सादर अभिवादन !
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है ।
शीर्षक व काव्यांश आ. अनीता जी की रचना 'एक सूर्य उग आए ऐसा' से-
अंत:लोक में जाग उठें हम
एक सूर्य उग आए ऐसा,
युगों युगों की नींदें टूटें
स्वप्न कभी मत घेरे मन को !
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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ग़ज़ल "ख़ानदानों ने दाँव खेलें हैं"
ज़िन्दग़ी में बड़े झमेले हैं
घर हमारे बने तबेले हैं
तन्त्र से लोक का नहीं नाता
हर जगह दासता के मेले हैं
दीप जले अंतर में ऐस
ज्योति कभी ना ढके तमस से,
जगमग कर दे राहें सारी
कोई विकार छिपे न मन से !
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जाति की बंधन तोड़ो
धर्म का भेद छोड़ो
अपने मुद्दों को पहचानो
मत छोड़ो मजधार में नाव
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
गणतन्त्र का मर्म चुनाव
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विश्वास करो सब संभव है
वो ही पड़ाव पर पहुँचेगा,
अपने तलवों को घिस घिस के ।
दुविधा के छाले फूटेंगे,
हर घाव बहेगा रिस रिस के ।
गूलर की छालें छील पका
जो सरस बनाता अवयव है ।।
साँझ ढले फिर खाली हाँडी
चूल्हे पर चढ़ी चिढ़ाती।
खाली बर्तन करछी घूमे
बच्चों का मन बहलाती।
नन्ही आँखें प्रश्न पूछती
आशा फिर झूठी होती।
भूख पेट की....
पिछले कुछ समय से मैं ‘सरल’ होने की बात कर रहा हूँ। यह जानते हुए भी कि सरल-सहज होने से जिंदगी बहुत आसान हो जाती है, फिर भी हम क्यों सरल नहीं हो पाते? हम जानते हैं कि क्रोध करना ठीक नहीं फिर भी क्रोध आ ही जाता है। किसी ने कहा कि जब क्रोध आता यह बात भूल जाते हैं। एक संत ने कहा – नहीं उलटा कह रहे हो, भूल जाते हैं तब क्रोध आता है। वृद्ध होने पर गिर जाने से हड्डी नहीं टूटती बल्कि वृद्धावस्था में शरीर-हड्डी के कमजोर होने से गिर जाते हैं अतः हड्डी टूट जाती है।
अब सवाल उठता है कि हम इस दूसरे गाँव के निवासियों जैसा क़दम क्यों नहीं उठाते और अलग-अलग वक़्त पर बाग़ देने वाले सियासती मुर्गों को अपनी ज़िन्दगी से निकाल क्यों नहीं फेंकते?यकीन कीजिए, एक बार अलग-अलग वक़्त पर बांग देने वाले इन सियासती मुर्गों को हमने अगर अपनी ज़िन्दगी से निकाल फेंका तो फिर हमारभाग्य का सूरज अपने समय पर ज़रूर-ज़रूर उगता रहेगा.
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आवरण पृष्ठ बहुत ही मनमोहक है व नामकरण आकल्पन के लिए आपको बधाई हो।जब भी हम कोई रचना करते हैं तो सर्वप्रथम हमारे भीतर आत्मा का विवेक हो, फिर उपासना और कर्म की साधना हो तभी हम उसके साथ सही न्याय करते हैं।
वाणी वंदना से प्रारंभ होकर माँ से सबका कल्याण के लिए अनुनय विनय और अंत में अंतर्घट भरदो बड़भागी
केतना सुहागिन के माथ का सेनुर मिट गया! केहु के मां-बाप छीनकर अनाथ बना दिया! त केहु से पत्नी आ बेटा छीन लिया! केतना लोग ठीक होखला के बादो रोजे मर-मरके जी रहा है। स्टूडेंट सबके पढ़ाई नास हो गया।एतना महंगाई के जमाना में जेकर रोजी-रोजगार चउपट हो गया! ओकर जियल भी आसान है का! हमारा तो सब ठीके जा रहा था। मने तुम्हीं न बीचे रास्ता में छोड़के चली गई!
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कीर्तिशेष मधुदीप जी पर आधारित कुछ चुनिन्दा पोस्ट्स (लघुकथा दुनिया ब्लॉग में)
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो मील के पत्थर स्थापित करते हैं और जब दूसरे व्यक्ति उसी राह पर निकलते हैं तो मील के पत्थरों को देखते ही उन्हें स्थापित करने वालों से स्वतः ही उनका परिचय हो जाता है। लघुकथा लेखन में मील के पत्थर स्थापित करने वाले मधुदीप गुप्ता जी जैसे व्यक्ति किसी परिचय के मोहताज नहीं,
आज का सफ़र यहीं तक ..
