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सोमवार, मई 03, 2021

भूल गये हैं हम उनको, जो जग से हैं जाने वाले (चर्चा अंक 4055)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से। 

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद चुनिंदा रचनाएँ-

"डूबा नया जमाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

भूल गये हैं हम उनको,
जो जग से हैं जाने वाले,
बूढ़े-बरगद की छाया को,
भूल गये मतवाले,
कर्कश गीतों को अपनाया,
छोड़ा मधुर तराना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
*****

। क्षणिकाएं।।


 कई बार

अनुभूत पलों का,

मुड़ा-तुड़ा कोई पन्ना ।

बाँचना चाहती हैं आँखें ,

मगर 

इज़ाज़त कहाँ देता है ,

जटिल बुनावट वाला विवेक ।

समझदारी के फेर में

कस कर मूंद  देता है ,

सुधियों भरा संदूक ।

*****

चलो इस कोरोना काल में अजनबी बन जाएं हमदोनों (कविता)



तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पास आने से,
मुझे भी डर लगा रहता है, तुमसे दूर जाने से।
बचा लिया है, इस जमाने में कई आशिकों के
मुहब्बत को, इस कोरोना ने, बदनाम होंने से।

*****

हाइकु 


7 . राज्य  अशान्त

   अत्याचार बढ़ा  है

   बचालो उसे


8. असहज जन  

 अराजकता फैली

मथुरा जी में

*****

ऊँचाई


अवधूत सी, स्वानंद, समाधिस्त, ऊँचाई,
देखी ही कब इसने गहराई,
चेतनाओं, से परे....
विमुख खुद ये, किसी को क्या दे!
*****

जंगल, कंटीला जंगल



मैं जमीन कहता हूँ

तुम अपना कद 

बताते हो।

मैं आंसुओं के 

नमक पर कुछ कहता हूँ

तुम मानवीयता का 

देने लगते हो हलफनामा। 

*****

नाम रूप के बनें साक्षी

वह स्वयं को भूली हुई है इसलिए कामनाओं के वशीभूत होकर सुख-दुःख का अनुभव करती है. यही तो अज्ञान है, जिससे गुरू हमें दूर करना चाहते हैं. गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, भगवद्गीता का यह वाक्य तब समझ में आता है. प्रकृति ही प्रकृति के साथ खेल रही है, पुरुष की उपस्थिति में. उसकी उपस्थिति के बिना कुछ भी सम्भव नहीं, पर वह स्वयं में पूर्ण है यह मानते हुए लीला मात्र समझकर जगत को देखना है.  जैसे रात का स्वप्न टूट जाता है वैसे ही दिन का स्वप्न भी मृत्यु के एक झटके में टूट जाने वाला है.  

चाहिए रोटी-कपड़ा-मकान।

भूखी न मरे अब मेरी संतान।
मांग ना हाथ फैलाकर दान।
मेहनत की रोटी पर है शान।
*****


कई परिवारों का सामूहिक घर
डोलती वो इधर से उधर
निपटाती काम,पड़ा देखती जिधर
चाहे शाम हो या सहर
एक ही लय में दिखी,कभी न थकी नज़र आई वो
हाथ पोटली थामे...
*****

 कोरोजीविता के दौर में हर समय शांत रहने वाले कुछ नवगीतकारों को छोड़ कर अधिकांश ने किसान की यथास्थिति पर पूरी निर्भीकता से अपनी अभिव्यक्ति दी| अनामिका सिंह ‘अना’ किसानों की सभी त्रासद स्थितियों का जिम्मेदार पूंजीवाद को मानती हैं-कृषक हितों की बात छलावा/ पूँजीवाद महान|” उनका प्रश्न है कि “उचित मूल्य फसलों का हलधर/ कब-कब हैं लाये” जब भी वह आगे आए हैं, षड्यंत्रों की बलि बेदी पर चढ़ा दिए गए हैं| उचित मूल्य की क्या कहें, सरकार और पूँजीवाद की मिलीभगत में ‘कम’ के लिए भी लाइन में लगे रहते हैं| यदि अनामिका की दृष्टि में “कृषि प्रधान है देश हमारा/ भूखा मगर किसान” तो किसी भी देश और समाज के लिए इससे बड़ी त्रासद स्थिति और क्या होगी कि, जो दूसरों का पेट भर रहा है स्वयं भूखा है|

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

13 टिप्‍पणियां:

  1. जी आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभारी हूं। सभी रचनाकार साथियों को भी खूब बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर रचनाओं से सुसज्जित चर्चा । मेरी रचना को भी शामिल करने हेतु सादर आभार । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,नमस्कार !
    आज की सुंदर चर्चा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन,सभी रचनाकारों को बधाई,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात, कोरोना काल पर समसामयिक रचनाओं के साथ कई अन्य पठनीय रचनाओं की खबर देती सुंदर चर्चा ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. आ. डा. वर्षा जी के निधन की खबर पाकर स्तब्ध हूँ। कई बार उनकी प्रतिकियाओं ने मुझे प्रेरित किया है। उनकी असामयिक मृत्यु ब्लॉग जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
    ईश्वर से उनकी दिवंगत आत्मा हेतु शांति की प्रार्थना करता हूँ।

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  6. यह चर्चा मंच बहुत सार्थक है। ब्लॉग पढ़ने और ब्लॉग लेखन की ओर प्रेरित करने वाला आयोजन! साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
    आ डॉ वर्षा जी के निधन पर मर्माहत हूँ। ब्लॉग जगत की एक मजबूत कड़ी टूट गयी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। ॐ शांति!💐!--ब्रजेंद्रनाथ

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  7. उम्दा चर्चा। वर्षा दीदी के निधन का समाचार अविश्वनीय है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्दा चर्चा |वर्षा जी आज हमारे बीच नहीं हैं |ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  9. बहुत बढ़िया प्रस्तुति है...

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  10. बुधवार की पोस्ट पर वर्षा जी के बारे में पढ़ा उसके बाद कुछ भी लिख पाना असंभव।

    साधुवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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