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बुधवार, मई 19, 2021

'करोना का क़हर क्या कम था जो तूफ़ान भी आ गया। ( चर्चा अंक 4070 )

सादर अभिवादन। 

बुधवारीय अंक में आपका स्वागत है। 

करोना 

का 

क़हर 

क्या 

कम 

था 

जो तूफ़ान भी आ गया। 

 

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित चंद चुनिंदा रचनाएँ-

"जी हाँ मैं नारी हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


दुनिया ने मुझे

मात्र अबला मान लिया है,
और केवल

भोग-विलास की
वस्तु जान लिया है!

यही तो है मेरी कहानी,

आँचल में है दूध
और आँखों में पानी!

*****
कभी कहना मान कर देखो

अंतर समझ में आ जाएगा

तुम चाहते हो क्या सब से

यह भी स्पष्ट हो जाएगा  |



उधर इस संघर्ष के दौरान भारत में बहस है कि हम संयुक्त राष्ट्र में किसका साथ दे रहे हैं, इसराइल का या फलस्तीनियों का? भारतीय प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने रविवार को सुरक्षा परिषद में जो बयान दिया था, उसे ठीक से पढ़ें, तो वह फलस्तीनियों के पक्ष में है, जिससे इसराइल को दिक्कत होगी। साथ ही भारत ने हमस के रॉकेट हमले की भी भर्त्सना की है।

*****
इस वृक्ष की छाल हैं सात धातुएं - रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र. इसकी आठ शाखाएँ हैं - पंचमहाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार. मुख, दो आँखें आदि नव द्वार इसमें बने हुए खोड़र हैं. प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, देवदत्त, कूर्म, कृकल, नाग और धनजंय - ये दस प्राण ही इसके पत्ते हैं. इस संसार रूपी वृक्ष पर दो पक्षी हैं - जीव और ईश्वर .











'मेरे पास वर्तमान में कोई ऐसी जगह नहीं थी,जहां मैं ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सकूं...न ही भविष्य की मुट्ठी में ऐसी कोई उम्मीद थी,इस इतनी बड़ी समूची दुनिया में मुझे मेरे लिए एक इंच जगह भी ऐसी नहीं नज़र आती थी,जहां मैं अपनी आत्मा को निर्विघ्न,बिना किसी डर के उन्मुक्त छोड़ सकूँ.मैं धरती के उस अंतिम टुकड़े पर हूं जिस पर मैं इसलिए खड़ी हूँ,क्योंकि मेरे होने से वह ख़त्म नहीं हो सका है.मैं इस छोटे से टुकड़े पर अपनी पूरी ताक़त से खड़ी हूँ.' पृष्ठ 213

सुबह होते ही  विभिन्न मिडिया के डराने का व्यापार शुरू हो जाता है। अरे क्या खा रहे हो, यह खाओ और स्वस्थ रहो ! ओह हो ! क्या पी रहे हो इसमें जीवाणु हो सकते हैं ! ये डब्बे वाला पियो ! अरे, ये कैसा कपड़ा पहन लिया, ये पहनो ! आज जिम नहीं गए ! हमारे यंत्र घर में ही लगा लो ! ये बच्चों-लड़कियों जैसा क्या लगा लेते हो, अपनी चमड़ी का ख्याल रखो ! आज फलाने को याद किया, तुम्हारे ग्रह ढीले हैं! 









 फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

 


6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर पठनीय अंक,श्रमसाध्य कार्य हेतु सादर शुभकामनाएं रवींद्र यादव जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य प्रस्तुति । सादर नमन!

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं

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