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
वैविध्यपूर्ण रचनाओं का सुंदर सराहनीय अंक, कई रचनाएँ पढ़ीं ।
जवाब देंहटाएंमधुदीप जी की लघुकथा लेखन पढ़कर बहुत उम्दा जानकारी मिली ।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।
आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।।
पठनीय और सराहनीय रचनाओं से सुसज्जित है चर्चा मंच का यह अंक, सभी रचनाकारों को बधाई, बहुत बहुत आभार अनीता जी इस अंक में 'मन पाए विश्राम जहाँ'को स्थान देने हेतु।
जवाब देंहटाएंमेरा सुझाव है कि कुछ दिनों के लिए चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंचर्चा का सिलसिला स्थगित किया जाये।
क्योकि इतने श्रम से हमारे चर्चाकार खोज-खोज कर लिंक लाते हैं।
जिसके कारण उन ब्लॉगों पर भी कमेंट आ ही जाते हैं,
जो कि एक टिप्पणी के लिए भी तरसते हैं।
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किन्तु देखने में यह आया है कि
वो लोग भी चर्चा मंच पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए
नहीं आते हैं जिनके लिंक चर्चा में यहाँ लगे हैं।
जी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं ये बात मैने भी नोटिस की है!
हटाएंप्रतिक्रिया मात्र प्रतिक्रिया नहीं होती बल्कि हौसला बढ़ाने का सबसे बड़ा स्रोत होती है जब जब प्रतिक्रिया मिलती हैं तो हमें उसे सुधारने और आगे ऐसे ही लगन से काम करते रहने का मन करता है लेकिन जब कुछ प्रतिक्रिया नहीं मिलती तो मन हताश हो जाता है!
आपको जो सही आपको करना चाहिए!
शायद इससे थोड़ा सुधार आ जाए
सादर नमस्कार सर।
हटाएंसमय आभाव के कारण या फिर कोई और समस्या के चलते साथी ब्लॉगर समय नहीं निकाल पा रहे होंगे। हम अपना धर्म निर्वहन कर रहे है।
प्रस्तुति बनाने में बड़ी मेहनत लगती है मैं समझ सकती हूँ। आपका मेरे प्रति पिता तुल्य स्नेह है इसकी आभारी हूँ। आशीर्वाद बनाए रखें।
सभी नाजुक दौर से गुजर रहे है।
चर्चा यथावत चलती रहे आशीर्वाद चाहूंगी।
सादर
आप सबों के धर्म निर्वहन के कारण ही आज ये मंच विश्व में प्रमुख स्थान रखता है। इस मंच के मौन पाठक बहुत है जो बस यहाँ आकर अपने पढ़ने की क्षुधा का शमन करते हैं। यदि वे अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएँ भी देते तो इस मंच की शोभा बढ़ाते। उन अदृश्य पाठकों को भी हार्दिक आभार है किन्तु सर्जक को इस मंच का सम्मान करना चाहिए। जो मंच उनका स्वागत कर रहा है। नि:संदेह ये मंच हमारी हिन्दी के लिए प्रतिष्ठा है। हार्दिक शुभकामनाएँ।
हटाएंआदरणीय अमृता दी सादर नमस्कार।
हटाएंसही कहा आपने।
आप आए दिल से आभार।
सादर
सिर्फ चमचों को रोज़गार यहाँ
जवाब देंहटाएंशिक्षितों के लिए अधेले हैं
अब विरासत में सियासत बाकी
आम-जन आज भी अकेले हैं
हकीकत को बयां करती हुई बहुत ही शानदार सृजन!
बहुत ही उम्दा व सरहनीय प्रस्तुति
सभी चर्चा कारो के हम आभारी हैं कि वे इतनी मेहनत करके हमारे प्ले एक ही मंच पर सभी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत करते हैं ऐसी स्थिति में अपनी प्रतिक्रिया तक ना देना बहुत ही गलत है! 🙇🙌❤
बहुत अच्छा अंक सभी रचनाकारों को बहुत बधाइयाँ आयोजक मण्डल बधाई का पात्र है।
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों का आकर्षक संयोजन के लिए हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
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