सादर अभिवादन
रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना से)
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इस धरा पर तो मधुमास फिर छा गया,
किंतु पतझड़ मेरे मन की वासी हुई ।
शब्द परदेस में जाके सब बस गए,
भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।
शायद, हवाएं ही कुछ ऐसी चली है कि-" हर मन का मौसम पतझड़ सा ही हुआ है और भावनाएं अन्तर्मन को छोड़ कहीं और जा बसी...
दिल खाली खाली सा हुआ है...
भावनाओं की अदभुत अभिव्यक्ति बिखेरती आदरणीया मीना शर्मा जी की रचना...
इसके साथ ही कुछ और बेहतरीन रचनाओं का आनंद उठाते है...
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मौसम के बदलते अंदाज को महसूस किजिए आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से
गीत "तुहिन-हिम नभ से अचानक धरा पर झड़ने लगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
चल रहीं शीतल हवाएँ, धुँधलका बढ़ने लगा।
कुहासे का आवरण, आकाश पर चढ़ने लगा।।
हाथ ठिठुरे-पाँव ठिठुरे, काँपता आँगन-सदन,
कोट,चस्टर और कम्बल से,
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दिल को छूती लाजवाब सृजन
सुख की मैंने कभी, खोज ना की कहीं,
वेदना से मेरा प्रेम शाश्वत रहा।
जिसको पाना असंभव, वही चाह थी,
मेरी चाहत का हर अंक अद्भुत रहा।
खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,
कैद परदों के भीतर उदासी हुई ।।
शब्द परदेस में जाके सब बस गए
भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।
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जीवन साथी को समर्पित सुन्दर गीत
हिया पाट थे खोलो ढोला
झाँके भोर झरोखा से।
खेचर करलव सो धड़के है
गीत अजन्मो गोखा से ।।
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चटनी बना डाली
तय किया गया
दूसरों का हद
वो चार लोग
जो विराजमान थे
समाज के भयावह पद।
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आंसुओं के घर शमा रात भर नहीं जलती ,
आंधियां हों तो कली डाल पर नहीं खिलती |
धन से हर चीज पाने की सोचने वालो ,
मन की शांति किसी दुकान पर नहीं मिलती।
अच्छे लिंक्स।सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
सादर
इन्टरनेट में आए व्यवधान के कारण आज की प्रस्तुति थोड़ी बेतरतीब और कुछ अधुरी ही बनी है इसके लिए आप सभी से हृदय से क्षमा चाहती हूं, आप सभी को सादर अभिवादन 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा बनाई है आपने कामिनी सिन्हा जी।
जवाब देंहटाएंइंटरनेट पर किसी का वश नहीं है।
आपके प्रयास की सराहना करता हूँ।
बहुत सुन्दर सराहनीय संकलन । बहुत बहुत शुभ कामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा अंक में बहुत अच्छी रचनाएँ आयीं हैं। आपका चयन उत्तम कोटि का है। इस सराहनीय पहल के लिए साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंसुख की मैंने कभी, खोज ना की कहीं,
जवाब देंहटाएंवेदना से मेरा प्रेम शाश्वत रहा।
जिसको पाना असंभव, वही चाह थी,
मेरी चाहत का हर अंक अद्भुत रहा।
खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,
कैद परदों के भीतर उदासी हुई ।।
शब्द परदेस में जाके सब बस गए
भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।
बहुत ही उम्दा रचना!
बेहतरीन प्रस्तुति!!
सादर..
आभार🙏
हार्दिक धन्यवाद कामिनी जी मेरी पोस्ट को इस सर्वश्रेष्ठ मंच पर लाने के लिए...आपके इन प्रयासों के लिए हम आभारी हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक कामिनी जी, आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन और वंदन ।
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी बहन, इंटरनेट की गड़बड़ी के बावजूद आपने बहुत सुंदर प्रस्तुति बनाई है। इतने सुंदर अंक में अपनी रचना की पंक्ति को शीर्षपंक्ति के रूप में देखना भावविभोर कर गया। मेरी रचना को अंक में शामिल करने हेतु सस्नेह बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
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