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शनिवार, मार्च 07, 2020

शब्द-सृजन-11 " आँगन " ( चर्चा अंक - 3633 )

स्नेहिल अभिवादन। 
विशेष शनिवासरीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

शब्द-सृजन-11 के लिये 
विषय दिया गया था- "आँगन"


प्रिय अनीता जी की अनुपस्थिति में आज की विशेष प्रस्तुति को लेकर आई हूँ मैं -कामिनी सिन्हा  
  " आँगन " परिवार के स्नेह और एकता  का प्रतीक .....अर्थात घर का वो हिस्सा जहा अपनी ख़ुशी का जश्न या गम का मातम पूरा परिवार एक साथ मिल बैठकर मना लेता था।बच्चों को  खेलना- कूदना हो या स्त्रियों को मंगल -गान करना हो या पुरुषों को परिवार के किसी खास मुद्दे पर विचार विमर्श करना हो  ,ये सारे कार्य आँगन में ही तो होता था। आँगन के बीच में लगाया गया तुलसी का पौधा घर के चारों दिशाओं में साकारात्मक ऊर्जा का संचार करता रहता था। 

  आज शहरीकरण और बढ़ते जनसख्या के कारण घरों से "आँगन "लुप्त सा हो गया हैं और साथ ही साथ लुप्त हो गई है वो स्नेह की डोर जो आँगन के चारों दिशाओं से परिवार को एक सूत्र में बाँधे रहती थी ,वो भाईचार जिससे ख़ुशी हो या गम की घडी आसानी से गुजार लेते थे ,वो भावनाओं की रिमझिम फुहार जिससे बच्चों का बौद्धिक विकास होता था ,वो तुलसी के पौधे से निकलती साकारात्मक ऊर्जा  की तरंगे जो परिवार के हर सदस्य को कुछ भी गलत सोचने और करने से रोकता था ,सब लुप्त हो गया..... 

   ख़ैर ,जो खो गया उसका मातम मनाने से बेहतर हैं जो बचा हैं उसे ही बचाने की कोशिश कर ले। घरों में आँगन नहीं तो क्या.... दिलों के आँगन का द्वार  खोल दें.... 

और इस बार होली में अपने प्रियजनों और अतिथियों को

 रंग -गुलाल से नहीं बल्कि स्नेह ,आदर और सम्मान की भावनाओं से रंग दें ...

अब चलते हैं आज की विशेष प्रस्तुति की ओर.... 
जहा सभी ने अपने मन -आँगन के द्वार  खोल.. ...अपनी रचनाओं के माध्यम से भावनाओं की
 रंग -बिरंगी , रिमझिम फुहारे बरसा दी हैं......  
********

गीत  

"गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे" 

 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 


महक लुटाते कानन पावन नहीं रहे
गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे
--
आज आदमी में मानवता सुप्त हुई
गौशालाएँ भी नगरों से लुप्त हुई
दाग लगे हैं आज चमन के दामन में
वैद्यराज सा नीम नहीं है आँगन में
ताल और लय मनभावन नहीं रहे
गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे
*******
क़ातिल दंगाई तुम कहाँ हो
मेरी फ़ोटो

भयावह मंज़र
निगाह में ख़ंजर
निडर लोग
पुलिस का योग
सब दिखायी / सुनायी दे रहा है इलाक़े में...
लेकिन क़ातिल दंगाई!
तुम कहाँ हो ?

