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सोमवार, नवंबर 19, 2012

शिरा खोज लूं (सोमवारीय चर्चामंच-1068)

दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर आज की चर्चा शुरू करूं इससे पहले प्रबुद्ध पाठकों से एक ईमानदार प्रश्न करना चाहूंगा! वह यह कि पिछली सोमवारीय चर्चा में मैंने एक लिंक 'गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश' लगाया था जिस पर कुछ लोगों को घोर आपत्ति हुई और आदरणीय शास्त्री जी पर दबाव बना करके यह लिंक निकलवा दिया दुर्योग से मैं उस दिन नेट पर उपलब्ध नहीं था। आप सब यह लिंक पढ़ें और बताने की कृपा करें कि यह लिंक यहां लगाना क्यों अनौचित्यपूर्ण था? किसी को क्या तकलीफ़ हो सकती थी इस लिंक से और इसमें क्या ग़लत था जिससे हिन्दू समुदाय की सबसे बड़ी हानि होने की सम्भावना ठहरी? उन लोगों ने न केवल लिंक निकलवाया बल्कि एक पोस्ट 'दीपावली की खिचड़ी' पर मेरे बारे तथा सभी चर्चाकारों के बारे में जो टिप्पणियां की वह कहां तक संसदीय और औचित्यपूर्ण हैं? उसको मैं यहां दे रहा हूं-


बहुत ख़ूब! धनतेरस और दीपावली की ढेरों मंगल कामनाएं!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 12-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1061 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
प्रत्‍युत्तर देंहटाएं


  1. ग़ाफिल जी,
    धन्यवाद। आप के दिये लिंक पर गया। मुझे यह समझ में नहीं आया कि दीपावली पर्व पर दो वर्ष से भी अधिक पुरानी एक निहायत ही भ्रामक, विरोधाभासी और प्रोपेगेंडा वाली पोस्ट का लिंक लगाने की क्या आवश्यकता आन पड़ी? वह पोस्ट है- गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश। क्या सन्देश देना चाहते हैं आप? इस देश में इस्लामी तय करेंगे कि ग़ैर मुसलमानों को कैसे रहना है और कैसे अपने पर्व मनाने हैं?
    हम हिन्दू कब अपनी ग़फलतों और बेहूदगियों से मुक्त होंगे? आप को पता भी है कि ये कौन लोग हैं और इनके छिपे एजेंडे क्या हैं? आप की समझ पर तरस आता है। सेकुलरी कंडीशनिंग से हम कब मुक्त होंगे? यही समय मिला था आप को दो साल से भी पुरानी हैवानों की पोस्ट का लिंक देने को?
    इस्लाम को जानना है तो स्वयं क़ुरआन और हदीस पढ़िये, हैवानों के प्रचार पर मत जाइये।
    इस टिप्पणी के माध्यम से आप से विनम्र अनुरोध है कि या तो उन्हें हटाइये या वहाँ से मेरी पोस्ट का लिंक। यह सन्देश आप को ई मेल के माध्यम से भी भेज रहा हूँ। चूँकि बहुत से लोगों के ई मेल पते ग़लत होते हैं और सन्देश वापस आ लुढ़कते हैं, इसलिये यह अनुरोध यहाँ भी कर रहा हूँ।
    आप आये और मुझे मान दिये उसके लिये कृतज्ञ हूँ, आभारी हूँ लेकिन व्यापक हित में कुछ कटु सा अनुरोध कर रहा हूँ। आशा है कि आप उसका भी मान रखेंगे।

    सादर,
    गिरिजेश
  2. अभी तक तो न वो पोस्ट हटी है न आपकी, यही अनुरोध चर्चामंच पर भी कीजिये। 
  3. अब वहाँ तो टिप्पणी करने से रहा। मेल बाउंस बैक नहीं हुई है तो इसका अर्थ यह है कि ग़ाफिल जी तक पहुँच ही गयी है। हो सकता है कुछ सोच विचार रहे हों।
  4. सोंच-विचार?!?!?! अरे भैया जी, इन मूढ़मतियों के पास दिमाग़ है भी सोंच-विचार के लिए??? जितना प्रयत्न ये अपना स्वतंत्र विचार विकसित करने में लगायेंगे, उसके दशांश में ये शर्मनिरपेक्ष लोग बुद्धिजीवी घोषित हो, हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सदभावना के सितारे बन जाते हैं. वैसे भी 'धिम्मी' बन के जीने की हमारी आदत बहुत पुरानी है.

    गाफिल बाबू अपने मरकस बाबा के अफ़ीम की पिनक में मस्त है... रहने ही दिया जाए... ये आँख खोल के सोने का बहाना करने वाले लोग हैं... जाग नही सकते...


    अभी तो बस यही चार लाइन याद आ रहा है:


    यह एकलिंग का आसन है,

    इसपर न किसी का शासन है,
    .............
    राणा तू इसकी रक्षा कर
    यह सिंहासन अभिमानी है...
    सादर
    ललित
  5. आज यह मेल श्री रूपचन्द शास्त्री जी को भेजी गई जो कि, जहाँ तक मुझे पता है, चर्चा मंच के मॉडरेटर हैं:
    __________________
    आदरणीय शास्त्री जी,

    दीप पर्व की शुभकामनायें।

    जहाँ तक मुझे पता है, आप चर्चा मंच के मॉडरेटर हैं। एक दिन पहले नीचे लिखी गई मेल आप के चर्चाकार श्री ग़ाफिल जी को भेजी गई लेकिन लगता है कि उन्हों ने देखा नहीं या देख कर भी कुछ न करने का निर्णय लिया है। मेल स्पष्ट है। अभी तक उन्हों ने न तो उस दो साल पुरानी इस्लामी पोस्ट का लिंक दीपावली के अवसर पर की गई चर्चा से हटाया है और न ही मेरी पोस्ट का लिंक।

    आप से अनुरोध है कि मेरी आपत्ति पर तदनुकूल तत्काल कार्यवाही सुनिश्चित करें। इस पावन पर्व पर आप इस मेल को मेरा अंतिम अनुरोध समझें।


