सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
यह सप्ताह हमारे गणतंत्र पर चर्चा का सप्ताह है। ख़बर गर्म है कि भारत में औपनिवेशिक काल (15 अगस्त 1947 से पूर्व ब्रिटिश शासन काल ) में बने स्मारकों, भवनों एवं प्रतीकों को ग़ुलामी की निशानी कहकर उनमें रद्द-ओ-बदल को आवश्यक माना जा रहा है। इतिहास गवाह है और रहेगा कि भारत ब्रिटिश सत्ता का ग़ुलाम था जो लंबे संघर्ष और बलिदानों के बाद 15 अगस्त 1947 को दासता से आज़ाद हुआ। भारत में ब्रिटिश सत्ता के दौरान जो निर्माण हुआ भवन,स्मारक,रेल पटरियाँ, रेलवे स्टेशन, रेल गाड़ियाँ, पुल, हवाई-अड्डे आदि वे सब आज़ादी के बाद हमारे अपने हैं क्योंकि इनमें फिरंगियों का केवल विचार समाहित है। अँग्रेज़ों ने अपने बाप-दादों की कमाई विलायत से लाकर भारत में नहीं लगाई थी बल्कि इनमें भारत की मिट्टी और ख़ून-पसीना लगा है अतः यह समस्त चल-अचल संपदा और प्रतीक पूर्णतया भारतीय हैं। इस निरर्थक बहस को आगे बढ़ानेवाले स्वयं का भला चाहते हैं ताकि जनता को मूल मुद्दों से सर्वथा दूर रखा जा सके। सबसे ज़रूरी बिंदु यह है कि हम यह जानें और समझें कि कुछ सैकड़ा अँग्रेज़ हमें इतने लंबे समय तक ग़ुलाम बनाए रखने में क़ामयाब क्यों हुए? भावी पीढ़ी को यह बताना ज़रूरी है कि देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्य कैसे रखा जाय। देश के लिए बलिदान होने का जज़्बा सदैव तर-ओ-ताज़ा रहे।
-रवीन्द्र सिंह यादव
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "देश को सुभाष चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपनी आंखें¸
अपना नन्हा–सा जीवन
उन सबके लिए
जो बचाना चाहते हैं पृथ्वी¸
जो ललचाते नहीं हैं पड़ोसी से
जो घायल की मदद के लिए
रुकते हैं रास्ते पर।*****737. समय (10 क्षणिका)
आया अगर राह में दोराहा ,
पूछा किसी अजनबी से ,
और ,
बता दिया उसने अपने हिसाब से ,
रास्ता कोई एक।
और तुम…
न सपनों को समझा ,
न मंजिल को जाना ,
बस चल दिए।
कहाँ पहुँचे हो आज तुम?
*****
एक ग़ज़ल-तुम्हारा चाँद तुम्हारा ही आसमान रहा
सुनामी,आँधियाँ, बारिश,हवाएँ हार गईं
बुझे चराग़ सभी तीलियों से जलते रहे
जहाँ थे शेर के पंजे वही थी राह असल
नए शिकारी मगर रास्ते बदलते रहे
विषमता के चक्रव्यूह की चुनौतीरिपोर्ट कहती है कि टॉप के 10 अरबपतियों पर ही कमाए गए मुनाफ़े पर 99 फ़ीसदी टैक्स लगा दिया जाता, तो इससे 812 अरब अमेरिकी डॉलर मिलते। इतने से 80 देशों में वैक्सीन देने और सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक हिंसा को रोकने और पर्यावरण सुरक्षा पर लगने वाला खर्च पूरा हो कर सकता था। क्या अमीरों पर भारी टैक्स लगाना समाधान है? अमीरी का फैसला आप शेयर बाजार की कीमत से कर रहे हैं। गरीबों की जीविका चलाए रखने के लिए आर्थिक गतिविधियों की जरूरत है। उसके लिए निजी पूँजी चाहिए। *****आज बस यहीं तक फिर मिलेंगे आगामी सोमवार। रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल विषय पर आधारित
चर्चा प्रस्तुत की है|
एतदार्थ आपका आभार|
सभी पाठकों को चर्चामंच परिवार की ओर से
सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती की
बहुत-बहुत शुभकामनाएं!
बहुत बहुत आभार भाई रवींद्र जी।आपको बेहतरीन लिंक्स साझा करने हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन अंकों को से सजीखूबसूरत चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसबसे ज़रूरी बिंदु यह है कि हम यह जानें और समझें कि कुछ सैकड़ा अँग्रेज़ हमें इतने लंबे समय तक ग़ुलाम बनाए रखने में क़ामयाब क्यों हुए? भावी पीढ़ी को यह बताना ज़रूरी है कि देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्य कैसे रखा जाय। देश के लिए बलिदान होने का जज़्बा सदैव तर-ओ-ताज़ा रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक चिंतन के साथ बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंसदा की तरह उम्दा चर्चा ! आभार रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी वेबसाइट पर लिखा आर्टिकल बहुत पसंद आया इसी तरह से जानकारी share करते रहियेगा
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
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