सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है
शीर्षक व काव्यांश आ.अमृता तन्मय जी की रचना 'कैसे भेंट करूँ? ' से-
तुम ही कहो !
तुम्हें देने के लिए
बिन कुछ भेंट लिए
कैसे मैं चली आती ?
लाज के मारे ही
कहीं ये धड़कन
धक् से रूक न जाती !
यूँ निष्प्राण हो कर भला
जो सर्वस्व देना है तुम्हें
कहो कैसे दे पाती ?
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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नवगीत "खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन"
ज़रूरी है कि मेरी कविताओं में
खोजी जाय वह गृहिणी,
जो दिन-रात तिरस्कृत होकर भी
लगी रहती है काम में,
चुनाव से पहले अपने क्षेत्र की जनता से नेताजी के दो मासूम से सवाल
उम्रे दराज़ मांग के लाए थे चार दिन
दो तो ठगी में कट गए बाक़ी में क्या करें?
दुःख में सिकुड़ गया अंतर्मन
शोक लहर जिससे बहती है,
पाला पड़ा हुआ धरती पर
सूर्य किरण झट हर लेती है !
मेरी सहायिका सुबह आठ बजे आती है तो मैं गेट का ताला उससे पहले खोल देती हूँ। आज किसी ने गेट खटखटाया तो मैंने कहा - "खुला है।"
फिर खटखटाया तो मैं गेट की तरफ गई, एक इंसान खड़ा था , कुछ पहचानी शक्ल लगी , इससे पहले कि पहचान पाती वह बोला - "आँटी पहले मैं यहीं आपके पड़ोस में रहता था, मेरे पिताजी नहीं रहे, कुछ पैसों से मदद कर दीजिए।"
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श्रम से की गई सुन्दर चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!
बहुत ही सुंदर आज की चर्चा प्रस्तुति आदरणीया अनीता जी
जवाब देंहटाएंसुप्रभात, सभी रचनाकारों और पाठकों को शुभकामनाएँ! पठनीय रचनाओं की खबर देता है आज का चर्चा मंच!
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक.स्थान देने हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति।आज के संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार श्रमसाध्य चर्चा, सुंदर शीर्षक।
जवाब देंहटाएंविविध सूत्रों को संयोजित कर पढ़वाने के लिए हृदय से आभार अनिता जी।
सभी रचनाकारों को बधाई।
सादर सस्नेह।
बहुत ही सुन्दर एवं पठनीय सूत्रों का संकलन । कहना तो पड़ेगा ही कि अति सुन्दर भेंट पाठकों के लिए । हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी श्रमसाध्य एवं लाजवाब चर्चा प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत बढ़ियां सराहनीय चर्चा प्रस्तुति
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