    सादर,

    गिरिजेश राव
  6. शास्त्री जी ने चर्चा से उस इस्लामी पोस्ट का लिंक हटा दिया है। धन्यवाद। 
  7. लिंक बदल दिये जाने से मेरी टिप्पणी अब वहाँ अप्रासंगिक दिख रही है,अपनी टिप्पणी हटानी चाही थी लेकिन टिप्पणी हटाने का विकल्प नहीं दिखा। तदापि धन्यवाद तो बनता ही है और असुविधा के लिये खेद भी।
  8. श्रीमान् मिरिजेश जी! संजय जी! और ललित भाई! आपका बहुत-बहुत आभार हमारी बुद्धि पर तरस खाने का! और चर्चामंच पर इस तरह की टिप्पणी करने का तथा उसे हमें मेल करने का! दरअसल बात यह है कि आप अपने विचार उस पोस्ट पर भी जाकर दें और चर्चामंच पर भी यही चर्चामंच का उद्देश्य है अगर आपको वह पोस्ट गाली लग रही है तो हम उसे भी चर्चा पर लगायेंगे ताकि लोग जान सकें कि पोस्टों पर ऐसी गालियां भी लिखी जाती हैं और कहीं यदि भगवान का भजन हो रहा है तो वह भी लगायेंगे कि ऐसा भी लिखा जाता है...क्या अच्छा और क्या बुरा है यह लोगों की व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है और अपनी बुद्धि के अनुसार टिप्पणी कर सकते हैं यही तो चर्चामंच का मूल उद्देश्य है...अच्छा और बुरा जो कि नितांत व्यक्तिगत धारणा पर आधारित होता है हम दोनों दिखाएंगे उसपर आप अपने विचार से राय दें और उस पोस्ट पर भी जाकर दें इसी में चर्चामंच टीम की कृतार्थता है...मेरे विचार से आप हमसे नाराज़ न हों क्योंकि हमने अपनी तरफ़ से वहां कुछ नहीं लिखा है और हम आपकी प्रशंशा इसलिए करते हैं कि आपने ऐसी टिप्पणी करने का साहस किया...हम आपके स्वस्थ और प्रसन्न जीवन की कामना करते हैं...आभार आपका---यह मेल और आपकी टिप्पणी समयाभाव के कारण विलम्ब से देखा अतः विलम्ब से उत्तर देने के लिए खेद व्यक्त करता हूं आशा है आप हम से सहमत होंगे...शास्त्री जी ने जो वह पोस्ट हटा दी है यह बेहद दुःखद है क्योंकि चर्चामंच का यह मकसद कदापि नहीं होना चाहिए कि कुछ सिरफ़िरों और धर्मांधियों के धमकाने पर पोस्ट ही हटा दी जाय...गिरजेश भाई आपका ब्लॉग आलसी का ब्लॉग है...संजय भाई ख़ुदै कह रहे हैं मो सम कौन कुटिल तथा ललित भाई तो अभी तक अपनी प्रोफ़ाइल ही अपडेट नहीं किए आप सबके बारे में हम क्या कहें वैसे तो हम ग़ाफ़िल हैं ही ज़रा अपना ग़रेबान भी झांक कर देखें आपसब...संजय भाई उस चर्चा का शीर्षक था ‘चलो साथ मिलकर दीवाली मनाएं’ कौन साथ मिलकर भारत में रहने वाली और क़ौमों को आप साथ नहीं रखना चाहते? आज का हिन्दुस्तान अकेले आप तथाकथित हिन्दुओं के ही बलपर चल रहा है...बुरा न मानना हिन्दूधर्म के बजाय अगर आप मात्र मानवधर्म का पाठ सीख जायें तो शायद मानव का कल्याण हो सके...इसी संकीर्ण बुद्धि के बूते ब्लॉग बनाकर चले आए लिखने और बन जाना चाहते हैं रहनुमा...मुझे तरस तो नहीं आ रहा आप लोगों की बुद्धि पर पर मुआफ़ करना दोस्त! घृणा अवश्य हो रही है
    हटाएं
  9. गिरिजेश भाई! आपने टिप्पणी के स्वतः प्रकाशन पर रोक लगा रखी है शायद डरते होंगे कि कोई ऐसी टिप्पणी न कर दे कि आपकी स्वतन्त्र कुवाचालता पर आंच आ जाय...हिम्मत होगी तो मेरी टिप्पणी को प्रकाशित कर देना दोस्त...ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे
    हटाएं
  10. संजय भाई ‘मो सम कौन कुटिल’! चर्चामंच पर आपकी अप्रासंगिक हुई टिप्पणी को भी डिलीट कर दिया गया है वैसे इन सभी डिलीशन से मैं बहुत ही दुःखी हूं कि आप सभी तथाकथित ज्ञानियों की समझ में यह नहीं आया कि चर्चामंच का उद्देश्य क्या है?
    हटाएं
  11. ग़ाफिल जी,
    ... थोड़ा टिप्पणी मॉडरेशन की तकनीक के बारे में भी जान बूझ लें तो अच्छा हो, आप 'चर्चा कर्म' जैसे गुरुगम्भीर दायित्त्व के निर्वाह में लगे हैं, इतना जानना तो बनता ही है।
    आप गफलतों से मुक्त हों, चर्चा के पहले पढ़ें, देश काल की मर्यादा समझें, मुक्तमना हो निर्णय लें एवं मानवधर्म और इस्लामी ज़िहादियों में अंतर समझ पायें; यही कामना है। इसके अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं कहना। पहले के तीन बिन्दु उस अतिरिक्त को व्यक्त करते हैं जो मैं कह नहीं पा रहा। 'गुरु विरंचि सम' वाला अनुशासन याद आ गया है ;) 
  12. गाफ़िल जी,
    हरियाणा में एक कहावत चलती है, ’बुड्ढा मरे या जवान, हत्या सेती काम’ - आपके चर्चामंच की कृतार्थता वाली बात पर याद आ गई। गाली हो या भगवत भजन, आपको तो लिंक से मतलब है। बढ़िया है, लगे रहिये। हम सिरफ़िरों, धर्मान्धों और तथाकथित हिन्दुओं की प्रशंसा करने के लिये और सुखद भविष्य की कामना करने के लिये आप जैसे मानवधर्मी का आभार कैसे व्यक्त किया जाये, अभी तो यही उलझन है फ़िर मानव कल्याण की कैसे सोचें? यूँ भी ये विभाग आप सम बुद्धि-ज्ञान विशारदों से ही शोभा पाता है। आप कल्याण-कार्य में प्रवृत्ति अवश्य रखें, हम जैसे संकीर्ण बुद्धि वाले लोगों का जो होगा सो देखी जाएगी। रहनुमाई की कोशिश हममें से किसने की, स्पष्ट करेंगे क्या? निश्चिंत रहिये, अपना तो ऐसा कोई इरादा कभी नहीं रहा।
    हाँ, कम से कम मेरे प्रति आपकी घृणा जरूर हमेशा जीवंत रहे, ऐसी घृणा मेरे लिये तो संजीवनी का काम करती है।
    चर्चामंच पर मैंने टिप्प्णी की थी और उसमें लिंक नं. का भी जिक्र किया था। उस लिंक को बदलकर कोई दूसरी पोस्ट को वहाँ लगा दिया गया, इसलिये वो टिप्पणी अप्रासंगिक हो गई थी। आपने हटाया उसके लिये मेरा धन्यवाद। यदि सभी डिलीशन्स के कारण आप दुखी महसूस कर रहे हैं तो ये मामला आपके और आपकी टीम के बीच का है।
    चलता हूँ,पापी पेट का सवाल है। आगे आपसे सुसंवाद शाम के बाद ही पढ़ कर पाऊंगा।
और इसी क्रम में 'बेसुरम्' ब्लॉग पर आदरणीय रविकर द्वारा लगाई गई एक पोस्ट पर श्रीमान् ललित की टिप्पणी भी पठनीय है जिसे मैं यहीं पोस्ट कर दे रहा हूं ये हैं आज के प्रबुद्ध लेखक और कट्टर हिन्दूवादी जो समाज को राह दिखाते हैं-
  1. हाँ, तो बेसुरम पर आने वाले ‘असुर’ लोगों, (यहाँ पर ‘असुर’ शब्द का प्रयोग मैने बिना सुर में गाने पढ़ने और बोलने वालों के लिए किया है और उनके लिए भी किया है जो "हंसुआ के बियाह में खुरपी का गीत गाते हैं". यह साफ करना मुझे इसलिए भी अत्यावश्यक लगा क्योंकि मैं इन सभ्य, सुसंस्कृत, सेक्युलर लोगों की सुरुचिपूर्ण गालियाँ और नही सुनना चाहता हूँ)
    धृष्टता के लिए क्या कहूँ? लेकिन असूरों, मुझे एक बात समझ में नही आई, इतना हंगामा क्यों बरपा है? “धिम्मी” शब्द के प्रयोग पर? या “हल्दी घाटी” का उद्धरण देने पर? और लोगों की तरह 'शर्मनिरपेक्ष' नही होने पर? याकि शक्ति सिंहों और मानसिंहों के बीच 'महाराणा' का नाम लेने पर???
    अब आते हैं मुद्दे की बात पर. शुरू करूँगा 'शाह नवाज़' से और अंत करूँगा 'रविकर' से. बीच में जितने भी कुमार, कुमारी, मिश्रा आदित्यादि है, सबसे निपटते चलेंगे.
    शाह नवाज़ ---- मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर मेरी इस पोस्ट पर किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है? मैंने तो आज तक कभी भी किसी भी धर्म के खिलाफ कोई पोस्ट नहीं लिखी, यहाँ तक कि कोई टिप्पणी भी नहीं की... क्योंकि यह मेरे स्वाभाव और मेरे माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कार यहाँ तक कि मेरे धर्म के भी खिलाफ है...
    --- जैसे ही मैं अपने धर्म की अच्छाइयों से परदा उठाना शुरू करता हूँ, यह साबित करने की ज़रूरत हीं नही बचती हैकि दूसरे धर्म बुरे हैं.... आपके स्वभाव और संस्कार से मैं अपरिचित हूँ लेकिन यह बात डंके की चोट पे कही जा सकती हैकि यह कम से कम आप के धर्म के खिलाफ नही ही है.
    मुझे आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि हम दुनिया को मुस्लिम और गैर मुस्लिम के चश्मे से क्यों देखते हैं? मुझे तो किसी ने भी दुनिया को 'हिंदू' और 'गैर हिंदू' में बाँट कर नही दिखाया... शाह नवाज़, मुद्दा यह नही हैकि आप ने किसी धर्म को बुरा कहा या नही, मुद्दा यह हैकि हम दुनिया को बाँटे क्यों धर्म के आधार पर?
    राजेश कुमारी --- समस्या यही हैकि आप जैसे लोग लेखक है जो सतह के नीचे उतर के नही देख सकते हैं. इससे ज़्यादा अगर मैं कुछ और कहने की कोशिश करूँ शायद व्यक्तिगत आक्षेप की श्रेणी में आ जाएगा अतः ....
    ईश मिश्रा -- और कुछ हो या ना हो, आप जैसे लोगों से हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है. अस्मिता और वो भी दुर्घटना की!!! वाह!!! आज एक नया शब्द प्रयोग सीखा मैने. और मैने ये भी जाना की 'या तो अतीत अमूर्त होता है या हमारा, विशेषतः हिंदुओं का अतीत अमूर्त है, गौरवशाली तो कत्तई नही!!! आप 'धिम्मी' मानसिकता के मूर्त रूप हैं मिश्रा जी
    गाफिल --- आपके बारे में कुछ भी कहना छोटा मुँह बड़ी बात होगी. आपलोग ब्लॉग जगत के चमकते सितारे हैं. बस यही पूछना है आपसे कि यह कहाँ और ब्लॉग्गिंग के किस 'रूल बुक' में लिखा हुआ हैकि टिप्पणी करने वाले को भी अपना प्रोफाइल बनाना हीं होगा, अथवा वही टिप्पणी कर सकता है, जो अपना ब्लॉग लिखता है?
    दिक्कत यह नही हैकि आप बड़े हीं आदर से बूजुर्गवार जुम्मन को जुम्मन चाचा कहते हैं. दिक्कत यह हैकि जब वही जुम्मन अपनी खाला पे अन्याय करते है तो आप जैसे लोग "बिगाड़ के डर से ईमान की बात नही कहते हैं"
    व्यक्तिगत रूप से मुझे इस नाम, 'छद्मरूपधारी छुद्रमना' पर सख़्त आपत्ति है क्योंकि आज तक मैने जो भी किया डंके की चोट पे किया... आरा जिला घर बा ना कहु से डर बा. वो भी स्वीकार्य हो गया मुझे लेकिन ये 'छुद्र' क्या होता है?आप जैसे लोगों से, जिनसे कि पूरा का पूरा हिन्दी ब्लॉग जगत चमचमायमान है, उनसे हिन्दी में ऐसी ग़लती!!!??? आगे से आप मेरे लिए 'क्षुद्र' शब्द का प्रयोग कीजिएगा कृपा कर के. थोड़ा सा शुचितावादी हूँ मैं शब्दों की वर्तनी और उनके प्रयोगों को लेकर... बर्दाश्त कर लीजिए.
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  2. ऱविकर --- ह्म्‍म्म्म, क्रोधग्नि जलाए रखना, क्या पता किस मोड़ पर सामना हो जाय. आज मुझे शर्म आ रही हैकि जिनके उपर हिन्दी का दारोमदार है उन्हें हिन्दी सिखानी पड़ रही है...
    रविकर, जब तुमने इसे व्यक्तिगत बना ही दिया है तो...