*****
"घर-आंगन"
मेरी फ़ोटो
बहुमंजिल बनी इमारत ,बोनसई सी दिखती है ।।
घर-आंगन वाली बात ,अब सपने सी लगती हैं ।
**********
मन आँगन
जब दिल की मुंडेर पर ,
अस्त होता सूरज आ बैठता है।
श्वासों में कुछ मचलता है
कुछ यादें छा जाती
********

सूना आँगन 

और उधर,पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त  अर्पित अपने हृदय के सूने 
आँगन को टटोल रहा था । उसके पास और है भी क्या काम ?  ऐसे पर्व पर अपने जीवन के 
दर्द और शून्यता को समेटने में उसे स्वयं से कठिन संघर्ष करना पड़ता है।
*********

मिट्टी-सी निरीह 

ठुकराती रही मैं क्योंकि,   
निरीह थी तुम आँगन में मेरे, 
 इतिहास के पन्नों को, 
 टटोलते हुए,  
 देखा है तुम्हें मैंने, 
*******
आँगन 
बदले समय के  साथ में  
बढ़ती जनसंख्या के भार से
बड़े मकानों का चलन न रहा  
रहनसहन का ढंग बदला 
पहले बड़े मकान होते थे
उनमें आँगन होते थे अवश्य
********
ईंट गारे चूने से बना यह ढाँचा
केवल एक मकान नहीं है
यह तो युग-युग से साधक रहा है
हर रोज़ परवान चढ़तीं
******
उस माटी के कण उड़कर,
बिखरें कुछ तेरे आँगन में,
तेरे कदमों को छूकर,
वह माटी भी मुस्काए तो
**********
मैं तेरी सोन चिरैया
मेरी फ़ोटो
 ओ मैया मेरी, मैं तेरी सोन चिरैया
 छोड़कर तेरा अँँगना
 उड़ जाऊंगी फुर्र से कहीं
ले बांध दें तागा  मेरे पैरों पर
 फिर ना जाऊँँगी कहीं
********
Image result for images of  indian father daughter at home
अम्बुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे
रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आँगन में बाबुल
सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा कसके रे जियरा
बचपन की जब याद आए रे
अब के बरस भेज भईया को बाबुल ..
*********
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दीजिए...  
आप के घर -आँगन पर परमात्मा की कृपा बनी रहे। 
कामिनी सिन्हा 
--

25 टिप्‍पणियां:

  1. Kamini Sinha ji

    बेहद खूबसूरत और विविधताओं से परिपूर्ण अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति ।सभी चयनित रचनकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ।

    ओ मैया मेरी, मैं तेरी सोन चिरैया

    इतिहास के पन्नों को,

    घर-आंगन वाली बात ,अब सपने सी लगती हैं ।

    गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे

    bahut achhe links diye hain ...dhanywaad
    टटोलते हुए,
    देखा है तुम्हें मैंने,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद जोया जी ,आपको प्रस्तुति अच्छी लगी ये जानकर हार्दिक प्रसन्ता हुई ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  2. शब्द आधारित विषय पर बहुत सुंदर भूमिका एवं प्रस्तुति , मंच पर मेरे सृजन " सूना आंगन " को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार।

    सत्य तो यही है कि मानव शरीर भी एक घर की तरह है। मस्तिष्क यदि उसका प्रवेश द्वार है तो हृदय आँगन है। तात्पर्य यह है कि ज्ञान एवं भावना दोनों के संयोग से ही मनुष्य का जीवन सार्थक होता है।
    यदि शरीर में स्पंदन ही नहीं रहेगा तो कोई भी कर्म मनुष्य कैसे करेगा ?
    यही स्थिति घर और उसके आँगन की है।
    आँगन में ही जन्म से लेकर मृत्यु तक के अनेक संस्कार एवं उत्सव सम्पन्न हुआ करते थे। आपने सही कहा कि यह संयुक्त परिवार का प्रतीक है।
    लेकिन अब जब हमारा यह घर ही मकान में बदल गया तो हृदय आँगन भी नहीं रहा। आधुनिक सभ्य समाज में मनुष्य के शरीर में भी सिर्फ मस्तिष्क ( ज्ञान ) शेष है, उसके हृदय की भावनाएँ मर चुकी हैं। मानवता रुदन कर रही है अर्थयुग में सारे संबंधों को स्वार्थ की तराजू पर तौला जा रहा है।
    सभी को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद शशि जी ,सत्य कहा आपने ,मगर मरी हुई भावनाओं को फिर से जिन्दा करने का प्रयास तो कर सकते हैं न ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  3. शब्द सृजन-11 पर आँगन से सम्बन्धित सुन्दर रचनाएँ।
    कामिनी सिन्हा जी हार्दिक धन्यवाद। शुभ प्रभात।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सर ,आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद ओंकार जी ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  5. सुप्रभात
    शब्द-सृजन ११ के लिए मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद कामिनी जी |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद आशा जी ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  6. बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण प्रस्तुति । मेरी रचना को प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद कविता जी ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  8. .... आपकी आज की भूमिका ने तो सभी को एक ही आंगन में एकत्रित कर लिया बहुत ही अच्छे लगे आपके विचार शब्द सृजन श्रृंखला बहुत ही अच्छा प्रयोग है एक ही शब्द के इतनी सारी रचनाएं पढ़ने को मिलती है जो अद्भुत अनुभव है.. सभी का अलग अलग व्यक्तित्व उभर कर आता है मेरी रचना सोन चिरैया को भी सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनु जी ,अब तो हम भी एक ही आँगन के परिवार जैसे हो गए हैं ,परमात्मा हम सबका साथ बनाएं रखें ,सादर स्नेह

