सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
कल देशभर में 73 वे गणतंत्र दिवस समारोहों की धूम रही। देश की राजधानी में राजपथ पर शानदार परेड ,झाँकियाँ और अनेक मनमोहक राष्ट्रीयता की भावना पैदा करने वाले कार्यक्रम आयोजित हुए। देश की क्षमताओं,साहस और शौर्य का प्रदर्शन गणतंत्र दिवस के अवसर पर नागरिकों को गर्व से भरता है और देशप्रेम की भावना प्रबल होती है। देश की तीनों सेनाओं के जवानों की परेड का भव्य प्रदर्शन हमारा मन मोह लेता है।
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गीत "गणतन्त्र दिवस पर राग यही दुहराया है"
सिसक रहा जनतन्त्र हमारा, चलन घूस का जिन्दा है,
देख दशा आजादी की, बलिदानी भी शर्मिन्दा हैं,
रामराज के सपने देखे, रक्षराज ही पाया है।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है।१।
कितने ही गीत लिखे जा चुके
कितने ही लिखने बाकी हैं
दुश्मन की छाती पे चढ़ने को
सिर्फ जयकारे ही काफी हैं।
संविधान के द्वारा जिसका सृजन किया है हमने
प्रजातंत्र की साख बचाता है गणतंत्र हमारा।
धर्म, जाति से ऊपर उठ कर चिंतन करने वाला
इक सुंदर संसार बनाता है गणतंत्र हमारा।
मैं चंदन हूँ
मुझे घिसोगे तो महकूँगा
घिसते ही रह गए अगर तो
अंगारे बनकर दहकूँगा।
मैं विष को शीतल करता हूँ
मलयानिल होकर बहता हूँ
कविता के भीतर सुगंध हूँ
आदिम शाश्वत नवल छंद हूँ
भारत का
गौरव,भारत की
संस्कृति का अभिमान चाहिए ।
वन्देमातरम
गूँजे जिसमें
वह भारत बलवान चाहिए ।
1949 में जन्मे बच्चों की
गीली स्मृतियों में उकेरे गये
कच्ची मिट्टी, चाभी वाले,
डोरी वाले कुछ मनोरंजक खिलौने,
फूल,पेड,तितलियाँ,
चिडियों,घोंसले,परियाँ,
गीली स्मृतियों में उकेरे गये
कच्ची मिट्टी, चाभी वाले,
डोरी वाले कुछ मनोरंजक खिलौने,
फूल,पेड,तितलियाँ,
चिडियों,घोंसले,परियाँ,
पत्ता पत्ता तिनका तिनका
तेरा आज ऋणी है ।
तेरे त्याग तपस्या से
सिंचित अपनी धरणी है ।।
वीर पुरुष ओ वीर सिपाही
वतन है तेरे हवाले
आज़ादी के मतवाले
स्वर्ण मुकुट हिमगिरि सजे,सागर पैर पखार।
मानचित्र अभिमान को,व्याघ्र सरिस व्यवहार।
संविधान इस देश का ,देता सम अधिकार ।
देश एक, ध्वज एक हो,मौलिकता हो सार ।।
संस्कृति उत्तम देश की,इस पर हैअभिमान।।
जयभारत जयहिंद का,सब मिल करिये गान।
और लोग है जो जन्नत के छलावे में जिंदा है,
मेरी ख़ुदी को आज भी ये मंज़ूर नही,
बेकशी के घर मे मुफ़लिसी का साया है,
परेशा जरूर हूँ मगर मजबूर नही,
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बहुत छोटी-छोटी बातों पर
खुश होना चाहता हूँ
इसलिए एकांत में और किसी दिन
बारिश में चौराहे पर भीगते हुए
मैं रोना चाहता हूँ ...
रिक्शेवालों को
आलीशान बाज़ारों से
दूर
कर दिया गया है
झीने वस्त्र को
लौह-तार से सिया गया है
बहाना
बड़ा ख़ूबसूरत है
वे
पैदल चलनेवालों का भी
स्थान
घेर लेते हैं
कल फिर मिलेंगे
@अनीता सैनी 'दीप्ति '
बहुत सुंदर चर्चा का अंक प्रस्तुत किया है आपने अनीता सैनी 'दीप्ति'जी!
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|
हम आपके कृतज्ञ मन से आभारी हैं आपने चर्चा में वागर्थ का जिक्र किया है सादर आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। गणतंत्र दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात 💐
जवाब देंहटाएंसतश्रीअकाल💐
प्रणाम 🙏
नमस्कार🙏
हमेशा की तरह बेहतरीन सृजन....
आभार🙏
गणतंत्र दिवस की सुंदर रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक ।मेरी रचना का मान रखने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन अनीता जी । सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 👏🌹🌹👏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस के ओज और गर्व से सजी बेहतरीन रचनाओं का शानदार संकलन है यह अंक।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभार अनु।
सस्नेह शुक्रिया।
बहुत सुंदर ।हार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
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