    रविकर, तुमने तो कर्ता-अकर्ता का भेद ही मिटा दिया बे. बड़े काव्य लिखते फिरते हो और कविता का 'क' भी नही आता है!!! याद रखना आगे से, मैं 'टिप्पणी' नही 'टिप्पणीकर्ता' हूँ.

    ग़लती तुम्हारी है भी और नही भी. ग़लती इस लिए नही है कि मेरा कोई प्रोफाइल नही है अतः तुम्हे जानकारी मिलेगी कहाँ से. और ग़लती इस लिए हैकि तुमने स्वयं को वहीं रोक कर एक बार फिर से अपने सतही होने का प्रमाण दे दिया. एक बार पूछ लिया होता उसी ब्लॉग पे, जहाँ मैने अपनी टिप्पणी की थी, बहुत जानकारी मिलती और दिलचस्प जानकारी मिलती...

    ह्म्म तो यह स्तर है तुम्हारे सोंच-विचार का? अच्छा हैकि ब्लॉग जगत से मेरा परिचय तुम्हारे द्वारा नही हुआ.


    रविकर.... शब्द तो यही बताता है-- रवि का 'किया' हुआ. खैर बाप का नाम अपने साथ जोड़ने की परंपरा बहुत पुरानी है लेकिन इससे यह नही पता चलता हैकि 'रवि' ने 'कितनी' बार 'किया' तो तुम 'निकले'... नाम में यह भी जोड़ लो और एक नयी प्रथा शुरू करो... बाबा का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है.

