली-बानी अपना कुनबा लेकर चलते थे
बस्ती-बस्ती गीत सुनाते ये बंजारे अच्छे थे
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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बालगीत "अपने पैर पसार चुका है, पूरी दुनिया में कोरोना"
बाहर नहीं निकलना घर से,
घर में पूरा समय बिताओ।
हर घंटे हाथों को धोओ,
साफ-सफाई को अपनाओ।
अपनी पुस्तक को दोहराओ,
यह अनमोल समय मत खोना।
मन्द मन्द मुस्कान किसी की माँझी भी गुलज़ार सा था
फूलों की टोकरियाँ लादे सभी शिकारे अच्छे थे
पक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नहीं
कच्चे घर में दिखने वाले ख़्वाब हमारे अच्छे थे
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दशकों पहले संग चले थे
आज भी राही से मार्ग पर,
बन के इक-दूजे का संबल
बढ़ते जाते निर्भय होकर !
कमरे में झांकने से मिल गई थी
कुछ सुखी कलियां
जो फूल होने से बचाई गई थी
जैसे बसंत को रोक रही थी वो
कुछ डायरियों के पन्नों पर
नदी सूखी गई थी
तो कहीं पर यातनाओं का
वह पहाड़ था जहां
उसके समस्त जीवन के
पीडा़वों के वो पत्थर थे
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#सर्द शाम #चाय की #चुस्कियों में खो जाते हैं !
चायपत्ती का वो हल्का सा नशीला रुआब है,
अदरक का गले को सहलाता वो तीखा अंदाज है,
उस पर शक्कर सी बातों का मीठा लिहाज है ,
चलो यूं ही तपिश के सुकु लिबास में घिर जाते हैं।......
आज तो एक सिरा जाल का ही काटा है,
अभी तो लाख सिरे काटने को बाकी हैं ।
आज तो देख ली है एक झलक ही तुमने,
अभी तो देखना जीवन की मेरे झाँकी है ।।
न जाने क्यों
मुझे बाज़ार का यह दस्तूर
समझ नहीं आता
कोई दुकानदार कोई खरीदार
समझ नहीं आता
न जाने क्या खरीदना चाहते हैं लोग
न जाने क्या बेचना चाहते हैं लोग
एक बार बचपन में,घूमे गेलियै गांव।
चाची-चाचा पेड़ तले,जोड़ले हलथी अलांव।
सोचलियै तनी बैठ के हमहुं हथबा सेकियै।
अलाव में कैसन गर्मी है,इहो थोड़ा देखियै।
‘‘ उर्वशी कहते कहते रुक गई।
‘‘किंतु क्या सुंदरी?‘‘ पुरुरवा ने व्याकुल होकर पूछा ।
‘‘हमारा प्रेम प्रगाढ़ नहीं हो सकता है।‘‘ उर्वशी ने कहा।
‘‘क्यों? क्यों नहीं हो सकता? क्या तुम मुझे इस योग्य नहीं समझती हो?‘‘ पुरुरवा ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘नहीं यह बात नहीं है। बात यह है कि मेरी कुछ विवशताएं हैं।‘‘ उर्वशी कहते- कहते रुक गई।
‘‘कैसी विवशता, रूपसी? मुझे बताओ। संकोच मत करो।‘‘ पुरुरवा ने उर्वशी का उत्साहवर्द्धन करते हुए कहा।
बैरन इस राजा के लिए पिछले एक साल से काम करता आ रहा है। एक साल पहले वह क्या करता था उसे इसकी याद नहीं है और उसे उस भुला दी गयी जिंदगी से कोई लगाव भी नहीं है। वह अपने काम से खुश है और उसका काम राजा के विचारों को इस तरह से आम दुनिया तक लिखकर देना है कि राज्य की जानता राजा के प्रति वफादार रहे। बैरन अपने काम में अच्छा है और वह राजा का वफादार है और प्रस्तुत उपन्यासिका की कहानी हमें उसी के नजरिए से देखने को मिलती है।
आज का सफ़र यहीं तक ..
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!
शुभ प्रभात आदरणीय ,
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार(०८-०१ -२०२२ ) को
'मौसम सारे अच्छे थे'(चर्चा अंक-४३०३) पर शामिल करने के लिए
बहुत धन्यवाद और आभार ।
सभी संकलित रचनाएं बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनाएं ।
सादर ।
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंकई सूत्रों पर गई, कुछ पर जाना है,बहुत ही सार्थक और सराहनीय रचनाओं का पठनीय अंक । मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी । आपको, चर्चा मंच को तथा सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐🙏🙏
सुंदर संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंमनभावन रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता सजाया है आपने, बहुत बहुत आभार 'मन पाए विश्राम जहाँ' को भी स्थान देने हेतु अनीता जी!
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को साधुवाद अनीता सैनी जी 🙏
जवाब देंहटाएंसदा की भांति महत्वपूर्ण, रोचक एवं पठनीय लिंक्स आपने संजोए हैं 🌷🙏🌷
प्रिय अनीता सैनी जी, चर्चा मंच में मेरी कहानी की पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🌷🙏🌷- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को पटल पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार।सभी लिंक्स अच्छे ।बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा संकलन
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