सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.कुसुम कोठारी जी की रचना 'नवजात अर्चियाँ' से-
प्राची की प्राचीरें
केसर दूध नहाई
लील वर्तुल झाँकती
नव नवनीत मलाई।
श्यामला मन मोहिनी
पाट अपना छोड़ती
द्यु मणि ने नैन खोले
पीठ अपनी मोड़ती
उजली नवजात सुता
भोर निशा की जाई।।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गीत "माँग रहे हैं ये वोटों का दान"
इंसान का शरीर
एक मशीन की तरह है
हज़ार अंजर-पंजर है
कब क्या बिगड़ जाए
एक उम्र के बाद
कुछ कह नहीं सकते
प्राण छूट जाते हैं
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Tum mere khwabon mein aa jati ho.
“भगवान का नाम लेने के साथ-साथ इन सबके चर्चा-पुराण से अपने घर-परिवार को सुरक्षित रखने के लिए वसु ! कम से कम इन्सान सामने हो तो कोई मुँह पर बुराई तो नहीं करता।” साड़ी के पल्लू से माथे का पसीना पोंछते हुए वे थोड़ी सी व्यग्रता से बोली ।
“लेकिन आज की चर्चा तो हो गई चाची !” कहती हुई वसुंधरा उन्हें दोराहे पर खड़ा छोड़ ऑटो की ओर बढ़ गई ।
सभी लिंक्स शानदार। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!
बहुत सराहनीय चर्चा प्रस्तुति के लिए बधाई भी और शुभ कामनाएं भी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति, सभी रचनाएं बहुत आकर्षक और सुंदर।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
मेरे सृजन को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार
अनीता जी ।
सुंदर सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंशामिल करने का हृदय से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशामिल करने का हृदय से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा, मेरी रचना के शीर्षक को शीर्षक में सजाने के लिए हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत आकर्षक पठनीय।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।