    तुम्हारी माँ भी 'एक लिंग' पे बैठी थी, तभी तुम आए. आज वो अफ़सोस करती होंगी कि क्यों बैठी उस लिंग पर, हाँ, अगर सही में 'एकलिंग' पे बैठी होती तो उनका, तुम्हारा, सबका जीवन धन्य हो जाता...
    रविकर, बहुत कम लोग ही होंगे जो मेरे 'माँ-बाप' तक पहुँचे होंगे, और जो जानते हैं वो तो कदापि नही करते हैं. तुमने किया... मैने माफ़ नही किया, और इसीलिए मैने कहा कि 'क्रोधाग्नि' जलाए रखना. बाबा का आसन अभी बंगलोर में है और
    बाबा का नंबर है – 9739008569. बाबा का मेल आइडी है – lalit74@gmail.com और अंततः जब मुझे सूचना मिली रायता फैलने की और इधर आ के मैने देखा तो जो पहली बात दिमाग़ में आई, वह थी: 

    उपदेशो हि मूर्खानाम, प्रकोपाय न शांतये.
    पयः पानम भुजनगानां, केवलम विष वर्धनम...
    लेकिन, अगर जवाब नही देना था तो हुंकार तो भरनी थी. यह मेरा जवाब नही केवल हुंकार है.
    अफ़सोस रहेगा तो सिर्फ़ इसी बात का कि मेरे चक्कर मे 'मो सम कौन' भाई जी पिस गये. 

    अगर रविकर ने सीमा नही लाँघी होती तो आज मैं अपने एक एक शब्द का भावार्थ बताता और ग़लत नही होने पर भी क्षामाप्रार्थी होता.. लेकिन अब... बस यही कह कर समाप्त करता हूँ:

    “हम जीवन के महाकाव्य हैं, कोई छन्द प्रसंग नही हैं”

    इसके आगे जिसे जो कुछ भी जानना सुनना हो, बाबा से संपर्क

    क्या आप सब इस गालीपूर्ण अनावश्यक विवाद का उत्तरदायित्व श्रीमान् गिरिजेश राव, Girijesh Rao तथा श्रीमान् संजय @ मो सम कौन ? को नहीं देना चाहेंगे? या ब्लॉग जगत में ऐसे ही लठैती बरदास्त करते रहेंगे?


इन कुवक्ताओं की और गालीयुक्त टिप्पणियां तथा भाई रविकर जी के सदाशयी प्रत्युत्तर के लिए कल के 'चर्चामंच-1067 की टिप्पणियों' पर क्लिक करें!
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अब प्रस्तुत करता हूँ आज की चर्चा का-




 लिंक 1- 
शिरा खोज लूं -अमृता तन्मय
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लिंक 2-
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लिंक 3-
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लिंक 4-
पत्नी-पीड़ित पति -मदन मोहन बाहेती ‘घोटू’
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लिंक 5-
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लिंक 6-
यह जाडे की धूप है या "तुम" -डॉ. पवन कुमार मिश्र
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लिंक 7-
संध्या सुहानी ( हाइकु) -रीना मैर्या
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लिंक 8-
अरे मैं कौन? -वन्दना
मेरा फोटो
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लिंक 9-
हे छठी मैया -डॉ. निशा महाराणा
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लिंक 10-
चुहुल-३७ -पुरुषोत्तम पाण्डेय
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लिंक 11-
ये गहरी झील की नावें -देवेन्द्र पाण्डेय
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लिंक 12-
कौन गीत गाऊं? -रविशंकर पाण्डेय
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लिंक 13-
अपराध-बोध -केशव कहिन
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लिंक 14-
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लिंक 15-
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लिंक 16-
नवगीत : जितनी आँखें उतने सपने -संजीव 'सलिल'
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लिंक 17-
तुम नहीं आओगे -केशव पाण्डेय
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लिंक 18-
जय श्री राधे : लुका छुपी का खेल -संजय मेहता
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लिंक 19-
राम राम भाई! प्लानिंग ए फ़ैमिली -वीरेन्द्र कुमार शर्मा 'वीरू भाई'
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और अन्त में
लिंक 20-
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!

42 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक प्रस्तुति गाफिल जी |
    बधाई स्वीकारें-

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया चर्चा गाफिल जी सभी पठनीय सूत्र हैं बहुत बहुत बधाई आपको बीती बातें भूल के आगे बढ़ते रहिये |

    जवाब देंहटाएं
  3. शास्त्री जी,

    आप के चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.in पर जो चल रहा है उससे तो आप अवगत होंगे ही। चर्चाकार दिनेश च. गुप्त उर्फ रविकर के माध्यम से मैंने यह अनुरोध किया था कि 18 नवम्बर 2012 की चर्चा 1067 से मेरी पोस्ट का लिंक हटाया जाय और भविष्य में भी कभी मेरी पोस्ट की चर्चा वहाँ न की जाय।

    पोस्ट का लिंक अब तक वहाँ से नहीं हटाया गया है। ग़ाफिल और रविकर ने तो आगे की चर्चा में और अन्यत्र भी गन्द मचा रखी है। प्लेटफॉर्म आप का है, आप जैसे उसका उपयोग करें या होने दें लेकिन इतनी सदाशयता तो आप दिखाइये ही कि मेरी पोस्ट का लिंक वहाँ से हटा दीजिये। मैं किसी भी तरह से ऐसे प्लेटफॉर्म से लिंकित नहीं होना चाहता और जहाँ तक समझता हूँ इस माँग में कुछ भी अनुचित नहीं है। उसके बाद आप लोग वहाँ चाहे जो करें। मंच आप का, मंची आप के!
    सादर,
    गिरिजेश
    --
    गिरिजेश जी!
    मुझे नहीं पता था कि आपके भीतर धार्मिक उन्माद कूट-कूटकर भरा हुआ है। मैंने विवादों से बचने के लिए उस समय आपकी बात मानकर लिंक 11 की पोस्ट हटा दी थी, जो मेरी बहुत बड़ी भूल थी। क्योंकि मैं विवाद को तूल नहीं देना चाहता था। जबकि उस पोस्ट में कुछ भी ऐसा नहीं था जो कि समाज के लिए हानिकारक हो। मुझे चाहिए था कि आपकी ही पोस्ट तुरन्त हटा देता।
    रही बात आपकी पोस्ट हटाने की तो मैं उसदिन के चर्चाकार आदरणीय चन्द्र भूषण मिश्र "ग़ाफ़िल" जी से निवेदन करता हूँ कि वो आपकी पोस्ट को वहाँ से हटा दें और लिंक 11 पर जो पोस्ट लगी थी उसे आपकी पोस्ट के स्थान पर लगा दें।
    रही बात आपकी किसी पोस्ट की चर्चा चर्चा मंच पर लगाने की। तो इतना जान लीजिए कि चर्चा मंच इतना सस्ता भी नहीं है कि उस पर आप जैसोंं की पोस्ट लगाई जाये।
    हम चर्चाकार निस्वार्थभाव से समय लगाकर चर्चा करते हैं। जिसका कोई भी लाभ न तो हमें और न ही हमारे ब्लॉग को मिलता है। इसलिए धौंस और धमकी का भी यहाँ कोई असर होने वाला नहीं है।
    मुझे नहीं पता था कि आपकी सोच इतनी संकुचित होगी। इसीलिए आपकी बातों में आकर मैंने अपने विशेष अधिकार का प्रयोग करके गाफिल जी की चर्चा से एक पोस्ट हटा दी थी। मैं गाफिल जी से अपनी भूल के लिए क्षमा माँगता हूँ। आपको एक बात और भी बता देना चाहता हूँ कि रविकर जी, ग़ाफ़िल जी और दिलबाग विर्क जी भी इस चर्चा मंच के मॉर्डरेटर हैं। यदि वो चाहें तो मेरी भी कोई पोस्ट हटा सकते हैं।
    समझदार को इशारा ही काफी होता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. @मुझे नहीं पता था कि आपके भीतर धार्मिक उन्माद कूट-कूटकर भरा हुआ है।

      शास्त्री जी, गिरिजेश राव के व्यक्तिव के लिए 'धार्मिक उन्माद' शब्द शोभा नहीं देता, आप 'राष्ट्रीयता उन्माद' शब्द का प्रयोग कर सकते थे...

