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रविवार, जनवरी 16, 2022

" पुस्तकों का अवसाद "( चर्चा अंक4311)

 सादर अभिवादन

आज रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

( शीर्षक और भुमिका आदरणीया कुसुम जी की रचना से)


रद्दियों सम या बिकेंगी 

या बने कागज पुराने

मौन सिसकी कंठ डूबे

भूत हैं अब दिन सुहाने

ढेर का हिस्सा बनी वो 

देह अपनी नोचती सी।।


आदरणीया कुसुम जी की लिखी बहुत ही सुन्दर पंक्तियां

मैंने कहीं पढ़ा था कि - किसी ने कहा था " 

" जला दो दुनिया भर की किताबें कम से कम संसार में रोशनी तो हो, कुछ उर्जा तो बचेगी। वैसे भी किताबें ज्ञान कम अहंकार ज्यादा बढ़ा रही है।


सच,  किताबें तो ज्ञान का स्त्रोत है,

और ज्ञान प्रकाश फैलता है ना की अहंकार

मगर, आज या तो किताबें रद्दी की टोकरी में जाती है या लिखने वाले का अहंकार बढ़ाती है

 

आज खुद का मंथन करना भी जरूरी है कि

हम जो लिख रहें हैं वो ज्ञान बढ़ा रही है या हमारा अहंकार

इसी चिन्तन के साथ चलते हैं, आज की कुछ खास रचनाओं की ओर......



**********

गीत "धूप गुनगुनी पाने को, सबका मन है ललचाया"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


सन-सन शीतल चला पवन,
सरदी ने रंग जमाया।
ओढ़ चदरिया कुहरे की,

सूरज नभ में शरमाया।।

******

पुस्तकों का अवसाद

पुस्तकें अवसाद में अब

बात कल की सोचती सी

झाड़ मिट्टी धूल अंदर

हम रहें मन रोसती सी।।


******

"सांझ"

गोताखोर बनी शफरियां

खेल रहीं दरिया जल में

मन्थर लहरें डोल रही हैं ढलते सूरज के संग में

अब रात लगी होने


नेह के तिनके जोड़ गूंथ कर

नीड़ बसाया खग वृन्दों ने

एक - एक कर उड़े सभी वो विचरण करने नभ में

रिक्त लगे नीड़ होने


******




थेथर कि जहर ?

मेरे सामने लघुकथा, जो ठीक नहीं लग रही थी । मैं लेखक और लेखन के बारे में नहीं जानना चाहता क्योंकि यही बातें हमसे हमारी ईमानदारी डिलीट करवाती हैं । वे कहाँ से सीखे है यह मायने नहीं रखता । मायने रखता है कि वे प्रस्तुत क्या कर रहे हैं । अगर वे काबिल हैं तो फिर गुरु का नाम लेकर लघुकथा का बचाव क्यों कर रहे थे ?"





*******घड़ी की टिक टिक सुनाता हूँ

******
#निहारता हुं #आसमान को !

निहारता हुं आसमान को ,

सूर्य तारे और चांद को , 

दिन रात और शाम को ,

कभी छोड़ अपने काम को ।

******

आज का परिवेश

वर्तमान परिवेश में 

बहुत कुछ बदल रहा है

ना हम परम्परा वादी रहे

ना ही आधुनिक बन पाए |

हार गए यह सोच कर

 हम क्या से  क्या हो गए

किसी ने प्यार से पुकारा नहीं

*****




एक ग़ज़ल-धूप निकल जाए तो अच्छा

संक्रान्ति है मौसम ये बदल जाए तो अच्छा

भींगी हैं छतें धूप निकल जाए तो अच्छा


लो अपनी ही शाखों से बग़ावत में परिंदे

अब इनका ठिकाना ही बदल जाए तो अच्छा


********

मकर संक्रांति – चंद हाइकु

अद्भुत पर्व

मकर संक्रांति का

शुभकामना

 

फैला उत्साह

उषा किरण संग

सूर्योपासना

*****


नया आयाम
अधरों पर अल्फाज़ मेरे थे पर ज़ज्बात तेरे थे l
अश्कों के दरिया में पर नयन दोनों के साथ थे ll

विरल थी तेरी वो अर्ध चाँद सी मासूम हँसी l
प्रेम ग्रहण लगा गयी जो इस नादाँ दिल को ll

********



13 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक आभार आपका।कामिनी जी सादर अभिवादन।सभी लिंक्स अच्छे,पठनीय और प्रसंशनीय।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय मेम ,
    मेरी प्रविष्टि् की चर्चा इस अंक में सम्मिलित करने लिए सादर धन्यवाद ।
    आपके अथक प्रयासों से सभी संकलित रचनाएं बहुत उम्दा है सभी आदरणीय को बधाइयां ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित प्रस्तुति।मेरी रचना का चर्चा में चयन करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात
    आज का सजा चर्चामंच बहुत सुन्दर |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद कामिनी जी |

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी काव्य पंक्तियों को शीर्षक पर रखने के लिए हृदय से आभार कामिनी जी, उस पर आपने जो व्याख्यात्मक विवेचना दी है बिल्कुल सटीक है। कभी कभी लगता है, सत्य जो आपने कहा है वहीं है और कभी कभी लगता है इसे अहंकार न कहकर आत्मतुष्टि कह सकते हैं।
    चर्चा बहुत शानदार रही ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सभी रचनाएं श्रेष्ठ सुंदर।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीया कामिनी सिन्हा जी, आपने चर्चा के आरंभ में जो लिखा है, "आज खुद का मंथन करना भी जरूरी है कि हम जो लिख रहें हैं वो ज्ञान बढ़ा रही है या हमारा अहंकार।" यह आज के रचनाकारों को स्वयं को परखने के लिए एक आईना दिखाता है। पुस्तकों के सृजन का अगर कोई उद्देश्य नहीं हो, तो वैसी रचनाएँ,रद्दी के ढेर का दायरा ही बढ़ाएंगी।
    आज के चर्चा मंच की सारी रचनाएँ बहुत अच्छी थी। आपके इस सार्थक पहल में भाग लेने वाले रचनाकारों को हार्दिक वंदन और अभिनंदन!
    आपने सही कहा है कि आज हमें अपने सेनानियों को भी याद करना चाहिए जिसके कारण ही हमारा सभी पर्व आनंदमय हो उठता है। सेना दिवस पर उनका अभिनंदन!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह ! सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को आज पटल पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही चिंतनपूर्ण और सारगर्भित प्रश्न से आज की भूमिका का आगाज किया आपने । सराहनीय और पठनीय सूत्रों का चयन किया है आपने,बहुत शुभाकामनाएं कामिनी जी । नमन और वंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  12. मेरी इस चिन्तन पर भावपूर्ण विचार देकर इस चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद एवं अभिनन्दन।
    चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु भी सहृदय धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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