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शनिवार, जनवरी 22, 2022

'वक्त बदलते हैं , हालात बदलते हैं !'(चर्चा अंक-4318)

सादर अभिवादन ! 
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है ।


शीर्षक व काव्यांश आ. दीपक कुमार भानरे की रचना 'वक्त बदलते हैं , हालात बदलते हैं !'  से-

वक़्त बदलते हैं , 

हालात बदलते हैं ,

कभी वक्त लगता है ,

कभी अकस्मात बदलते हैं ।

गर जारी रही कोशिशें ,

तो तय है कि ,

पर्वत भी पिघलते हैं ,

और दरिया भी थमते हैं ।


आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

गीत "कैसे गुमसुम हो जाऊँ मैं" 

कोयल ने जब कुहुक भरी तो,
मन ही मन मुस्काता हूँ,
जब काँटे चुभते पाँवों में,
थोड़ा सा सुस्ताता हूँ,
सुख-दुख के ताने-बाने का,
अनुभव मुझे सताता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
वक्त बदलते हैं ,
हालात बदलते हैं ,
कभी परिश्रम लगता है ,
कभी भाग्य बदलते हैं ।
गर हौसला बना रहे ,
तो तय है कि ,
अवसर भी मिलते हैं ,
और कामयाबी भी बुनते हैं ।

करोड़ों चेहरे 

और उनके पीछे 

करोड़ों चेहरे

ये रास्ते हैं कि भिड़ के छत्ते 

ज़मीन जिस्मों से ढक गई है 

क़दम तो क्या तिल भी धरने की अब जगह नहीं है

ये देखता हूँ तो सोचता हूँ

--
हातों में औरतें
गूंगी  रखी जाती हैं 
होती नहीं 
सवाल पूछने की 
हिम्मत नहीं करती है 
और पूछने पर 
रक्त  बहती नदी 
पीठ में उगाकर 
कोने में पड़ी रहती हैं 
प्रेम अर्थ समझे नहीं ,कहते राधेश्याम,
होती राधा आज है,गली गली बदनाम।
रहती मन में वासना,करते अत्याचार ,
कदम कदम पर पाप है,फैला भ्रष्टाचार ।।
आहत है मन ...
तेरी सितमगरी का कभी बुरा नही माना,
हम पर किए गए तेरे सितम नशे में थे
मुफ्त पीने वाले इफरात पीकर गिर पडे़,
जेब से पीने वाले मिले कम नशे में थे,
--
ठीक ऐसे ही
बनता है एक विक्षोभ
हृदय के भीतर
सांसों की गति से
करवट लेते मौसमों के बीच
कभी-कभी मन करता है कि रहने दो यार, इतना क्या ही परेशान होना। दाल रोटी तो चल ही रही है ना। पहनने को कपड़े और रहने को छत तो है ही ना। फिर सोचता हूँ कि क्या यही जीवन का मकसद है? आये, गुजारा किये और चले गए? जब एक दिन जाना ही है तो क्यों ना कुछ ऐसा करके जाएँ जो अपने परिवार, समाज और देश के कुछ काम आ सके।
-- 
”मुझे लगता है फ़ाइल में बंद प्रत्यक कारतूस का हिसाब है जिंदगी...।”
अदिति की ज़बान लड़खड़ा जाती है।अनजाने में शब्दों की चोट से एक नासूर रिसने लगता है। वादियों में प्रेम ढूँढ़ने निकला मन झोंके के थपेड़े से सहम जाता है।
--

आज का सफ़र यहीं तक .. 

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

10 टिप्‍पणियां:

  1. करीने से सजाई गई बढ़िया चर्चा प्रस्तुति!
    आपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय अनीता मेम ,
    मेरी प्रविष्टि् की चर्चा
    'वक्त बदलते हैं , हालात बदलते हैं !'(चर्चा अंक-४३१३) पर सम्मिलित करने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार ।
    सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है ,आपको और सभी आदरणीय को शुभकामनाएं एवं बधाइयां ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत अंकों से सजी बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर सराहनीय तथा पठनीय अंक ।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह अनीता जी, सभी लिंक एक से बढ़कर एक ..वाह। कभी सोचती हूं कि आपकी टीम के प्रयास न होते तो हम इतनी खूबसूरत रचनाओं से महरूम ही रही जाते। बहुत बहुत बहुत धन्‍यवाद इतनी मेहनत से हम तक इन्‍हें पहुंचाने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. मुझे आपकी वेबसाइट पर लिखा आर्टिकल बहुत पसंद आया इसी तरह से जानकारी share करते रहियेगा

    जवाब देंहटाएं

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