      हटाएं
  9. बहुत सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! सप्रेम वन्दे ! सभी रचनाएं अत्यंत भावपूर्ण एवं सार्थक !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद साधना जी ,सादर नमस्कार आपको

      हटाएं
  10. बहुत ही सराहनीय भूमिका के साथ शब्द सृजन की प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दीदी. आँगन-सा मंच पर फैला स्नेह निशब्द है. सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ. मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार आप का
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से शुक्रिया अनीता जी ,ये ब्लॉग भी तो हमारे घर आँगन सा ही हो गया हैं ,कम से कम इस आभासी दुनिया में तो हम अपना आभासी स्नेह बरक़रार रखने की कोशिश कर सकते हैं न,सादर स्नेह आपको

      हटाएं
  11. प्रिय कामिनी,
    घर का आँगन ही घर का हृदय कहलाता है। आँगन लुप्त हो गए, हृदय लुप्त हो गए। अब बचे हैं मशीन से डोलते आत्मकेंद्रित मनुष्य। आपकी प्रस्तुति की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है।
    मेरी रचना को अंक में लेने हेतु बहुत बहुत आभार। मेरी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -
    द्वार पर थी रातरानी,
    महकता था मोगरा
    खुला आँगन, जैसे उपवन
    पेड़-पौधों से हरा ।
    मिटाकर बगिया बनाया
    हमने अपना घर बड़ा,
    शांति का मंदिर गिराकर
    शीशमहल किया खड़ा ।
    अब किसको दें दोष,
    सूरतें लगती सब अनजानी
    छोटी छोटी खुशियों की
    हमने दे डाली कुर्बानी।
    आज की सभी रचनाएँ साबित कर रही हैं कि आँगन का खो जाना हम सब को खल रहा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिल से शुक्रिया मीना जी ,बिलकुल सही सखी " घर का आँगन ही घर का हृदय कहलाता है। आँगन लुप्त हो गए, हृदय लुप्त हो गए।"
      " द्वार पर थी रातरानी,
      महकता था मोगरा
      खुला आँगन, जैसे उपवन
      पेड़-पौधों से हरा "
      और ये चंद पंक्तियाँ तो दिल को छू गई ,ऐसा लग रहा हैं जैसे आपने मेरे बचपन के घर की रूप रेख खींच दी हो ,बिलकुल ऐसा ही था मेरा घर और मेरे जीवन का एक हिस्सा उस बगिये को सजाते सवारते ही गुजरता था।
      शांति का मंदिर गिराकर
      शीशमहल किया खड़ा ।
      अब किसको दें दोष,
      सूरतें लगती सब अनजानी
      छोटी छोटी खुशियों की
      हमने दे डाली कुर्बानी।
      हाँ ,यकीनन आँगन की कमी सभी को खल रही हैं ,करनी तो हमारी ही हैं ,ख़ुशी की चाह में निकले थे पता नहीं था इतने गम बटोर लगे ,इतनी भावभीनी समीक्षा के लिए हृदयतल से आभार ,मेरी प्रस्तुति से भी अच्छी तो आपकी प्रतिक्रिया रही ,सादर स्नेह सखी

