सादर अभिवादन
आज रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीया अलखनंदा सिंह जी की रचना रचना से )
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"घर का जोगी जोगना, आनगांव का सिद्ध'
अर्थात् घर के योगी (ज्ञानी) के ज्ञान को जीरो और दूसरों के ज्ञान को सिर माथे लेना"
हमारी इसी मानसिकता ने तो अंग्रेजियत को हम पर हावी कर दिया
अपने गुण और संस्कृति को हम भुलाते चलें। गये।कोरोना महामारी में आर्युवेद के चमत्कार को नमस्कार करना पड़ा। फिर भी हम इसे अपनाने से कतराते ही है। हमें तो महंगी गोलियों की आदत जो पड़ गई है। अब भी वक्त है सचेत जाते तो कीड़ों मकोड़ों की तरह मरने से बचा जा सकता है।
इस उपयोगी लेख के लिए आप को हार्दिक शुभकामनाएं अलकनंदा जी
इसी उम्मीद से कि-
"हम सुधरेंगे युग सुधरेंगा"
चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...
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गीत "खुद को आभासी दुनिया में झोका"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कभी न देखा पीछे मुड़कर,
कभी न देखा लेखा-जोखा।
कॉपी-कलम छोड़ कर खुद को,
आभासी दुनिया में झोका।।
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वो अमृता... जिसे हम अंडरएस्टीमेट करते रहे
हां, आज जब सोचती हूं तो झे अपनी अज्ञानता पर क्षोभ होता है कि लगभग दो साल तक मैं इसके फायदों से अनजान कैसे रही, या यूं कहें कि इसे कभी गंभीरता से क्यों नहीं लिया। जो रोग दो साल पहले ठीक हो सकते थे और मेरा शारीरिक, मानसिक व आर्थिक नुकसान कम हो सकता था, उस पर मेरी लापरवाही ही हावी रही। ----------------------------------------नर्सिगवाड़ी, कोल्हापुर से होते हुए गगनबावड़ा का भ्रमण:
सुबह नर्सिघवाडी के मंदिर दर्शन के लिए तैयार होने में सभी लगे थे। साढ़े आठ बजे का समय निर्धारित था। मैंने शेव किया, स्नान किया और परिधान परिवर्तन कर चल दिये, कृष्णा किनारे। वहाँ पहुँचकर शांत दोनों किनारों में जल परिपूरित दक्षिण की ओर प्रवाहमान कृष्णा नदी के दर्शन हुए। भारतवर्ष में नदियों ने सभ्यता और सनातन धर्म के पोषण और परिवर्द्धन में जैसी भूमिका निभाई है, वैसी कहीं और दृष्टि गत नहीं होती है।
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सर्दी के मौसम में चुनावी सरगर्मियां
कौड़ियों के भाव भी, ग्राहक कोई मिलता नहीं !
चंद्रमणि छंद में कमल के पर्यायवाची
सरसिज
सरसिज सोहे सर सकल, सरसाए सुंदर सरस,
मोहक मन को मोहते, सूना पुष्कर है अरस।।
पंकज
पंकज पद पूजूँ सदा, पावन पुलकित प्राण है।
पीड़ा हरजन की हरे, जन-जन के संत्राण है।।
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तुम ये दिल जब किसी का दुखाया करो
----------------चलते -चलते, आज का अनमोल विचार प्रेम चाहिए तो समर्पण खर्च करना होगा
" प्रेम चाहिए तो समर्पण खर्च करना होगा,
विश्वास चाहिए तो निष्ठा खर्च करनी होगी,
साथ चाहिए तो समय खर्च करना होगा,
मुफ्त मे तो हवा भी नही मिलती यहां, एक सांस छोड़ो तो..
तभी एक सांस मिलती है "
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आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दें..!
आप का दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
उपयोगी लिंक मिले पढ़ने के लिए|
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी|
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आद. कामिनी सिन्हा जी
आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, सार्थक चर्चा के लिए बहुत - बहुत साधुवाद! ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी जी ऊपर से नीचे तक कुछ भी ऐसा नहीं जिसे उपेक्षित किया जाय।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा, उपयोगी भूमिका।
सभी रचनाएं बहुत ही आकर्षक सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत ही सार्थक,सराहनीय अंक कामिनी जी । बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा लिंक सीए हैं आपने कामिनी जी ।बहुत बहुत शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंआप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर अभिवादन 🙏
जवाब देंहटाएंदिलचस्प !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
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