      क्या 'गैर-मुसलमानों के साथ संबंधों के लिए इस्लाम के अनुसार दिशानिर्देश' वाली पोस्ट यहाँ अपने देश में प्रासंगिक है? जरा सोचिये... क्या एक तथाकथिक अल्पसंख्यक तबका तय करेगा कि किस प्रकार बाकि देश वासियों से व्यवहार करना चाहिए. और उस पर भी पोस्ट १-२ साल पुरानी है. क्या जरूरत थी कब्र खोद कर मुर्दा निकालने की.

      हटाएं
  4. शास्त्री जी प्रणाम! इसमें क्षमा मांगने जैसी कोई बात नहीं है हां उस दिन श्रीमान् गिरिजेश जी की ही पोस्ट हटा देनी चाहिए थी कयोंकि इन्ही को एतराज था...वह काम आज मैं आपके आदेशानुसार कर दे रहा हूं उसकी जगह जो पोस्ट हटाई गयी उसे लगा दे रहा हूं...अब लोग धर्म विशेष को अपनी खास पहचान बनाकर उसे भुनाने के चक्कर में लगे हैं इस वैश्वीकरण के युग में भी...ईश्वर उनको मार्ग दिखाए!

    जवाब देंहटाएं
  5. ये लोग तो गाली देने के लिए एक फाल्स आईडी भी बनाकर रखते हैं क्या-क्या हथकंडे हैं इनके भगवान ही जाने!

    जवाब देंहटाएं
  6. ्सुन्दर लिंक संयोजन्…………बढिया चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  7. अभी-अभी एक मेल और प्राप्त हुआ है-
    शास्त्री जी,
    आप ने चर्चा मंच पर मेरे इस मेल को उद्धृत कर वहाँ उत्तर दिया है। मेल भी भेज दिये होते! :)
    अस्तु।
    उत्तर भी जान लीजिये:
    @ धार्मिक उन्माद कूट-कूटकर भरा: चेतना स्तर की भिन्नता की बात है। जिस ओर मैंने ध्यान दिलाया, यदि वह आप की दृष्टि में धार्मिक उन्माद है तो वही सही। आप कोई राय बनाने के लिये स्वतंत्र हैं।
    @ मुझे चाहिए था कि आपकी ही पोस्ट तुरन्त हटा देता। - अब हटा दीजिये। इसमें विलम्ब न कीजिये :)
    @ चर्चा मंच इतना सस्ता भी नहीं है कि उस पर आप जैसोंं की पोस्ट लगाई जाये। - चर्चामंच :) ;) हम जैसे भी हैं हमें पता है कि क्या हैं। रही बात सस्ती और महँगाई की तो बाज़ार उसका निर्णायक होता है, हम आप नहीं। आप मंच के मॉडरेटर हैं इसलिये अपने मंच के मंचियों से अनुरोध करने के बजाय स्वयं मेरी सारी पोस्टों का लिंक वहाँ से हटा दीजिये। प्लीज!
    @ निस्वार्थभाव से समय लगाकर चर्चा - पता है :) समय तो वैसे पोस्ट लिखने में अधिक ही लगता है लिंकित करने की तुलना में! आप को तो पता ही होगा।
    @ धौंस और धमकी - यह आप की सोच में है। मैंने बस अनुरोध किया है।
    @ समझदार को इशारा ही काफी होता है। - यही बात मैं भी आप से कह रहा हूँ।
    आशा है आप मेरे अनुरोध पर मेरे आलेखों का लिंक अति शीघ्र हटा देंगे और सूचित करेंगे।
    शुभकामनाओं सहित,
    --
    @गिरिजेश जी!
    माना कि आप बुद्धिमान हैं, मगर दो रोटी हम भी खाते हैं तो कुछ तो दिमाग रखते ही होंगें।
    @ आप इंगित करके लोगो को गालियाँ दे अपनी पोस्ट पर और हम अपना चर्चा धर्म न निभाते हुए लोगों को आइना भी न दिखायें।
    बहुत खूब!
    आपके ही लिए उलझे रहें हमरे चर्चाकार और अपनी दिनचर्या को न देखें।
    भविष्य में आपकी कोई पोस्ट मंच पर नहीं ली जायेगी।
    --

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    उत्तर
    1. मन में जो भाव आ रहे हैं अगर उन्हे शब्दों में उतार कर यहाँ उजागर कर दूँ तो शायद चर्चा मंच माह भर उनपर सियापा करेगा और फातिहा पढ़ेगा...

      धार्मिक उन्माद... २ रोटी खाना... बुद्धि रखना... संख्या बल ( लगभग एक हज़ार फॉलोवर्स... या यूँ कहें कि 'अंध-भक्त? भाई लोगो अनुवाद की ग़लती को बिना गाली दिए सुधारना) रक्ष संस्कृति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है 'बल' और 'संख्या बल', तो इसे क्या समझा जाय???

      मुझे नही पता था कि 'हल्दी-घाटी' और श्रद्धेय स्वर्गीय श्याम नारायण पांडेय जी के शब्दों में आज भी इतना ओज और तेज भरा हैकि कापुरुषों के हृदय इस तरह कम्पायमान हो जायेंगे कि उन्हें संख्या बल का सहारा ले इतना हल्ला-हंगामा मचाना पड़े.

      चर्चा धर्म... हम तो यही जानते थे आज तक कि "धारयति इति धर्मः" धारण कीजिए यदि चर्चा करना ही आपका गुण है... कभी भी विमुख ना होइएगा... क्या पता रौरव नरक का भागी होना पड़ जाय?

      चलिए, इसी बहाने ब्लॉग जगत के उन लोगों से भी परिचय हुआ जो, मेरी समझ में, वास्तविक जगत के 'अमेरिका' की तरह व्यवहार करते हैं...