      हटाएं
  12. ये अँगना छूटेगा
    खेत खलिहान छूटेंगे
    अमिया की डलियाँ में बांधी बाबू की
    रस्सी वाली झूला छूटेगी
    सखियाँँ, तेरी डाँँट- फटकार
    सब छोड़ कर उड़ जाएगी तेरी सोन चिरैया एक दिन
    प्रिय कामिनी , बहुत ही प्यारा अंक वो भी आँगन पर | मीना बहन ने सच कहा -- आँगन घर का हृदय होता है | और बेटियां इस ह्रदय की रानियाँ होती हैं | वे जहाँ भी रहें उनके भीतर के गाँव में बाबुल के आँगन का कोना हमेशा हरा- भरा रहता है | वे हर बात में उसे याद रखती हैं, क्योकि जो चीज किसी से दूर हो जाती है उसका मोल वही जान सकता है | यूँ तो आज के पलायनवादी दौर में बेटे भी घर आँगन से प्राय दूर ही हो जाते हैं |पर बेटियां अधिक भव से इस आँगन को याद करती हैं |
    मेरी एक रचना का अंश ---
    माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा -
    महल में रहकर भी नहीं भूली हूँ -
    वो धूल भरा अंगना तेरा ,
    पिता से सम्पूर्णता तेरी -
    वो बिंदिया , पायल , कंगना तेरा ;
    बड़ों का सफल बुढ़ापा माँ -
    नन्हे बच्चो की किलकारी ,
    दीवाली के हँसते दीप कहीं -
    वो होली की रंगीली पिचकारी ;
    संध्या - वंदन , दिया बाती--
    वो छोटा सा संसार तुम्हारा ! !
    माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा ! ! !

    आँगन की यादों में डूबे इस भावपूर्ण अंक के लिए बहुत बहुत स्नेह सखी |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बड़ों का सफल बुढ़ापा माँ -
      नन्हे बच्चो की किलकारी ,
      दीवाली के हँसते दीप कहीं -
      वो होली की रंगीली पिचकारी ;
      संध्या - वंदन , दिया बाती--
      वो छोटा सा संसार तुम्हारा ! !
      माँ अब समझी हूँ प्यार तुम्हारा
      बहुत ही सुंदर सखी , कभी सोचा भी ना था हमने कि ये छोटी छोटी बातें जो आम सी थी ,उसकी कमी हमें आज इतनी खलेगी ,इस स्नेहिल समीक्षा के लिए हृदयतल से आभार ,मेरी प्रस्तुति से भी अच्छी तो आप सभी की प्रतिक्रिया रही ,सभी ने भूले बिसरे आँगन की याद में अपनी कोमल भावनाएं साझा कर ली ,हर एक रचना में भी गहरा मर्म छिपा हैं जो अन्यास ही दिल में पीर उठा रही हैं , सादर स्नेह सखी

      हटाएं
  13. Did you realize there's a 12 word phrase you can tell your crush... that will trigger deep emotions of love and impulsive attractiveness for you deep inside his heart?

    That's because hidden in these 12 words is a "secret signal" that fuels a man's impulse to love, admire and look after you with all his heart...

    12 Words Who Trigger A Man's Desire Instinct

    This impulse is so hardwired into a man's mind that it will drive him to work better than before to make your relationship as strong as it can be.

    Matter-of-fact, fueling this mighty impulse is absolutely essential to getting the best ever relationship with your man that the moment you send your man a "Secret Signal"...

    ...You'll immediately notice him open his heart and mind to you in a way he haven't experienced before and he will see you as the one and only woman in the universe who has ever truly understood him.

    जवाब देंहटाएं

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