मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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दोहे, जन्म दिवस पर विशेष "सन्त विवेकानन्द" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ऋषियों का आवागमन, जहाँ न होता बन्द।
मेरे भारत देश में, हुए विवेकानन्द।।
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रामकृष्ण गुरुदेव के, शिष्य विवेकानन्द।
हुए अवतरित भूमि पर, बनकर करुणाकन्द।।
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मायड़ भाषा
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ज्योति एक ही हर अंतर में प्रमाद, अकर्मण्यता और सुविधाजीवी होना हमारे लिए त्यागने योग्य है। प्रमाद का अर्थ है जानते हुए भी देह, मन व आत्मा के लिए हितकारी साधनों को न अपनाना तथा अहितकारी कार्यों को स्वभाव के वशीभूत होकर किए जाना। अकर्मण्यता अर्थात अपने पास शक्ति व सामर्थ्य होते हुए भी कर्म के प्रति रुचि न होना तथा दूसरों पर निर्भर रहना। सुविधजीवी होने के कारण हम देह को अधिक से अधिक विश्राम देना चाहते हैं, पर इसका परिणाम दुखद होता है जब एक दिन देह रोगी हो जाती है। स्वयं के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान न होने के कारण आत्मा का पोषण करने की बजाय हम उसके विपरीत चलना आरम्भ कर देते हैं। आत्मा सभी के भीतर समान रूप से व्याप्त है, उसमें अपार शक्तियाँ छिपी हैं। हर किसी को उसके किसी न किसी पक्ष को उजागर करना है। साधक को हर क्षण सजग रहकर ऐसा प्रयत्न करना होगा कि ईश्वर का प्रतिनिधित्व उसके माध्यम से हो सके। वह ईश्वर के प्रकाश को अपने माध्यम से फैलने देने में बाधक ना बने।
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हूँ कितनी सक्षम
हूँ कितनी सक्षम
अपने आप में
जब बर्तोगे मुझे
तभी जान पाओगे |
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'क्राइम नेवर पेज़' का रोमांचक उदाहरण है 'गुनाह का कर्ज'
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"पत्थरदिल मर्द बेदर्द कहलाता" हूँ मैं...
दिल में सौ दर्द छिपे, करूँ किससे शिकवे गिले।
मर्द हूँ रो ना सकूँ , जख्म चाहे हों मिले।
घर से बेघर हूँ सदा फिर भी घर का ठहरा,
नियति अपनी है यही, विदा ना अश्रु ढ़ले।।
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सिर्फ ऐतिहासिक उपन्यासकार ही नहीं थे वृन्दावन लाल वर्मा जी
आज प्रसिद्द उपन्यासकार वृन्दावन लाल वर्मा जी का जन्मदिन है. उनका जन्म आज ही के दिन १८८९ उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के मऊरानीपुर को हुआ था. वृन्दावन जी को मुख्य रूप से ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में जाना जाता है. बहुत से कम लोगों को ये जानकारी है कि उन्होंने सामाजिक उपन्यास भी कम नहीं लिखे हैं. ऐसा होना निश्चित रूप से उनकी लेखकीय प्रतिभा का पूरा सम्मान नहीं है. उनको ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में स्वीकारने का मुख्य कारण उनके दो प्रमुख उपन्यास ‘गढ़ कुंडार’ और ‘मृगनयनी’ भी हैं. आम लोगों ने उनको इसी कारण से विशुद्ध ऐतिहासिक लेखक या कहें कि उपन्यासकार के रूप में जाना है.
इस पोस्ट का उद्देश्य वृन्दावन लाल वर्मा जी के बारे में यही जानकारी देनी है कि वे मात्र ऐतिहासिक लेखक नहीं हैं, न ही वे विशुद्ध उपन्यासकार हैं बल्कि उन्होंने उपन्यास के अलावा अन्य कृतियों की भी रचना की है,
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कविता : "आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा"
कुछ बातें आओ मै तुमको सुनाता हूँ |
इस सुनसान में नहीं आओ ,
तुम्हे सपनो के दुनिया में ले जाता हूँ |
चाँद -तारे के गलियारों में तुम्हे घुमाउँगा ,
अगर वक्त बचे तो सूरज के घर भी ले जाउँगा |
तितलियोँ से मिलाकर उनसे बाते करवाउँगा ,
रैंबो को बहका कर उसके रंग चुरा लाऊंगा |
फूल के पंखुड़ियों से नाव बना कर ,
तुम्हे उस छोर ले जाऊंगा |
ये बात मैं सबको बताऊंगा ,
आओ तुम्हे सपनो के गलियों की सैर कराऊँगा |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th
अपना घर
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न तुम्हारे हो सके हम, न किसी और ने थामा हमको,
ताउम्र मुन्तशिर रहे हम, ऐसा सिलसिला दे दिया तुमने!
कभी कहा करते थे तुम, हमें इश्क करना नहीं आता,
तुम्हें तो इल्म ही नहीं, कितने आशिक पढ़ा दिये हमने!
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कहानी- बकरियाँ जात नहीं पूछतीं
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यश मालवीय का गीत- राधा से ही नहीं जुड़े है मीरा से भी धागे
चलो बाँट ले आपस में मिल
सुख-दुःख आधा-आधा
गोकुल से बरसाने तक है
केवल राधा-राधा
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मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना हिन्दी अपनाओ ! बंद सारे झगड़े हों हिन्दी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,
चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।।
रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,
हिन्दी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।
विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,
भारत माता के माथे, यूं सजती हिन्दी।।
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Watch: प्रिंसेज डायना का 'मिस्टर वंडरफुल' बनेगा ये PAK एक्टर
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स्वामी विवेकानंद जी को कोटि कोटि नमन।सभी लिंक्स अच्छे।सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानन्द जी को सादर नमन। रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को इसमें शामिल करने हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन ! विविधरंगी विषयों पर आधारित सुंदर रचनाओं से सुसज्जित चर्चा मंच, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानंद जी को शत शत नमन
जवाब देंहटाएंबढ़िया संकलन
मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद आदरणीय
उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति... मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ. शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
स्वामी विवेकानन्द को सादर स्मरण व वन्दन करते हुए कहना चाहूँगा कि यह अंक बहुत सुन्दर बन पड़ा है। तदर्थ साहित्य-रसिक आ. मयङ्क जी को स्नेहिल बधाई एवं मेरी रचना को इस सुन्दर अंक में स्थान देने के लिए आभार। सभी सुन्दर रचनाओं के लिए रचनाकार विद्वतजनों को भी हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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