      हटाएं
  8. मुझे तो समझ नहीं आता है की इस तरह की भावनाएं लोग मन में रखते है , बेवजह लड़ाई झगड़ा गाली-गलौज, ये कहाँ की सभ्यता है, खैर सत्य कहा है आदरणीय शास्त्री सर ने की चर्चा मंच इतना सस्ता नहीं है।

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  9. गाफिल सर बहुत सुन्दर लिंक्स चुन-2 कर लाये और सजाये हैं, मेरी रचना को स्थान दिया आपको ह्रदय के अन्तःस्थल से अनेक-2 धन्यवाद।

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  10. गिरिजेश जी को अपनी पोस्ट यहाँ लगाना उचित नहीं लगा, उन्होंने आपत्ति की । उनको पूरा अधिकार था । मुझे काफी हद तक उनकी बात सही लगती है । उस दूसरी पोस्ट में हिन्दू विरोधी कुछ था या नहीं इसकी बात नहीं थी - बात यह थी कि दीपावली भी अब हम कुरआन के अनुसार मनाएं क्या ?

    मंच आपका है - करीब करीब 930 फोलोवेर दिख रहे हैं ऊपर । तो आपके पास संख्या शक्ति है । तो ? आप अपने मंच पर तय करेंगे की गिरिजेश जी "उन्मादी" हैं और संजय जी भी ????

    मुझे उनकी मेल ज़रा भी "धौंस धमकी युक्त" नहीं लग रही । बिलकुल विनम्र अनुरोध है - की या तो मेरा लिंक हटा लिया जाए, या वह दूसरा लिंक । संजय @ मोसम जी की बात भी बिलकुल संयमित थी । इसके उत्तर में उन्हें और संजय मोसम जी को क्या क्या यहाँ कहा जा रहा है - वह तो दिख ही रहा है (और अब मैंने इतनी ध्रष्टता की है आप "शक्तिशाली" चर्चाकारों का यहाँ विरोध करने की - तो अब मुझ पर भी बेबुनियाद / बेतुके आरोप लगेंगे ? )।

    @ आपने गिरिजेश जी के ब्लॉग से पूरी चर्चा पेस्ट की - इसकी अनुमति ली गयी ?
    @ संजय भाई ख़ुदै कह रहे हैं मो सम कौन कुटिल - जी हाँ - बिलकुल कह रहे हैं । आप जानते हैं यह कहाँ से उद्धृत है ?किस महात्मा ने, किस सन्दर्भ में, किस स्तर से, किस समय यह बात कही है ?
    @ ललित जी - उनके बारे में कुछ नहीं जानती, कभी पढ़ा भी नहीं - तो कुछ कह नहीं सकती ।
    @ घृणा अवश्य हो रही है - जी - असंदर्भित बातों से दूसरों को नीचा दिखाने के प्रयास करेंगे - तो मन में घृणा ही उपजेगी । विष की बेली न बोइये और खुले मन से सोचिये - तो घृणा नहीं उपजेगी ।
    @ "कुवाचालता" - वाह - क्या बात है !!! कितना आसान होता है न - दूसरों पर ऐसे इलज़ाम लगाना ?अपने चर्चामंच पर अपने एक हज़ार फोलोवेर्स के सामने - वाह - हैट्स ऑफ़ आप सब को ।
    @ "आप जैसों", "सोच इतनी संकुचित" - यह ? गिरिजेश जी जैसे ज्ञानी और सुपठित व्यक्ति के लिए ?
    @ "निस्वार्थभाव " - क्या सचमुच ? चर्चामंच के "power" का कोई मोह नहीं ? उसकी शक्ति से दूसरों को डरा कर चुप कराने का कोई प्रयास नहीं है ? सब - सारे ही चर्चाकार - निस्वार्थ रूप से इस मंच से जुड़े हैं - ब्लोग्वूड में जनसेवा करने ? "निस्वार्थ" अर्थात बिना किसी स्वार्थ के ?
    @ मुझ पर अभी आप और आपके "चर्चाकार" बेबुनियाद आरोप नहीं लगायेंगे ?

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  11. लिंक-20
    --
    बांटी तुमने नदियाँ -ज़मीन ,मुझको हरगिज़ न देना बाँट ,
    कुछ शर्म करो खुद पर बन्दों ! बस इतना कहने आया था !!!
    --
    सार्थक रचना!

    जवाब देंहटाएं
  12. लिंक-17
    न कहा कुछ भी मैंने कोयल से, क्या है पगली को एक पागल से,
    रात मानो काटी हो, मेरी ही तरह, देखते ही सुबह वो कुहकती है.
    --
    वाह बहुत सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  13. बेसुरम :

    "तथाकथित धार्मिक क्षद्मवेशी टिप्पणीकार और ब्लॉग के लठैत"
    मेरे ख्याल से ये शब्द संसदीय और औचित्यपूर्ण हैं" है. अत: आपकी पोस्ट की शोभा बड़ा रहे हैं.

    @या ब्लॉग जगत में ऐसे ही लठैती बरदास्त करते रहेंगे?
    आपको किसी ने न्योता नहीं दिया था, कि दिवाली की खिचड़ी को चर्चा मंच पर लगाते.. अपितु विनम्र प्राथना की गई थी कि उक्त दोनों में से एक पोस्ट का लिंक हटा दीजिए. बजाय लिंक हटाने के आपने ही इस विवाद को शह दी.

    देश में मुस्लिम परस्ती आज एक परम्परा बन चुकी है... क्या राजनीति, क्या मीडिया, फिर ब्लॉग जगत क्यों अछूता रहे. सही है.

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  14. सम्बन्धित टिप्पणीदाता केवल इतना बता दें कि क्या भारत हिन्दुओं का ही है?
    आजादी की लड़ाई में क्या हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों के लोगों का योगदान नहीं रहा है।
    हम लोग पढ़े-लिखे होकर भी इस प्रकार की बातें करेंगे तो क्या भारत की स्वतन्त्रता अक्षुण्ण रह पायेगी?
    बस इतना समझ लीजे कि विवादों के सिर-पैर नहीं होते हैं। यह बिना मतलब का विवाद विद्वान टिप्पणीदाताओं के समय की बरबादी नहीं है तो और क्या है?
    मैं भी हिन्दु हूँ और अपने धर्म के प्रति समर्पित हूँ लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि अन्य धर्मों के लोगों का बहिष्कार शुरू कर दूँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आजादी की लड़ाई में?

      क्या वह पोस्ट आजादी की लड़ाई में मुस्लिम बँधुओँ के योगदान पर आधारित थी?

      धन्य है आप भी!!!!!!

      इस्लामी दिशानिर्देश थोपना यदि आपका हिन्दुधर्म के प्रति समर्पण है तो कीजिए आप उन दिशानिर्देशोँ का प्रचार प्रसार,आपको जमालोँ अयाज़ोँ भरपूर समर्थन जो मिल रहा है. आप सभी आजादी के परवानो को सलाम!! आपके स्वतन्त्रता अक्षुण्ण न रह पाने के भय को भी सलाम!!
      अन्य धर्मों के लोगों का बहिष्कार बिलकुल न करेँ जनाब!! आपको 2-5 साल पुराने ऐसे सैकडो आलेख प्रचार प्रसार के लिए मिल जाएँगे.
      'इस वैश्वीकरण के युग' के अनुरूप अपना प्रचार प्रसार जारी रखेँ जनाब!! आमीन!!

      हटाएं
    2. आदरणीय सुज्ञ जी - आज़ादी के इन परवानों को तो, 19 नवम्बर की तारीख के इस चर्चामंच में, रानी लक्ष्मी बाई जी के प्राणोत्सर्ग की याद भी न आई :) ये गिरिजेश जी और संजय जी के विरुद्ध बोलने में ही मसरूफ रहे :) - हम भी आदरणीय झांसी की रानी के लिए एक दो साल पुरानी पोस्ट का लिंक दिए देते हैं - वैसे टिपण्णी शायद प्रकाशित न की जाए - ।

      http://pittpat.blogspot.in/2010/11/queen-of-jhansi-rani-laxmi-bai-manu.html

      हटाएं
    3. आदरणीया शिल्पा जी | कृपया चर्चा मंच पर आज की चर्चा जरूर देखें | जिसकी शुरुवात ही आदरणीया रानी लक्ष्मीबाई से हुई है |
      मेरा आपसे और अन्य सभी ब्लॉगर मित्रों से विनम्र आग्रह है कि कृपया किसी एक विवाद के कारण इस मंच या मंच के चर्चाकारों के प्रति मन में किसी तरह की कोई बात ना बैठाये | विश्वास कीजिये, चर्चा लगते समय हमारे मन में किसी तरह की कोई बात नहीं रहती | हम बस हर तरह के पोस्ट से चर्चा मंच को सजाते हैं और ये आशा करते हैं कि सभी ब्लॉगर मित्रा इस मंच के जरिये के दूसरे तक पहुंचे | लगाए गए हर पोस्ट में उल्लेखित हर बातों से हम पूरी तरह सहमत हो ये जरूरी नहीं या यहा आने वाला हर ब्लॉगर मित्र हर पोस्ट में जाए या हर पोस्ट हर किसी को अच्छा लगे ये भी जरूरी नहीं | हमारी मंशा सबको एक दूसरे तक पहुँचने की होती है | हाँ हम इस बात का भी खयाला रखते हैं कि पोस्ट उत्कृष्ट हो पर साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि नए और कम लिखने वाले ब्लॉगर मित्रों को भी शामिल किया जाए ताकि वो भी यहा पाहुचे और अन्य अनुभवी ब्लॉगर मित्रों से सीखें और प्रेरणा लें |
      इन सब बातों के अलावा हमारे मन में और कुछ नहीं होता है | इसलिए आपसे विनम्र निवेदन है कि मन में किसी तरह की कोई बात न रखें और नियमित रूप से मंच में आए, संहमति /असहमति प्रकट करें , अपना बहुमूल्य राय दें | ताकि हम भी आप सब मित्रों से कुछ सीख सके |

      सादर आभार |

      हटाएं
    4. आदनीया शिल्पा जी |
      आपका कॉमेंट किसी कारणवश अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया है पर मुझे मेल से प्राप्त हो चुका है | उसी के आधार पर अपनी बात रख रहा हूँ |
      हम चर्चा मंच के लिए पोस्ट एक दिन पहले ही तैयार कर लेते हैं ताकि समय से पोस्ट किया जा सके | इसलिए रानी लक्ष्मीबाई जी का पोस्ट आज के चर्चा मंच में शामिल किया गया है |
      जहां तक उस तथाकथित विवाद का प्रश्न है तो मैं निजी तौर पे गिरिजेश जी एवं संजय जी का ब्लॉग बहुत पहले से फॉलो कर रहा हूँ और ब्लॉग में आना जाना लगा रहता है |
      अब उस विवाद को किसने शुरू किया, किसने पहले अपशब्द कहा, इसने ये कहा, उसने वो कहा आदि बातों को मैं बिलकुल भी नहीं कहना चाहता हूँ | जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ और ये जितनी जल्दी समाप्त हो उतना अच्छा है | हाँ, आगे से ऐसा कभी कुछ न हो इसका पूरी तरह से खयाल रखा जाएगा |
      मेरी मंशा इस विवादित बहस को आगे न खींचकर पूर्ण विराम लगाने की है | आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि ब्लॉग जगत के हित में इस कार्य में आप साथ जरूर देंगी |
      आप अगर निजी तौर पर मुझे मेल करना चाहे तो आपका और समस्त ब्लॉगर मित्रों का सदैव स्वागत है |
      pradip_kumar110@yahoo.com
      आभार |

      हटाएं
    5. haan - meri pichhli tippani jab aapko mail se mil hi gayee hai -

      aap use vahin se yahan publish kar dein - to accha ho -

      kyonki usme jo likhahai - vah sab padhein yahi uchit hoga

      aabhaar

      हटाएं
  15. बीती बातों को जितनी जल्द हो सके भुला देना चाहिए | अगर किसी भी आदरणीय ब्लॉगर को चर्चा मंच से संबन्धित किसी भी तरह की असहमति होती है तो उन्हे इसे व्यक्त करने का पूरा अधिकार है | पर वह विरोध या असहमति सभ्य एवं संयमित तरीके से होनी चाहिए, वो भी इस मंच पर | न कि यत्र-तत्र इस मंच और मंच के समस्त चर्चाकारों के बारे में अपशब्द प्रयोग करना चाहिए | विद्वजनों को इस प्रकार का कोई भी कृत्य शोभा नहीं देता है |

    साथ ही जितने ब्लॉगर मित्रों को यह लगता है कि उन तीनों महानुभावों का विरोध का तरीका सही था और उनकी कहीं कोई गलती नहीं है, वो कृपया इस विवाद से संबन्धित सभी पोस्ट और सभी टिप्पणियाँ ध्यान पूर्वक देख लें उसके बाद ही अपनी कोई प्रतिक्रिया दें |

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  16. बहुत अच्छे लिंक्स का संयोजन है आज की चर्चा में | आभार |

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत प्यार से सजाया है आपने चर्चा मंच .फतवा खोरी न हमारा धर्म हैं न कर्म ,न तवज्जो .अपनी मौत मारे जायेंगे सबके सब फतवा खोर .

    करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास ,

    कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटीयन के पास .

    जवाब देंहटाएं
  18. सादर वन्दे .ईश्वर आप सभी की हिफाज़त करे कर्म करे आदरणीय दीदी पर .

    लिंक 9-
    हे छठी मैया -डॉ. निशा महाराणा

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत सुन्दर रचना है उद्धरण काबिल :

    सिरा खोज लूं ...


    कोई
    मेरे गले में
    घंटी बाँध
    आँखों पर पट्टियाँ चढ़ा
    न जाने कहाँ
    लिए जा रहा है...
    पांव थककर
    रुके तो पीछे से
    कोड़े बरसा रहा है
    कहीं दौड़ना चाहूँ तो
    चारों तरफ
    खाई बना रहा है...
    पराई गलियों के
    अनजान रोड़े भी
    तरस खाने लगे हैं
    सपनों में चुभे
    काँटों को
    सहलाने लगे हैं...
    घर की महक
    वापस बुलाती हैं
    इसीलिए मैं
    अपने समय के भीतर
    खुदाई कर रही हूँ
    ताकि
    इन्द्रजालों के
    महीन बानों को
    काटकर
    कोई भी
    सिरा खोज लूं .

    बधाई अमृता जी तन्मय .

    जवाब देंहटाएं

  20. दिन दूभर, लगी रात भारी।
    ऐसी है, इश्क की बिमारी।।

    शबनमी बूंदें, यूँ पलकों पे जमी होती है।
    हम बहुत रोते हैं जब तेरी कमी होती है।।

    इश्क नासूर, बेइलाज है।
    जख्म नें बदला,मिजाज है।।
    कभी आँखों से, बहे अश्क।
    कभी दिल से दिल, नराज है।।

    बढ़िया प्रस्तुति दोस्त .

    जवाब देंहटाएं

  21. दिन दूभर, लगी रात भारी।
    ऐसी है, इश्क की बिमारी।।

    शबनमी बूंदें, यूँ पलकों पे जमी होती है।
    हम बहुत रोते हैं जब तेरी कमी होती है।।

    इश्क नासूर, बेइलाज है।
    जख्म नें बदला,मिजाज है।।
    कभी आँखों से, बहे अश्क।
    कभी दिल से दिल, नराज है।।

    बढ़िया प्रस्तुति दोस्त .

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत प्यार से सजाया है आपने चर्चा मंच .फतवा खोरी न हमारा धर्म हैं न कर्म ,न तवज्जो .अपनी मौत मारे जायेंगे सबके सब फतवा खोर .

    करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास ,

    कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटीयन के पास .

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  23. बहुत प्यार से सजाया है आपने चर्चा मंच .फतवा खोरी न हमारा धर्म हैं न कर्म ,न तवज्जो .अपनी मौत मारे जायेंगे सबके सब फतवा खोर .

    करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास ,

    कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटीयन के पास .

    सादर वन्दे .ईश्वर आप सभी की हिफाज़त करे कर्म करे आदरणीय दीदी पर .

    बहुत सुन्दर रचना है उद्धरण काबिल :

    सिरा खोज लूं ...


    कोई
    मेरे गले में
    घंटी बाँध
    आँखों पर पट्टियाँ चढ़ा
    न जाने कहाँ
    लिए जा रहा है...
    पांव थककर
    रुके तो पीछे से
    कोड़े बरसा रहा है
    कहीं दौड़ना चाहूँ तो
    चारों तरफ
    खाई बना रहा है...
    पराई गलियों के
    अनजान रोड़े भी
    तरस खाने लगे हैं
    सपनों में चुभे
    काँटों को
    सहलाने लगे हैं...
    घर की महक
    वापस बुलाती हैं
    इसीलिए मैं
    अपने समय के भीतर
    खुदाई कर रही हूँ
    ताकि
    इन्द्रजालों के
    महीन बानों को
    काटकर
    कोई भी
    सिरा खोज लूं .

    बहुत बढ़िया रचना है अमृता जी .बधाई .

    दिन दूभर, लगी रात भारी।
    ऐसी है, इश्क की बिमारी।।

    शबनमी बूंदें, यूँ पलकों पे जमी होती है।
    हम बहुत रोते हैं जब तेरी कमी होती है।।

    इश्क नासूर, बेइलाज है।
    जख्म नें बदला,मिजाज है।।
    कभी आँखों से, बहे अश्क।
    कभी दिल से दिल, नराज है।।

    बढ़िया प्रस्तुति दोस्त .

    जवाब देंहटाएं
  24. हलकी फुलकी शानदार लाये हो राधेश्याम का कुछ पता चला ?

    लिंक 10-
    चुहुल-३७ -पुरुषोत्तम पाण्डेय

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  25. गाफिल जी बढ़िया चर्चा सजाई है .ब्लॉग का जीवन सार्वजनिक जीवन है यहाँ हर तरह के अनुभव होतें हैं आइन्दा भी होते रहेंगे .

    जवाब देंहटाएं

  26. अच्छी बरसात कर दी आपने रचनाओं की लेकिन भाई साहब ज़ज्बात आखिर ज़ज्बात होतें हैं ,तुकबन्दी से बहुत आगे होतें हैं .

    लिंक 15-
    मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ -डॉ. पुनीत अग्रवाल

    जवाब देंहटाएं
  27. राणा तू इसकी रक्षा कर // यह सिंहासन अभिमानी है... सादर ललित
    रविकर
    बेसुरम्‌

    ललित ललित जैसे प्राणियों को समझना होगा जब आपने कुछ लिखके पोस्ट कर दिया तब वह ब्लॉग की संपत्ति बन जाता है .आपको लिख के अपने पास रख लेना चाहिए था .पोस्ट को /सेतु को

    हटवाने का फतवा आप कैसे ज़ारी कर सकतें हैं ?क्या आप ब्लॉग जगत के स्वयम घोषित खलीफा हैं ?फतवा खोरी यहाँ नहीं चलेगी .चर्चा मंच पे तो बिलकुल भी नहीं शुक्र मनाइए आपको इतनी

    तवज्जो

    मिल गई जितनी की आपकी ब्योंत नहीं है .

    जवाब देंहटाएं
  28. सिंदूरी माँग
    काले मोती सजे है(हैं )
    सीने से लगे

    गहन प्रेम


    सुन्दर फुल खिले(फूल खिले ...)




    महका घर

    प्यारा संसार

    तेरा मेरा प्यार है


    पूर्ण हुई मै (मैं )

    हम साथ है ( हैं )
    साथ - साथ रहेंगे।।।रहेंगे
    जन्मों तलक
    सुन्दर हाइकु हैं बेटे जी हम भी आपके मुंबई नगर में हैं

    D-block #4 ,NOFRA,COLABA ,MUMBAI 400-005
    (NEAR RC CHURCH ,OPP POLICE STATION NOFRA,NAVAL OFFICERS FAMILY RESIDENTIAL AREA)

    जवाब देंहटाएं
  29. गाफिल जी बढ़िया चर्चा सजाई है .ब्लॉग का जीवन सार्वजनिक जीवन है यहाँ हर तरह के अनुभव होतें हैं आइन्दा भी होते रहेंगे .

    जवाब देंहटाएं
  30. हाँ शालिनी जी ये रचना पहले भी पढ़ी थी ,आज आतंकवाद का पाक जनित नापाक भस्मासुर उस पूरे मुल्क को ही लील चुका है पाक नाम अब वह कम्पन पैदा नहीं करता फिज़ा में इस नापाक सरजमी

    पर भगत सिंह क्या करेंगे कौन समझेगा उनके ज़ज्बे को जिनके भगत सिंह आतंकी हो ,दहशत गर्द हो उन कटुवों से कैसी नफरत .

    रहिमन ओछे नारण ते ,वैर भली न प्रीत ,

    काटे चाटे स्वान के दुई भाँती विपरीत ..
    लिंक 20-
    शिखा कौशिक जी की प्रस्तुति : नादानों मैं हूँ 'भगत सिंह' दिल में रख लेना याद मेरी

    ________________
    आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!

    जवाब देंहटाएं
  31. charcha bahut sarthak links se bharpoor hai .meri post ko yahan sthan dene ke liye aabhar.

    जवाब देंहटाएं
  32. विलम्ब से आने के लिए क्षमा याचना ..प्रभावी चर्चा के लिए बधाई..

    जवाब देंहटाएं

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